देश को मजबूत सरकार की जरूरत क्यों

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2024 05:29 AM

why does the country need a strong government

जापान, वर्ष 2010 तक करीब 5 दशकों तक संयुक्त राज्य अमरीका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बना रहा था। फिर वह तीसरे स्थान पर फिसल गया क्योंकि चीन ने दूसरा स्थान हासिल कर लिया और फिर अगले 13 वर्षों के अंतराल में वर्ष 2023 में जापान...

जापान, वर्ष 2010 तक करीब 5 दशकों तक संयुक्त राज्य अमरीका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था बना रहा था। फिर वह तीसरे स्थान पर फिसल गया क्योंकि चीन ने दूसरा स्थान हासिल कर लिया और फिर अगले 13 वर्षों के अंतराल में वर्ष 2023 में जापान जी.डी.पी. के मामले में चौथे स्थान पर आ गया क्योंकि जर्मनी ने उसे धकेल कर तीसरा स्थान प्राप्त कर लिया। दूसरी ओर भारत ने निरंतर विकास की कहानी देखी और काफी नीचे से ऊपर चलते हुए दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया और जल्दी ही जापान को 5वें स्थान पर धकेलते हुए चौथे स्थान पर पहुंचने के लिए भारत तैयार है। 

जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय शिंजो आबे अपनी आक्रामक विदेश नीति और एक विशिष्ट आर्थिक रणनीति के लिए जाने जाते थे, जिसे लोकप्रिय रूप से ‘एबेनॉमिक्स’ के नाम से जाना जाता है। बेहद लोकप्रिय और बेहद विवादास्पद राजनेता रहे आबे ने लिबरल डैमोक्रेटिक पार्टी (एल.डी.पी.) को 2 बार जीत दिलाई। एबेनॉमिक्स थ्री ऐरोज यानी ‘तीन तीरों’ पर केन्द्रित था। पहला आक्रामक मौद्रिक नीति, दूसरा राजकोषीय समेकन और तीसरा विकास रणनीति। जबकि पहले 2 से बेहतर परिणाम मिले, लेकिन विकास और आधारभूत परिवर्तनों के पैमाने विफल रहे क्योंकि रणनीतिकारों ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि जापानी अर्थव्यवस्था बढ़ती आबादी और बढ़ते सामाजिक कल्याण खर्चों का सामना कर रही है। 

यहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच सामने आती है। जब उन्होंने जन-धन खातों के माध्यम से वित्तीय समावेशन किया, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए दर्जनों योजनाएं लांच कीं, युवाओं में सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए स्टार्टअप और कौशल विकास पर जोर दिया तो दरअसल वह लांग टर्म के विकास के लिए नहीं, उन पहलुओं को पहले से ही संबोधित करना चाह रहे थे जहां जापान उतना सफल नहीं हो पाया था। भारत की आबादी की औसत आयु 30 साल से भी कम है, लगभग 29.5 वर्ष। लेकिन आने वाले वर्षों में भारत की आबादी की आयु बढ़ेगी। उम्मीद है कि 2050 तक भारतीय जनसंख्या की औसत आयु लगभग 39 वर्ष होगी। वर्ष 2000 में जापानी आबादी की औसत आयु इतनी ही थी। 

यहीं पर पिछले 10 सालों से चल रहा देश का विजन सामने आता है। इन वर्षों में देश की सोच और दृष्टि आमतौर पर लंबी अवधि के लिए रही है। भारत 2047 तक पूरी तरह से विकसित राष्ट्र बनने की योजना बना रहा है, जब हम आजादी के 100 साल मनाएंगे, तो योजना बनाना और ऐसे रुख अपनाना जरूरी है जो भले ही अजीब और अनूठे लग सकते हैं, लेकिन समय आने पर इसके परिणाम मिलेंगे और जापान की कहानी नहीं दोहराई जाएगी। इसके बिल्कुल विपरीत, जापान की अर्थव्यवस्था की कहानी सतर्कता की घंटी बजाती है। एक समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा जापान संयुक्त राज्य अमरीका, चीन और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर खिसक गया है। पर्याप्त सरकारी प्रयासों और मौद्रिक प्रोत्साहन के बावजूद, जापान की आबादी की बढ़ती उम्र ने इसकी आर्थिक गतिशीलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक संरचनात्मक और शासन सुधारों में बाधा उत्पन्न की है। यह जनसांख्यिकीय चुनौती आॢथक नवाचार और विकास को आगे बढ़ाने में युवा नेतृत्व के महत्वपूर्ण महत्व को बताती है।

शासन में युवाओं को सशक्त बनाना : एक रणनीतिक अनिवार्यता : युवा नेतृत्व पर देश का जोर महज एक राजनीतिक रणनीति नहीं है बल्कि भारत के भविष्य के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता है। युवा नेता नए दृष्टिकोण, नवीन समाधान और एक मजबूत ऊर्जा लाते हैं जो शासन और नीति-निर्माण प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित कर सकते हैं। सम-सामयिक तकनीकी प्रगति और वैश्विक रुझानों से उनकी निकटता उन्हें तेजी से विकसित हो रही दुनिया की जटिलताओं से निपटने में सक्षम बनाती है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में युवा नेताओं को शीर्ष पर रखकर एक ऐसी शासन संस्कृति देश में आ रही है जो चुस्त, उत्तरदायी और दूरदर्शी है। ऐसा नहीं है कि यह काम सत्ता पक्ष ने ही किया है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ, भजनलाल शर्मा, पुष्कर धामी और मोहन यादव आदि हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष की ओर से राहुल गांधी और अखिलेश यादव का उभरना पार्टी राजनीति से ऊपर की बात है। 

सीख जापान से : भारत और जापान के बीच बहुत बड़ा अंतर है। वर्तमान में जहां भारत की औसत आयु 29.5 वर्ष है, वहीं जापान की औसत आयु 49.6 वर्ष है। यह जनसांख्यिकीय असमानता वैश्विक आर्थिक रुझानों को अनुकूलित करने और आकार देने के लिए देशों की संबंधित क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। संरचनात्मक सुधारों को लागू करने में जापान की चुनौतियां उसके अदूरगामी नेतृत्व का प्रत्यक्ष परिणाम हैं, जो जोखिम लेने और नवाचार करने के लिए कम इच्छुक है। भारत के लिए इस खतरे से बचना महत्वपूर्ण है और यहां मोदी इसीलिए जरूरी हैं। जापान के अनुभव से सीखते हुए, यह स्पष्ट है कि हर स्तर पर उम्रदराज नेतृत्व, खासकर वह जो नई तकनीक सीखने और युवाओं की सोच से अपनी सोच का तालमेल कराने में अक्षम हो, आर्थिक प्रगति में बाधा बन सकता है। इसलिए, शीर्ष तीसरी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की भारत की राह अपनी युवा आबादी की शक्ति का उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती है।-हर्ष रंजन
 

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