Edited By ,Updated: 29 Jun, 2024 05:18 AM
हाल ही में पश्चिम बंगाल-कंचनजंगा एक्सप्रैस ट्रेन दुर्घटना ने रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि किरायों में बढ़ौतरी करने तथा तमाम दावों के बावजूद रेल यात्रा को सुरक्षित नहीं बनाया जा सका है।
हाल ही में पश्चिम बंगाल-कंचनजंगा एक्सप्रैस ट्रेन दुर्घटना ने रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि किरायों में बढ़ौतरी करने तथा तमाम दावों के बावजूद रेल यात्रा को सुरक्षित नहीं बनाया जा सका है। इस समय रेल मंत्रालय रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए काफी धन खर्च कर रहा है लेकिन इसका उतना फायदा आम यात्रियों को नहीं मिल पा रहा है।
पिछले कुछ समय से जितनी भी रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं, उनमें से ज्यादातर का कारण चलती रेल का पटरी से उतर जाना या ट्रेनों की टक्कर है। निश्चित रूप से इन दुर्घटनाओं के कई कारण हैं। सवाल यह है कि विकसित दौर में ट्रेनों के संचालन से जुड़े बुनियादी पहलुओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है? यह शर्मनाक ही है कि सरकार बुलेट ट्रेन या फिर विभिन्न सुविधाओं वाली महंगी ट्रेन चलाने हेतु बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रही है लेकिन यात्रियों की सुरक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमारे देश में बुलेट ट्रेन ज्यादा जरूरी है या फिर यात्रियों को मूलभूत सुविधाएं देना। सर्दियों में जहां एक ओर कोहरे के कारण परेशानी होती है वहीं दूसरी ओर ठंड के कारण पटरियों में क्रैक की वजह से दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इस संबंध में अभी से सचेत होने की जरूरत है। दरअसल पिछले कुछ समय से रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस दौर में रेलगाडिय़ों की टक्कर, उनके पटरी से उतरने और आग लगने की घटनाएं आम हो गई हैं। यह दुख का विषय है कि हमारे देश में ट्रेन दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। किसी भी ट्रेन दुर्घटना के बाद रेल मंत्रालय बड़े-बड़े दावे तो करता है लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों कुछ सालों में ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इन दिनों रेल मंत्रालय अनेक विसंगतियों से जूझ रहा है। चाहे पुरानी पटरियों के रख-रखाव की बात हो या फिर सिग्नलों के आधुनिकीकरण की, इन सभी मामलों में हम अभी भी अन्य देशों से बहुत पीछे हैं। रेलवे के सम्पूर्ण आधुनिकीकरण और ट्रेनों में उन्नत तकनीक अपनाने की बात छोड़ दें तो भी जमीनी स्तर पर कई मामलों में लापरवाही दिखाई देती है। कई बार यह लापरवाही ही यात्रियों की मौत का कारण बन जाती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जब भी कोई बड़ा रेल हादसा होता है तो रेल मंत्रालय सक्रियता दिखाता है लेकिन जमीनी रूप से रेल हादसों को रोकने के लिए कोई गंभीर योजना नहीं बनाई जाती। यही कारण है कि रेल हादसों के बाद जांच पर जांच होती रहती है और जल्दी ही एक नए रेल हादसे की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है।
दरअसल राजनीतिक श्रेय लेने के लिए लगातार ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही है लेकिन उस हिसाब से सुविधाएं नहीं बढ़ाई जा रही हैं। यात्रियों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन रेलवे कर्मचारियों की संख्या में उस स्तर से वृद्धि नहीं हो पा रही है। ज्यों-ज्यों रेल मंत्रालय रेलवे का आधुनिकीकरण करने और सुविधाएं बढ़ाने का दावा कर रहा है त्यों-त्यों रेलवे कर्मचारियों के बीच आपसी तारतम्य का अभाव दिखाई दे रहा है। हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि कर्मचारियों की कमी से जूझ रही रेलवे में कहीं कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव तो नहीं है? बहरहाल कमी कहीं भी हो, हमें रेलवे कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
एक निश्चित समय के अंतराल पर कर्मचारियों को ट्रेनिंग देकर उनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है। योग और ध्यान की कार्यशालाएं आयोजित कर कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाया जा सकता है। आतंकी घटनाओं की बात छोड़ दें तो अधिकतर रेल दुर्घटनाओं के पीछे रेलवे के आधुनिकीकरण का अभाव और मानवीय भूल ही जिम्मेदार रही है। इसलिए मानवीय भूल के कारण सैंकड़ों लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। जहां तक रेलवे के आधुनिकीकरण की बात है तो इस मामले में भी अन्य देशों के मुकाबले भारतीय रेल पिछड़ी हुई है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि कई बार रेलवे मुनाफे को लेकर तो अपनी पीठ स्वयं ठोकता रहता है लेकिन इस मुनाफे से यात्रियों की सुरक्षा कैसे की जाए,यह सोचना नहीं चाहता।
गौरतलब है कि भारत में लगभग 70 फीसदी ट्रेन दुर्घटनाएं लाइनों में खराबी, खराब मौसम तथा मानवीय भूल के कारण होती हैं। पिछले दिनों कुछ विशेषज्ञों ने सैटेलाइट के माध्यम से ट्रेनों के नियंत्रण का सुझाव दिया था लेकिन इस सुझाव पर उस तरह से काम नहीं हो पाया, जिस तरह से होना चहिए था। दरअसल सरकार अपने अनाप-शनाप खर्चों में तो कोई कटौती नहीं करती है लेकिन इस तरह की योजनाओं के क्रियान्वयन के समय धन के अभाव का रोना रोया जाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि रेल मंत्रालय यात्रियों की मंगलमय यात्रा की कामना करता है लेकिन हकीकत में यात्रा मंगलमय बनाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाता है। देश के अनेक भागों में नई रेलगाडिय़ां चलाई गई हैं लेकिन उन रेलगाडिय़ों के हिसाब से रेलवे ट्रैक को उन्नत नहीं किया गया है।-रोहित कौशिक