भर्ती व परीक्षा घोटालों पर सरकार क्यों बच रही जिम्मेदारी से

Edited By ,Updated: 20 Jun, 2024 06:00 AM

why is the govt avoiding responsibility on recruitment and examination scams

देश भर में परीक्षाओं को आयोजित करने वाली विभिन्न संस्थाओं पर उठते सवालों के बाद चयन प्रक्रियाएं कटघरे में हैं। बहुत बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों की प्रवेश परीक्षाओं या भर्ती  परीक्षाओं का आयोजन कम्प्यूटर युग में नई वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत करवाना...

देश भर में परीक्षाओं को आयोजित करने वाली विभिन्न संस्थाओं पर उठते सवालों के बाद चयन प्रक्रियाएं कटघरे में हैं। बहुत बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों की प्रवेश परीक्षाओं या भर्ती  परीक्षाओं का आयोजन कम्प्यूटर युग में नई वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत करवाना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। नीट की परीक्षाओं में एन.टी.ए. पर लगे आरोप जब तक सिद्ध होंगे या काबिल विद्यार्थियों का चयन होगा, तब तक न सिर्फ देर हो चुकी होगी, बल्कि बच्चों के मानसिक हालात पर इतना खराब असर होगा कि उसका अनुमान लगाना संभव नहीं है। चाहे प्रवेश परीक्षाएं हों या चयन परीक्षाएं, दोनों में ही यदि उंगली उठे तो निश्चित तौर पर गहन जांच होनी ही चाहिए और सरकारों को जिम्मेदारी तय करनी होगी।

यह दीगर है कि भारत के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकार किया कि नीट भर्ती में गड़बड़ हुई है। सच स्वीकार करना ही उनका धर्म भी था लेकिन लाखों बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करने का किसी भी आधिकारिक तंत्र को अधिकार नहीं है। दरअसल जब किसी भी तरह की प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है और अभ्यॢथयों की संख्या लाखों में हो तो हर प्रकार की एजैंसी एग्जाम करवाने का अलग तरीका अख्तियार करती है। यू.जी.सी. का अलग पैटर्न होता है और एन.टी.ए. का अलग और प्रदेश स्तर पर चयन एजैंसियां अलग-अलग तरीके से परीक्षाएं लेती हैं। वहीं राज्य चयन आयोग अथवा राज्य लोक सेवा आयोग की एग्जाम प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। जब सभी नए प्रयोगों को अपनाते हैं तो खामियां होना भी स्वाभाविक है। इन्हीं खामियों का फायदा पेपर लीक करने वाले उठा रहे हैं। देखने  में आया है कि पेपर करवाने वाले जिम्मेदार अफसर अधिकांश प्रक्रिया को गोपनीयता के दायरे में बताने का रूप धरते हैं जिसको चंद लोगों तक  सीमित रखा जाता है और पारदर्शिता की कमी रहती है। बस यहीं से गड़बड़ी होने की संभावना बन जाती है। 

हिमाचल प्रदेश में भी वर्ष 2006 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एम.बी.बी.एस. प्रवेश परीक्षा घोटाला हुआ था। तब नीट जैसी प्रक्रिया नहीं हुआ करती थी। हालांकि पेपर बेचने का खुलासा 2006 में हुआ था परंतु न जाने पहले कब से नकल करके भर्ती हुए डाक्टर, अब  बड़े अस्पतालों में इलाज कर रहे हैं। यह विडंबना ही है कि पूर्व के आरोपी, सबूतों के अभाव में पकड़े ही नहीं गए। यहां यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि घोटाले जब पकड़े जाते हैं तभी सामने आते हैं। डाक्टर भर्ती घोटाला तो एक विषय है लेकिन हाल ही के वर्षों में देखा जाए तो हिमाचल जैसे छोटे से प्रदेश में भर्ती घोटालों की भरमार रही है। वर्ष 2021 से लेकर 2022 तक 2 मुख्य  घोटाले हुए। पहला पटवारी भर्ती घोटाला और दूसरा पुलिस कांस्टेबल भर्ती घोटाला। उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। इसके बाद हमीरपुर स्थित राज्य चयन आयोग में पर्चे बिकने का पर्दाफाश हुआ। इनमें हिमाचल के कुल मिलाकर 9 लाख से अधिक युवाओं ने अलग-अलग परीक्षाओं में आवेदन भरे। 

यह सभी क्लास थ्री की परीक्षाएं थीं जिनमें न तो इंटरव्यू  होता है, न ही कोई अन्य आधार, एक्सटर्नल असैसमैंट का होता है। अब जब एस.आई.टी. और सी.बी.आई. ने जांच की तो पता चला कि कैसे एक बड़ा नैटवर्क पेपर चोरी का काम कर रहा था। तब सरकार को इसकी भनक नहीं लगी? या क्या परीक्षा करवाने वाली एजैंसी को मालूम नहीं था कि कुछ कमियां हैं? बहरहाल काबिल छात्रों का वक्त जाया हो गया और कई बड़े सवाल खड़े हो गए। सवाल यह उठा कि पुलिस भर्ती में कांस्टेबलों के आवेदन लाखों में आए। यह वह लोग भर्ती होने थे जो चोरों को पकड़ेंगे। सरकार ने इनका पेपर पुलिस विभाग से ही करवा दिया? पुलिस विभाग परीक्षा आयोजित करवाने वाली एजैंसी नहीं है, न ही पटवारी भर्ती के लिए राजस्व  विभाग कोई परीक्षा एजैंसी है। 

सबसे भद्दा मजाक तो हमीरपुर में राज्य चयन आयोग में अभ्यॢथयों से किया गया। राज्य विजीलैंस ने सरकार बदलते ही पेपर लीक करने वाले पकड़ लिए। यहां पर्चे बेचने का कार्यक्रम न जाने कब से चल रहा था। पर्चा बेचने वाले वही कर्मचारी थे जो वहां लंबे समय से एक ही दफ्तर में कार्य कर रहे थे। क्या इस गड़बड़ी का किसी को भी मालूम नहीं था? तब वहां अधिकारी व सरकार की नजर क्यों नहीं पहुंची। यह निर्णय अति उत्तम था कि हमीरपुर राज्य चयन आयोग को भंग कर दिया गया। विजीलैंस द्वारा यह कार्रवाई चुनावों से पहले क्यों नहीं की गई? यह भी बड़ा सवाल है। संभवत: इसलिए कि कांस्टेबल या पटवारी के घपले के साथ-साथ मुद्दा गर्म हो जाता। पूर्व में यह भी विचित्र मामले सामने आए कि विज्ञापन 300 पदों को भरने का निकाला गया हो, पर भरे गए 378  के पद। 

युवाओं के साथ मजाक करने वाली और रौंगटे खड़े करने वाली इन घटनाओं पर एक्शन, महज लीपापोती भर है। नीति नियंताओं को नहीं सूझा कि किसी भी भर्ती एजैंसी में गोपनीयता से संबंधित कार्य में 30 सालों से वही व्यक्ति कार्य कर रहे हैं? पेपर कहां छपना है, कौन छापेगा, किसके पास छपेगा, कौन अपनी हिफाजत में रखेगा, पेपर सैंटर क्या बार-बार वहीं होंगे, प्रश्न पत्र छापने के पैरामीटर क्या होंगे, प्रश्न बैंक क्या हैं आदि। बीते वर्षों से वही चंद लोग जानते हैं और करते हैं जैसा कि हमीरपुर राज्य चयन आयोग में हुआ। हिमाचल प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग पेपर लीक मामलों में अभी तक बचा है।-डॉ.रचना गुप्ता 

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