संसद में ओवैसी द्वारा ‘फिलिस्तीन का नारा’ क्यों

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2024 05:42 AM

why did owaisi raise the slogan of palestine in parliament

लोकसभा  की सदस्यता की शपथ लेते समय हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक ऐसा नारा लगाया जिस पर पूरा देश चौंक गया। उन्होंने ‘जय भीम’, ‘जय मीम’, ‘जय तेलंगाना’ और ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाया। जहां तक ‘जय भीम’ और ‘जय तेलंगाना’ जैसे नारों की बात है तो...

लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेते समय हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक ऐसा नारा लगाया जिस पर पूरा देश चौंक गया। उन्होंने ‘जय भीम’, ‘जय मीम’, ‘जय तेलंगाना’ और ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगाया। जहां तक ‘जय भीम’ और ‘जय तेलंगाना’ जैसे नारों की बात है तो ये देश की सीमाओं के दायरे में आते हैं। पर एक-दूसरे देश की जयकार बोलना, वह भी संसद के भीतर,यह किसी के गले नहीं उतरा। ओवैसी ने एक बहुत ही गलत परंपरा की शुरूआत की है। आने वाले वर्षों में कोई सांसद ‘जय अमरीका’, ‘जय पाकिस्तान’ या ‘जय चीन’ का भी नारा लगा सकता है। इस तरह भारत की संसद संयुक्त राष्ट्र का अखाड़ा जैसी बन जाएगी। इसलिए इस खतरनाक प्रवृत्ति पर लोकसभा और राजसभा के अध्यक्षों को फौरन रोक लगानी चाहिए। 

सब जानते और मानते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। धर्म निरपेक्ष का मतलब नास्तिक होना नहीं है बल्कि इसका भाव है, सर्वधर्म समभाव, यानी हर धर्म के प्रति सम्मान का भाव। पर देखने में यह आया है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों और हिंदुओं के कुछ नेता सांप्रदायिकता को भड़काने के उद्देश्य से धार्मिक उन्माद बढ़ाने वाले नारे लगवाते हैं। जिससे उनके वोटों का ध्रुवीकरण हो। जहां एक तरफ बरसों से मुसलमानों को अल्पसंख्यक बता कर उनके पक्ष में ऐसे काम किए गए जो संविधान की मूल भावना के विरुद्ध थे। जैसे रमजान में सरकारी स्तर पर इफ्तार की दावतें आयोजित करना। अगर ऐसी दावतें अन्य धर्मों के उत्सवों पर भी की जातीं तो किसी को बुरा नहीं लगता। पर ऐसा नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि हिंदुत्व की राजनीति करने वालों को अपने समर्थकों को उकसाने का आधार मिल गया। 

शायद इसी का परिणाम है कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा के सांसदों और विधायकों ने संसद और विधानसभाओं में जोर-जोर से व सामूहिक रूप से धार्मिक नारे लगाना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह रहा है कि अब मुसलमानों के बीच भी उत्तेजना और आक्रामकता पहले से ज्यादा बढ़ गई है। जबकि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जिसे सख्ती से रोका जाना चाहिए वरना समाज में गतिरोध और हिंसा बढ़ेगी। वैसे इस तरह का वातावरण असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए भी तैयार किया जाता है। इसलिए समझदार हिंदू और मुसलमान अपने धर्म के प्रति आस्थावान होते हुए भी इस हवा में नहीं बहते हैं। 

हिंदुत्व का समर्थक कोई पाठक मुझसे तर्क कर सकता है कि हिंदुस्तान में भाजपा के सांसदों और विधायकों को अगर हिन्दुवादी नारे लगाने से रोका जाएगा तो क्या हम फिलिस्तीन में जा कर ये नारे लगाएंगे? मेरा उत्तर है कि मैं एक सनातन धर्मी हूं और मेरा परिवार और पूर्वज शुरू से आर.एस.एस. से जुड़े रहे हैं। लेकिन पिछले 30 वर्षों में हिंदुत्व की राजनीति का जो चेहरा मैंने देखा है उससे मन में कई सवाल खड़े हो गए हैं। जब देश की आबादी 141 करोड़ है, इनमें से 97 करोड़ वोटर हैं। उसमें से केवल 36.6 प्रतिशत वोटरों ने ही इस चुनाव में भाजपा को वोट दिया है। मतलब ये कि कुल 111 करोड़ ङ्क्षहदुओं में से केवल 35 करोड़ ङ्क्षहदुओं ने भाजपा को वोट दिया तो भाजपा सारे हिन्दू समाज के प्रतिनिधित्व का दावा कैसे कर सकती है? चूंकि देश की आबादी में 78.9 प्रतिशत हिंदू हैं और उनमें से एक छोटे से हिस्से ने भाजपा को वोट दिया है। मतलब बहुसंख्यक ङ्क्षहदू भाजपा की नीतियों से सहमत नहीं हैं। हम सब मानते हैं कि हमारा धर्म सनातन धर्म है। जिसका आधार है वेद, पुराण, गीता, भागवत, रामायण आदि ग्रंथ। क्या भाजपा इनमें से किसी भी ग्रंथ के अनुसार आचरण करती है? अगर नहीं तो वे कैसे ङ्क्षहदू धर्म के पुरोधा होने का दावा करती है? 

हमारे धर्म के 4 स्तंभ हैं, उन चारों पीठों के शंकराचार्य जिन्हें आदि शंकराचार्य जी ने सदियों पहले भारत के चार कोनों में स्थापित किया था। क्या भाजपा इन चारों शंकराचार्यों को यथोचित सम्मान देती है और इनके ही मार्ग निर्देशन में अपनी धार्मिक नीति बनाती है? अगर नहीं तो फिर भाजपा ङ्क्षहदू धर्म के पुरोधा कैसे हुई? सनातन धर्म में साकार और निराकार दोनों ब्रह्म की उपासना स्वीकृत है। इस तरह उपासना के अनेक मार्ग व अधिकृत संप्रदाय हैं। इसलिए पूरे देश में व्याप्त सनातन धर्म का कोई एक झंडा या एक जय घोष नहीं होता। जैसे ‘जय श्री राम’ किसी अधिकृत संप्रदाय का जयघोष नहीं है। प्रभु श्री राम को लोग ‘जय सिया राम’, ‘राम-राम’ ‘जय रामजी की’ आदि अनेक संबोधनों से पुकारते हैं। ‘जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी’। फिर केवल ‘जय श्री राम’ धार्मिक उदघोष कैसे हुआ? 

ऐसी तमाम अन्य सब बातों को भी देख सुनकर  यह स्पष्ट होता है कि भाजपा का हिंदुत्व सनातन धर्म नहीं है। ये इनकी राजनीति के लिए एक अस्त्र मात्र है। इसका अर्थ यह हुआ कि संसद में चाहे ‘जय श्री राम’ का नारा लगे और चाहे ‘अल्लाह हू अकबर’ का दोनों ही राजनीतिक उद्देश्य से लगाए जाने वाले नारे हैं जिनका उद्घोष संसद में नहीं होना चाहिए। जय फिलिस्तीन का नारा तो और भी खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है। आशा की जानी चाहिए कि संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष इस विषय पर गंभीरता से विचार करके संविधान और संसद की गरिमा बचाने का काम करेंगे।-रजनीश कपूर
 

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