मान सरकार ने किसान आंदोलन क्यों कुचला

Edited By ,Updated: 27 Mar, 2025 05:34 AM

why did the maan government crush the farmers  movement

पंजाब में तथाकथित किसानों के कई महीने से चल रहे धरने को प्रदेश सरकार ने 19 मार्च को बलपूर्वक रातों-रात उखाड़ दिया। इस दौरान पंजाब पुलिस ने कई ‘किसान’ नेताओं-कार्यकत्र्ताओं को हिरासत में लिया तो शंभू-खनौरी सीमा पर बनाए उनके तंबुओं आदि पर बुलडोजर चला...

पहला यह कि आम आदमी पार्टी ‘आप’ कोई स्थापित दल है, जिसकी कोई घोषित नीति या उद्देश्य है। यह स्पष्ट हो गया है कि ‘आप’ का एकमात्र लक्ष्य किसी भी तरह सत्ता हासिल करना है, चाहे इसके लिए उसे कोई भी नीति अपनानी या छोडऩी पड़े। यह अवसरवाद की पराकाष्ठा है। दूसरा ‘किसान आंदोलन’ को कोई जन-समर्थन प्राप्त है। जिस सख्ती से पंजाब की ‘आप’ सरकार ने किसानों के ‘आंदोलन’ को समाप्त किया और उस पर कोई बड़ी प्रतिक्रिया भी नहीं हुई उससे साफ  है कि ‘किसान आंदोलन’ का कोई जनाधार नहीं है। तीसरा ‘किसान’ संबंधित हालिया प्रदर्शन-आंदोलनों को कई राजनीतिक दलों या एन.जी.ओ. (अंतर्राष्ट्रीय सहित) का समर्थन प्राप्त था। पंजाब के मामले पर इन दोनों की चुप्पी बताती है कि उनका किसानों या उनकी मांगों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका इकलौता लक्ष्य मोदी-भाजपा को बदनाम करके किसी भी तरह उन्हें सत्ता से हटाना है। इसी कालम में पिछले दिनों दिल्ली के संदर्भ में ‘आप’ और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल की कथनी-करनी और अपने घोषित मूल्यों-विचारों के उलट काम करने पर चर्चा हुई थी। पंजाब में भी इस दल की स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही है। 

जब दिल्ली सीमा पर किसान वर्ष 2020-21 में मोदी सरकार के कृषि-सुधार कानूनों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे थे, तब इसमें कुछ अराजक तत्वों और देश-विरोधी विदेशी शक्तियों के शामिल होने का खुलासा हुआ था। लेकिन दिल्ली की तत्कालीन ‘आप’ सरकार आंदोलित किसानों को हरसंभव सुविधा इंटरनैट,पानी, बिजली सहित देती रही। यह स्थिति तब भी थी, तब उन्मादी आंदोलनकारियों ने गणतंत्र दिवस (2021) पर सैंकड़ों ट्रैक्टरों के साथ अन्य धारदार हथियारों से लैस होकर पुलिसकर्मियों पर हमला करने का प्रयास किया और लाल किले की प्राचीर पर मजहबी झंडा लहरा दिया। इसके बावजूद, मोदी सरकार ने धैर्य का परिचय देते हुए संवाद का मार्ग अपनाया, किसी निर्णायक बल-प्रयोग से परहेज किया और आवश्यकता पडऩे पर राष्ट्रहित में कृषि-सुधार कानूनों को वापस ले लिया।

दिल्ली में ‘किसान आंदोलन’ के समर्थन का लाभ, ‘आप’ को 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत के रूप में मिला। परंतु पिछले 3 वर्षों से पंजाब के किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलित रहे। इस पर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पार्टी की निर्धारित कृषि नीति में पलटी मारते हुए पहले 400 दिनों से पंजाब की मुख्य सड़क घेरकर बैठे आंदोलनकारी ‘किसानों’ पर अपना ‘गुस्सा’ प्रकट किया, फिर  कुछ दिन बाद बुलडोजर के साथ भारी-भरकम पुलिस बल भेजकर रात के अंधेरे में आंदोलित किसानों को उनके तामझाम सहित जबरन खदेड़ दिया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि पंजाब की ‘आप’ सरकार ने किसानों के मुद्दे पर इतनी बेशर्मी के साथ पलटी मार दी। मीडिया में इसके कई आकलन हैं। परंतु इसमें सबसे प्रबल कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव हारने वाले केजरीवाल को पंजाब से राज्यसभा भेजने की तैयारी से जुड़ा है। दरअसल, लुधियाना पश्चिम उप-चुनाव में ‘आप’ ने अपने राज्यसभा सांसद और उद्योगपति संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट इसी साल जनवरी में ‘आप’ विधायक गुरप्रीत गोगी की मौत के बाद से खाली है। पूरी संभावना है कि अगर अरोड़ा यह उप-चुनाव जीतते हैं, तो उन्हें पंजाब सरकार में मंत्री बनाकर केजरीवाल राज्यसभा भेजे जा सकते हैं। 

परंतु पार्टी को संकेत मिले कि शंभू-खनौरी सीमा पर किसानों के धरना-प्रदर्शन से व्यापारी लगातार हो रहे नुकसान और स्थानीय लोग अराजकता से इस कदर नाराज हैं कि वे आगामी उप-चुनाव में ‘आप’ का बहिष्कार करेंगे। शायद इसलिए ‘आप’ सरकार ने केजरीवाल की राज्यसभा सीट सुनिश्चित करने के लिए किसानों पर कार्रवाई कर दी। राजनीतिक लाभ के लिए अपनी बात से एकाएक पलटना, ‘आप’ और उसके कई शीर्ष नेताओं की आदत है। 2015 में, जब ‘नई दिल्ली नगरपालिका’ ने राजधानी में क्रूर मुगल आक्रांता औरंगजेब के नाम वाली सड़क का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक दिवंगत ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम पर रखा, तो बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तुरंत इसका स्वागत किया और इसका श्रेय लेने में भी देर नहीं लगाई। लेकिन जब मुस्लिम समाज के एक वर्ग में असंतोष उभरा, तो वोट बैंक की सलामती के लिए केजरीवाल को अचानक अपने इस फैसले पर गहरा ‘अफसोस’ होने लगा। ऐसे कई उदाहरण हैं।

यह विडंबना ही है कि जो राजनीतिक-सामाजिक समूह दिल्ली के किसान आंदोलन (2021-22)के दौरान मोदी सरकार पर आक्रामक था, वही पंजाब में किसानों के हालिया दमन पर मौन है। वस्तुत: इस जमात के लिए किसानों और गरीबों का हित गौण है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी भी तरह सत्ता से हटाना उनका प्राथमिक एजैंडा है। यह समूह भारत की बहुलतावादी सनातन संस्कृति के विरुद्ध भी लंबे समय से षड्यंत्र रचता आया है। अपनी विभाजनकारी और भारत-विरोधी मानसिकता के कारण यह स्वयं कोई बड़ा जन-आंदोलन खड़ा करने में सक्षम नहीं है। पंजाब स्थित किसान आंदोलन पर ‘आप’ सरकार की कार्रवाई ने उसके दोहरे रवैये को पुन: उजागर कर दिया है। जो दल दिल्ली में किसानों के समर्थन में खड़ा था, वह पंजाब में सत्ता के लिए उन्हें कुचलने से नहीं झिझका। असल में, इन आंदोलनों का वास्तविक मकसद किसानों का भला नहीं, बल्कि खालिस राजनीतिक स्वार्थ है।-बलबीर पुंज
 

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