अपने बूढ़े माता-पिता को क्यों बोझ समझते हैं लोग

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2024 06:19 AM

why do people consider their old parents a burden

पिछले दिनों की बात है। कोलकाता का एक युवा जोड़ा घूमने के लिए कश्मीर गया। उनके साथ बूढ़ी मां भी थी। वहां मां का बेटे और बहू से झगड़ा हो गया। बस बेटे-बहू ने मां से पिंड छुड़ाने का आसान तरीका खोजा कि वे उसे अकेला छोड़कर कोलकाता लौट गए।

पिछले दिनों की बात है। कोलकाता का एक युवा जोड़ा घूमने के लिए कश्मीर गया। उनके साथ बूढ़ी मां भी थी। वहां मां का बेटे और बहू से झगड़ा हो गया। बस बेटे-बहू ने मां से पिंड छुड़ाने का आसान तरीका खोजा कि वे उसे अकेला छोड़कर कोलकाता लौट गए। इस बूढ़ी महिला के पास न पैसे थे, न खाने का कोई सामान, न ही फोन कि किसी को अपनी मुसीबत के बारे में बता सके। उसे कश्मीर के बारे में भी कुछ मालूम नहीं था। कोलकाता में जब रिश्तेदारों ने बेटे-बहू को वापस आया देखा और मां को उनके साथ नहीं पाया, तो वे उसके बारे में पूछने लगे। मगर बेटा-बहू कभी कुछ कहते तो कभी कुछ। इससे रिश्तेदारों को शक हुआ। उन्होंने पुलिस से शिकायत की। पुलिस ने बेटे-बहू को पकड़कर मां के बारे में पूछा तो वृद्धा के लड़के ने कहा कि उसकी मां और पत्नी में झगड़ा हुआ था, इसलिए वे मां को कश्मीर में ही छोड़ आए। पुलिस ने बहू-बेटे को गिरफ्तार कर लिया। फिर कश्मीर पुलिस को सूचना दी। बहुत खोजबीन के बाद वृद्धा को ढूंढा जा सका और उसे वापस कोलकाता लाया गया। 

पूछने पर इस वृद्ध महिला ने बताया कि वह पढ़-लिख भी नहीं सकती। उसने आशा छोड़ दी थी कि वह कभी अपने घर और अपने लोगों के बीच वापस जा सकेगी। लेकिन पुलिस ने उसे उसके घर पहुंचा दिया, इसके लिए वह पुलिस का बहुत धन्यवाद करती है। पुलिस को अक्सर ही कोसा जाता है मगर उसके अच्छे कामों के लिए सराहना भी मिलनी चाहिए, जिससे अन्य पुलिस वाले भी प्रेरित हो सकें। इस महिला को धन्यवाद कि उसके रिश्तेदारों ने उसकी परवाह की वर्ना तो आजकल कौन किसकी परवाह करता है। तब तो और भी नहीं, जब बच्चे ऐसे अपराधों में शामिल हों। वैसे भी दूसरे के घर के मामले में क्यों बोलें और आफत मोल लें , यह सोचकर लोग किसी अपराध को देखते हुए भी खामोश बने रहते हैं। यों मातृ दिवस को गुजरे अभी कुछ ही महीने हुए हैं। हम अपने बूढ़े माता-पिता को किस तरह बोझ समझते हैं, उनसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं, यह घटना इसका एक उदाहरण भर है। मनाते रहिए साल में एक दिन मातृ दिवस। 

वैसे अपने देश में बूढ़े माता-पिता को असहाय छोडऩा कोई नई बात नहीं है। यों माता-पिता को ईश्वर का रूप माना जाता है। मगर तीर्थ यात्रा के बहाने बहुत से वृद्धों को असहाय छोड़ दिया जाता है। कुछ साल पहले फेसबुक पर किसी ने एक वृद्ध के एक हाईवे पर सड़क पार करने की कोशिश करने और असफल रहने के बारे में लिखा था। वृद्ध बार-बार सड़क पार करने की कोशिश करता था, मगर  आते-जाते वाहनों को देखकर डर जाता था। जब इस व्यक्ति ने अपनी कार रोककर, इस वृद्ध से पूछा कि उसे कहां जाना है तो वह बता नहीं सका। उसे यह भी पता नहीं था कि वह कहां खड़ा है। यानी कि वह उस इलाके के लिए नया था। उसके घर वाले यह कह कर कि अभी आते हैं, उसे वहां अकेला छोड़कर चले गए थे। तब कार वाले उस आदमी ने उसे पानी पिलाया,  अपने पास रखे कुछ बिस्कुट खाने के लिए दिए। फिर अपनी कार में पुलिस के पास ले गया। फिर क्या हुआ पता नहीं। संभव है कि पुलिस ने उसे उसके घर पहुंचा दिया होगा। मगर क्या पता कि भविष्य में फिर कभी ऐसा नहीं होगा। मशहूर लेखक प्रभु जोशी ने दशकों पहले इसी समस्या पर ‘पितृऋण’ नाम से कहानी लिखी थी। ये अकेले बुजुर्ग कोई और रास्ता न देखकर, तीर्थ स्थलों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और भीड़ भाड़ वाली अन्य जगहों पर भीख मांगने लगते हैं। न सिर पर छत होती है, न कोई देखभाल करने वाला। 

सड़कों पर या जहां जगह मिली, वहां सो जाते हैं और एक दिन इसी तरह अकेले दम तोड़ देते हैं। जिस संतान को पालने-पोसने में उन्होंने अपनी पूरी उम्र और संसाधन लगा दिए वह कूड़े की तरह उन्हें सड़क पर फैंक देते हैं। बूढ़ों की जनसंख्या एक अनुमान के अनुसार 10 करोड़ से ऊपर है। लेकिन समाज की मुख्य धारा से बूढ़े होते ही वे अलग कर दिए जाते हैं। सरकारों के कई नुमाइंदे विश्व भर में वृद्धों को समाज की आर्थिकी पर बड़ा बोझ बताते हैं।

कोरोना के दिनों में आपने पढ़ा ही होगा कि कई देशों में बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं को इलाज में प्राथमिकता दी गई थी क्योंकि लगता था कि वृद्ध तो अपना जीवन जी चुके। वे समाज के लिए अब कोई योगदान नहीं करेंगे, इसलिए युवाओं को बचाया जाए। जिनके शरीर की ताकत और ऊर्जा से समाज और देश का भला हो सके। यह सोच कितनी अमानवीय है, इस तरह की बात कहने से क्या इस पर कभी ध्यान दिया जाता है। बहुत से लोग समझते हैं कि बुजुर्गों की दुर्दशा सिर्फ  शहरों में ही है, गांवों में ऐसी समस्याएं नहीं होतीं। लेकिन यह बस कहने भर के लिए तस्वीर का उज्ज्वल पक्ष है। आजकल गांवों में भी बुजुर्ग अकेले और परेशान हैं। बच्चे या तो उनकी खोज-खबर ही नहीं लेते या लेते भी हैं तो त्यौहार पर ही। उनसे कैसे जल्दी से जल्दी मुक्ति मिले यही कामना रहती है। कैसे इस समस्या से निपटें जब अपने ही साथ छोड़ दें।-क्षमा शर्मा
 

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