क्यों सताता है उन्हें अर्बन नक्सल का भूत?

Edited By ,Updated: 13 Nov, 2024 05:26 AM

why does the ghost of urban naxal haunt them

सवाल था: ‘‘यह अर्बन नक्सल होता क्या है?’’ मेरा जवाब था: ‘‘यह एक भूत है, यानी कुछ भी नहीं है, और बहुत कुछ है। आंखें खोलकर देखेंगे तो कुछ नहीं पाएंगे, लेकिन अगर मन में भय हो और आंखें बंद हों तो यह परछाईं की तरह चारों तरफ मंडराएगा।’’

सवाल था: ‘‘यह अर्बन नक्सल होता क्या है?’’ मेरा जवाब था: ‘‘यह एक भूत है, यानी कुछ भी नहीं है, और बहुत कुछ है। आंखें खोलकर देखेंगे तो कुछ नहीं पाएंगे, लेकिन अगर मन में भय हो और आंखें बंद हों तो यह परछाईं की तरह चारों तरफ मंडराएगा।’’ ‘‘आप पहेली मत बुझाइए, ठीक-ठीक बताइए, यह नक्सलवाद क्या है? और अर्बन नक्सल क्या है?’’ सवाल भारत जोड़ो अभियान के एक युवा साथी का था। पिछले हफ्ते महाराष्ट्र के भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने चुनाव के दौरान कहा था कि भारत जोड़ो अभियान में शामिल लोगों की विचारधारा और काम की शैली अर्बन नक्सलवाद की है। उन्होंने कहा, ‘‘अर्बन नक्सलवाद का अर्थ है लोगों के मन प्रदूषित कर, लोगों के मनों में शक पैदा करना, जिससे देश की जो संस्थाएं हैं, जो सिस्टम हैं, उनके प्रति शक पैदा करना और देश की अखंडता को धोखा निर्माण करना।’’

पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर अर्बन नक्सलियों द्वारा संचालित होने का आरोप लगाया था। इसलिए युवा साथी को जवाब देना जरूरी था: ‘‘नक्सल और नक्सलवाद क्या था, यह तो मैं समझता हूं, अर्बन नक्सल को समझना थोड़ा मुश्किल मामला है। लेकिन मैं कोशिश करता हूं।’’

नक्सलवाद भारत के वामपंथी आंदोलन में 60 और 70 के दशक में पैदा हुई एक उपधारा थी, जो अपने मूल स्वरूप में लगभग लुप्त हो चुकी है। आजादी के बाद साम्यवादी राजनीति का मुख्य वाहक थी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी। लेकिन चीन से युद्ध के बाद इस पार्टी का विभाजन हुआ। उसका नरम और रूस समर्थक धड़ा मूल पार्टी के साथ रहा, तो गरम और चीन के प्रति झुकाव रखने वाला धड़ा 1964 में अलग हो गया और उसने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) बनाई, जिसे हम सी.पी.एम. के नाम से जानते हैं। नक्सलवादी आंदोलन इसी सी.पी.एम. से कुछ साल बाद अलग हुई और भी उग्र उपधारा का नाम है। उत्तर बंगाल के एक गांव नक्सलबाड़ी से शुरू होने के कारण इसका नाम  नक्सलवाद पड़ा। वामपंथियों का यह समूह चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग (माओ) की विचारधारा से प्रभावित था। इनका मानना था कि भारत में क्रांति की मुख्य रणनीति होगी गांव में गरीब खेतिहर मजदूरों को जमींदारों के विरुद्ध संगठित करना।

