भारतीय महिलाओं की स्थिति दयनीय क्यों

Edited By ,Updated: 26 Sep, 2024 06:37 AM

why is the condition of indian women pathetic

आज हम भले ही 21वीं सदी में जी रहे हों और कहने को हमने महिलाओं को म दिए हैं। लड़कियां पढ़-लिख भी रही हैं लेकिन आज भी हमारे समाज में महिलाओं को दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ता है। अगर धर्म के नजरिए से देखें तो हालात तो सभी धर्मों में महिलाओं के प्रति...

आज हम भले ही 21वीं सदी में जी रहे हों और कहने को हमने महिलाओं को म दिए हैं। लड़कियां पढ़-लिख भी रही हैं लेकिन आज भी हमारे समाज में महिलाओं को दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ता है। अगर धर्म के नजरिए से देखें तो हालात तो सभी धर्मों में महिलाओं के प्रति रूढि़वादी हैं किताबों में महिलाओं को ऊंचा दर्जा दिया गया है। धार्मिक उपदेश हो या संविधान सब जगह महिलाओं को सम्मान दिया गया है लेकिन यह सिर्फ कागजों में या उपदेशों में ही सीमित है। हमारे पुरुष प्रधान समाज में उत्पन्न विकृत सोच ने महिलाओं को सिर्फ वस्तु बना कर रख दिया है। 

अगर हम देखें कि आज महिलाओं को किन-किन हालातों से गुजरना पड़ रहा है तो हमारे पुरुष प्रधान समाज के रौंगटे खड़े हो जाएंगे। यौन अपराध दिनों-दिन न सिर्फ बढ़ रहे हैं अपितु इसमें बेहद क्रूरता भी आ गई है। हम महिलाओं को शर्म-हया करने की दुहाई देते हैं लेकिन उन पुरुषों की शर्म हया कहां चली गई जब एक 70 वर्षीय व्यक्ति दुकान पर सामान लेने आई 10 वर्ष की बच्ची को छेड़ता है। एक गर्भवती महिला रो-रोकर अपने गर्भवती होने की दुहाई देती है। लेकिन 3 पुरुष फिर भी उससे बलात्कार करते हैं। उन पुरुषों की मानसिकता की हम पशु से भी तुलना नहीं कर सकते क्योंकि पशुओं में इतनी समझ होती है कि वह भी अपनी गर्भवती साथी को वासना का शिकार नहीं बनाते। लेकिन हम कहां और कितने गिर गए कि हमें इसका अंदाजा भी नहीं है। इस डिजिटल युग में हमारे युवा फेसबुक जैसे माध्यमों से लड़कियों को फंसा कर उनका मानसिक और शारीरिक शोषण करते हैं। इसमें नि:संकोच मैं कहूंगा कि ऐसे युवा अपने धर्म बदल कर दूसरे धर्मों की लड़कियों को शोषित करते हैं जो बाद में झगड़े का कारण भी बनता है। 

रोजाना अखबारों में इस तरह की खबरें आती रहती हैं। कार्पोरेट सैक्टर हो या फिल्मी हीरोइनें सब जगह यौन शोषण एक आम बात हो गई है और हमारा समाज निरंतर गिरता जा रहा है। एक औरत यौन अपराधों के अलावा कहां-कहां अपमानित नहीं होती। उसे ससुराल में प्रताडऩा झेलनी पड़ती है। अगर ससुराल में लोभी और नीच प्रवृत्ति के लोग उसे मिल जाए। यहां महिलाएं ही महिलाओं का शोषण करती हैं। कहीं सास के रूप में कहीं ननद तो कहीं भाभी के रूप में। मैंने देखा है कि लड़की भले ही कितनी भी पढ़ी-लिखी या गुणी हो लेकिन सास-ननदों के अहं के सामने तो सब बेकार हैं और उस हालत में तो उसके साथ और भी बुरा होता है जब उसका पति भी उसे प्रताडि़त करता हो। 

घरों में आमतौर पर हम देख सकते हैं कि बहू अगर पढ़ी-लिखी आ जाए तो उसे घमंडी और उद्दंड कहने में सास या ननदें जरा भी नहीं हिचकतीं। कुल मिलाकर हम देख सकते हैं कि ज्यादातर घरों में महिलाएं मानसिक रूप से प्रताडि़त मिलती हैं। एक ओर पुरुष बाहर की दुनिया में उसे चैन से नहीं रहने देता। तो घर में घर की औरतें ही उसे चैन से नहीं रहने देतीं। कभी-कभी तो लगता है कि आखिर हमारे समाज को ही क्या हो गया है? हमारा नैतिक पतन किस हद तक गिर गया है? जिस महिला के पेट से जन्म लेते हैं उसका ऐसा हाल अलग-अलग रूपों में हो गया है कि सच में मैं यही कहूंगा कि एक लड़की यहां कितनी हिम्मत से कितना कुछ सह कर रहती है। ऐसा नहीं कि यह असभ्यता सब में हो लेकिन ज्यादातर मामलों में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आज भी महिलाएं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से नहीं जीतीं। मैं समझता हूं कि इन चीजों में सरकार और समाज सभी को मिलकर इस चुनौती से निपटना होगा। पुरुष और महिलाएं दोनों को मिलकर समाज के बिगड़े रूप को सुधारना पड़ेगा। 

सरकार का नारा ही बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ है, जिसमें बेटी बचाओ का मतलब है उसे पैदा होने दो गर्भ में ही उसे न मारो। इसके साथ ही साथ इस नारे का यह भी मतलब होना चाहिए बेटी बचाओ समाज के वहशी दरिंदों से, नालायक उन औरतों से जो सास, ननद, भाभियों के रूप में घरों में किसी एक औरत की दुश्मन बन जाती हैं। इन सबके लिए कड़े कानूनों के साथ समाज में भी जागरूकता पैदा करनी होगी। हर सभ्य महिला और सभ्य पुरुष को समाज को विकृत होने से बचाने के लिए आगे आना होगा अन्यथा हमारा पतन कोई नहीं रोक पाएगा।-वकील अहमद
 

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