इन लड़कियों की व्यथा कौन सुने

Edited By ,Updated: 07 Nov, 2024 06:24 AM

who will listen to the plight of these girls

कई पत्रिकाओं, अखबारों में पाठकों की समस्या के कॉलम छपते हैं। अक्सर इन्हें पढ़ती हूं, तो युवाओं तथा अन्य लोगों की बहुत-सी समस्याओं पर ध्यान जाता है। पिछले दिनों इन्हीं कॉलम्स में 3 लड़कियों ने अपनी समस्याएं बताई थीं। ये तीनों ही 14 से 17 साल तक की...

कई पत्रिकाओं, अखबारों में पाठकों की समस्या के कॉलम छपते हैं। अक्सर इन्हें पढ़ती हूं, तो युवाओं तथा अन्य लोगों की बहुत-सी समस्याओं पर ध्यान जाता है। पिछले दिनों इन्हीं कॉलम्स में 3 लड़कियों ने अपनी समस्याएं बताई थीं। ये तीनों ही 14 से 17 साल तक की थीं। एक लड़की ने कहा था कि मैं 16 साल की हूं। अगले साल बोर्ड का इम्तिहान है। पढ़ाई में बहुत अच्छी रही हूं, मगर अब कुछ करने का मन नहीं करता। माता-पिता और रिश्तेदार मुझसे बहुत उम्मीद लगाए हैं कि मैं तो बोर्ड इम्तिहान में टॉप करूंगी। इसलिए हमेशा डरी रहती हूं। मेरे माता-पिता मुझे कहीं लेकर भी नहीं जाते। न कहीं जाने देते हैं। अकेलापन भी बहुत महसूस होता है। मेरे दोस्त भी नहीं हैं। मुझे अपने माता-पिता से इतनी नफरत हो गई है कि उनकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।

दूसरी लड़की ने लिखा कि मेरे माता-पिता हमेशा लड़ते रहते हैं। यहां तक कि जो हाथ में आता है, उससे एक-दूसरे को मारते भी हैं। फिर हर बात का अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हैं। हमेशा मुझे डांटते रहते हैं। अपनी हर मुसीबत के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराते हैं। फिर चाहते हैं कि मैं खूब पढ़ूं भी। कोई सहेली घर आ जाए तो हजार सवाल पूछते हैं। मुझे कहीं जाने भी नहीं देते। फिर उम्मीद करते हैं कि मैं पढ़ाई में हमेशा अव्वल आऊं। मेरी मां कहती हैं कि मैं उन पर बोझ हूं।

ऐसी बातें सुनकर मैं अक्सर रोती रहती हूं। मन करता है कि इस जिंदगी को खत्म कर दूं। अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करती हूं। माता-पिता उस पर भी ध्यान नहीं देते। यही सोचती हूं कि अगर मैं नहीं रही, तो मेरे भाई का क्या होगा। अपनी समस्या किसे बताऊं। कौन मुझे सही सलाह देगा। तीसरी समस्या एक किशोरी ने लिखी, कि मेरी मां ने दूसरा विवाह किया है। वह जबरदस्ती मुझे अपने साथ ले आईं, जबकि मैं अपने पापा के साथ ही रहना चाहती थी। वह मुझे बहुत प्यार भी करते हैं। अपने पिता के मुकाबले मुझे यह नए पिता जरा भी अच्छे नहीं लगते। वह मुझे हमेशा अजीब-सी नजरों से देखते हैं।  लेकिन मेरी मां चाहती हैं कि मैं अपने पिता से कभी न मिलूं। मैं अपने नए पिता को ही अपना पिता मानूं। 

मैं चुपके-चुपके अपने पापा से फोन पर बातें करती हूं। एक बार मां को पता चला तो उन्होंने मुझे खूब डांटा। मेरा फोन भी छीन लिया। मेरे पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं । उनकी बहुत याद आती है। मैं उनके पास जाना चाहती हूं, मगर कैसे जाऊं, समझ में नहीं आता। कोई मुझसे बात भी नहीं करता। पहली लड़की की समस्या पर गौर करें तो नजर आता है कि इस बच्ची के माता-पिता उस पर जरूरत से ज्यादा कंट्रोल करते हैं। उसे न कहीं ले जाते हैं, न कहीं जाने देते हैं। कोई मित्र भी नहीं है। फिर उम्मीद है कि वह पढ़ाई में अच्छी रहे।

दूसरी लड़की के घर वालों की आपसी लड़ाई का असर बच्ची पर कितना बुरा पड़ता है, इसे घर वाले नहीं समझते। माता-पिता न इस लड़की पर ध्यान देते हैं, न ही अपने बेटे पर। मां लड़की को बोझ तक बताती है। ऐसे में लड़की अगर कोई गलत कदम उठाने की सोचती है, तो हर हाल में उसके घर वाले ही जिम्मेदार हैं। तीसरी लड़की की जो समस्या है वह इन दिनों बहुत से घरों में नजर आती है। मशहूर लेखिका मन्नू भंडारी का उपन्यास ‘आपका बंटी’ इसी समस्या पर केंद्रित है। यह उपन्यास 70 के दशक में लिखा गया था। मां की दूसरी शादी का लड़की के मन पर कितना बुरा असर पड़ा है। मां को पिता से इतनी नफरत है कि वह नहीं चाहती कि बेटी उससे मिले। जबकि लड़की अपने पिता को बहुत चाहती है। वह  अपने पिता के पास लौट जाना चाहती है, लेकिन मां ऐसा नहीं करने देना चाहती।

लड़कियों ने किस मुसीबत से अपनी समस्याओं को इन पत्र-पत्रिकाओं में भेजा होगा, क्योंकि कहीं भी उनका नाम नहीं है। यदि घर वालों को पता चल जाए तो उन्हें किन आफतों से गुजरना पड़ेगा। दुख की बात यह है कि अपने-अपने अहंकार के चलते माता-पिता बच्चों को बिल्कुल भूल जाते हैं। बच्चों के मन में क्या चल रहा है, वे इस पर कतई ध्यान नहीं देते। इसीलिए आपने देखा होगा कि बहुत से बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं या लाखों की संख्या में घर से भाग जाते हैं। इन भागे हुए बच्चों में अधिकांश दोबारा अपने घर नहीं लौट पाते। 

इनमें भी यदि लड़कियां घर से चली गई हैं तो उनकी मुसीबत का कोई अंत नहीं होता। वे गलत हाथों में पड़ जाती हैं तो जीवन नर्क बन जाता है। इसके अलावा इन बच्चों में मानसिक बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। वे ड्रग्स का शिकार भी हो रहे हैं। इन किशोर-किशोरियों की हालत देखकर मन हाहाकार कर उठता है। माता-पिता को यह जरूर सोचना चाहिए कि अगर वे बच्चों को इस  दुनिया में लाए हैं, तो उनकी उचित देखभाल की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। -क्षमा शर्मा

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