नक्सलवादियों की शिकायत थी कि स्थापित कम्युनिस्ट पाॢटयां व्यवस्था से समझौता कर चुकी हैं और व्यवस्था परिवर्तन के लिए सशस्त्र क्रांति की जरूरत है। इस विचारधारा के प्रभाव में आकर 70 के दशक में देश के अलग-अलग हिस्सों में नक्सली संगठनों का गठन हुआ और उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में ङ्क्षहसक विद्रोह करने का असफल प्रयास किया। धीरे-धीरे दर्जनों नक्सली संगठन और पार्टियां बन गईं, जो भूमिगत तरीके से काम करते रहे। इन सभी कोशिशों को सरकार द्वारा बलपूर्वक खत्म कर दिया गया। कालांतर में अधिकांश नक्सली संगठनों ने ङ्क्षहसा का रास्ता त्याग दिया और लोकतांत्रिक चुनावों या फिर लोकतांत्रिक जनांदोलनों की धारा में शामिल हो गए। आज भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी-लेनिनवादी), जिसे ‘माले’ कहा जाता है, वह इसी नक्सली आंदोलन की संसदीय परिणीति है। उसके दो सांसद भी हैं। 

नक्सली आंदोलन ने एक जमाने में आदर्शवादी युवाओं, लेखकों, कवियों और कलाकारों को छुआ। लेकिन धीरे-धीरे ङ्क्षहसक क्रांति में जुटे नक्सलियों का भी पतन हुआ और उनमें सिर्फ ङ्क्षहसा, दबंगई और फिरौती वाले तत्व घुस गए। आज भी नक्सली आंदोलन का एक छोटा सा समूह माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी चलाता है और छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा और झारखंड के कुछ जिलों में उसकी भूमिगत हिंसक गतिविधियां होती हैं। लेकिन देश के अधिकांश जनांदोलनों और खुद नक्सली विचारधारा से प्रभावित संगठनों ने भी उनकी हिंसक कार्यशैली को पूरी तरह खारिज कर दिया है। नक्सली आंदोलन अब अपने अतीत के अवशेष के रूप में ही जीवित है। 

‘‘तो ये अर्बन नक्सल कौन हैं? यह कोई नया धड़ा या उपधारा है?’’ मेरे युवा साथी का सवाल था। ‘‘नहीं, अर्बन नक्सल कुछ भी नहीं है। देश का कोई संगठन या व्यक्ति अपने आप को अर्बन नक्सल नहीं कहता। ऐसी कोई विचारधारा नहीं है। यह सिर्फ एक गाली है, जिसे जब चाहे जिस व्यक्ति और संगठन पर जड़ दिया जाता है। भारत जोड़ो अभियान को ही लें, जिसमें कई गांधीवादी, समाजवादी, उदारवादी और अम्बेडकरवादी संगठन जुड़े हैं, जिन्होंने हमेशा ङ्क्षहसक राजनीति का विरोध किया, जिनका नक्सली आंदोलन से कभी कोई वास्ता नहीं रहा, अब उन पर भी यह गाली मढ़ दी गई।’’ मैंने स्पष्ट किया। 

मजे की बात यह है कि खुद मोदी सरकार संसद में कई बार कह चुकी है कि ‘अर्बन नक्सल’ नामक कोई चीज सरकारी शब्दकोष में नहीं है। सरकार नहीं जानती कि यह क्या बला है।  12 मार्च, 2020 को तृणमूल कांग्रेस के सांसद शांता छेत्री के सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी और 9 फरवरी, 2022 को भाजपा सांसद राकेश सिन्हा के सवाल के जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जवाब दिया कि अर्बन नक्सल नामक कोई शब्द भारत सरकार इस्तेमाल नहीं करती, उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

‘‘तो फिर यह माजरा क्या है?’’ मेरा युवा साथी अधीर हो रहा था। अर्बन नक्सल दरअसल भाजपा के मन का एक डर है। हमारे मन का भय बाहर एक भूत की सृष्टि करता है। इस भय की सबसे अच्छी व्याख्या हिन्दी के प्रसिद्ध कवि गोरखनाथ पांडेय की कविता ‘उनका डर’ करती है। हालांकि यह भाजपा के उभार से बहुत पहले लिखी गई थी। लेकिन यह कविता अर्बन नक्सल नामक भूत के पीछे छिपे गहरे डर की शिनाख्त करती है: ‘वेे डरते हैं किस चीज से डरते हैं वे तमाम धन-दौलत गोला-बारूद, पुलिस-फौज के बावजूद? वे डरते हैं कि एक दिन निहत्थे और गरीब लोग उनसे डरना बंद कर देंगे।’-योगेन्द्र यादव
 

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