क्यों न जी.एस.टी. को ‘गुड एंड सिंपल’ टैक्स बनाया जाए

Edited By ,Updated: 26 Jun, 2024 05:30 AM

why not make gst a  good and simple  tax

एक जुलाई को वस्तु एवं सेवा कर यानी जी.एस.टी. लागू होने के 7 साल पूरे होने जा रहे हैं। 2017 से लागू इस टैक्स सिस्टम में कई सारे सुधारों की दरकार है। नई सरकार पहले 100 दिन के कार्यकाल में जी.एस.टी. को और सरल बनाने पर विचार करे।

एक जुलाई को वस्तु एवं सेवा कर यानी जी.एस.टी. लागू होने के 7 साल पूरे होने जा रहे हैं। 2017 से लागू इस टैक्स सिस्टम में कई सारे सुधारों की दरकार है। नई सरकार पहले 100 दिन के कार्यकाल में जी.एस.टी. को और सरल बनाने पर विचार करे। जी.एस.टी. दरों, छूट या इनपुट टैक्स क्रैडिट (आई.टी.सी.) व कुछ वस्तुओं व सेवाओं पर लागू टैक्स को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं। रिटर्न में मामूली चूक के कारण भी केंद्र व राज्य की जी.एस.टी. अथॉरिटी द्वारा कारोबारियों को जारी डिमांड नोटिस परेशानी का एक बड़ा कारण हैं। 

जी.एस.टी. अधिकारियों ने इसके लागू होने के पहले 1 साल के भीतर ही, यानी वित्त वर्ष 2018 की रिटर्न व आई.टी.सी. दावों में जाने-अनजाने हुई चूक पर 1,500 कारोबारियों को 1.45 लाख करोड़ रुपए के डिमांड नोटिस जारी कर दिए। एक नए टैक्स सिस्टम के शुरूआती दौर में ऐसी मामूली चूक से विवादों का बढऩा स्वाभाविक है लेकिन जी.एस.टी. के तहत विवाद समाधान को ‘गुड एंड सिंपल’ टैक्स यानी अच्छे एवं सरल कर के रूप में स्थापित करने के लिए कई सारे सुधारों की जरूरत है। हालांकि 22 जून को जी.एस.टी. काऊंसिल की 53वीं बैठक में डिमांड नोटिस पर ब्याज व जुर्माने की माफी का ऐलान किया गया, पर जब तक इन विवादों का पूरी तरह से निपटान नहीं हो जाता, तब तक नोटिस की तलवार कारोबारियों के सिर पर लटकी है। इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि क्या जी.एस.टी. अधिकारी इतने बड़े पैमाने पर डिमांड नोटिस या कारण बताओ नोटिस का सही समय पर सही निपटान कर पाएंगे? कई मामलों में लंबी मुकद्दमेबाजी से राजस्व व व्यापार दोनों के लिए अनिश्चितताएं बढ़ जाती हैं, जिससे विवाद समाधान व्यवस्था पर लंबित मामलों का बोझ बढ़ता जाता है। 

टैक्स दरों को और आसान करके संभावित विवादों को काफी हद तक कम किया जा सकता है क्योंकि कई सारी मिलती-जुलती वस्तुओं व सेवाओं पर जी.एस.टी. की अलग-अलग दरें लागू हैं। यदि ये एक समान दरों के दायरे में आएंगी तो कारोबारी मामूली चूक से भी बच सकेंगे। उदाहरण के लिए बेकरी की वस्तुओं में ब्रैड से मिलती-जुलती वस्तुओं पर ही जी.एस.टी. की अलग-अलग दरें परेशानी का कारण हैं। जी.एस.टी. विवादों पर अंकुश लगाने व इनके जल्दी और निष्पक्ष निपटान के लिए जी.एस.टी. दरों को युक्तिसंगत बनाना तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि टैक्स कलैक्शन में बढ़ौतरी के लिए अस्पष्टताओं को दूर कर वर्तमान टैक्स स्ट्रक्चर को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है। इसमें जी.एस.टी. की मौजूदा चार दरों का 2 या 3 दरों में विलय किया जा सकता है। दरें घटाए जाने से टैक्स चोरी जैसे मामलों का भी निर्णायक समाधान होने की संभावना बढ़ेगी। 

1200 से अधिक वस्तुओं व सेवाओं पर जी.एस.टी. की 4 स्लैब दरों में 5, 12, 18 व अधिकतम 28 प्रतिशत लागू है। इसके अलावा कुछ वस्तुओं व सेवाओं पर जीरो, 0.25, 1.5 और 3 प्रतिशत की विशेष दरें भी लगती हैं। मजे की बात यह है कि कई खाद्य पदार्थों पर 5 से 18 प्रतिशत जी.एस.टी. लगता है जबकि सोने के जेवरों पर सिर्फ 3 प्रतिशत। जी.एस.टी. के अस्तित्व में आने से पहले ट्रैक्टर समेत तमाम कृषि उपकरण टैक्स मुक्त थे, लेकिन इन पर भी लागू 12 प्रतिशत जी.एस.टी. में बदलाव बारे तत्काल पुनॢवचार की जरूरत है ताकि देश के लाखों गरीब किसान भी बेहतर खेती के लिए सस्ते उपकरण खरीद सकें। 

केंद्र व राज्य सरकारों के स्तर पर ईमानदार करदाताओं के लिए प्रक्रिया सरल बनाने को जी.एस.टी. प्रशासन सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए। फर्जी चालान, फर्जी आई.टी.सी. क्लेम व टैक्स चोरी जैसे गंभीर अपराधों से निपटने के लिए जी.एस.टी. एक्ट की धारा 132 के तहत गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रैडिट या अधिक रिफंड लेने पर 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है। ऐसे में नियमों का सरलता से पालन तय करने के लिए जी.एस.टी. अधिकारियों को अपने व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा। कड़ा कानून केवल फंसाने का जरिया नहीं समझना चाहिए। टैक्स चोरी जैसा अपराध होने की आंशका के बावजूद इसकी रोकथाम के प्रयास तेज करने की बजाय अपराध होने देने का इंतजार करना व फिर दंडित करने का दबाव बनाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

‘नॉन कंप्लायंसेज’ रोकने व अधिकांश करदाताओं, खासकर उन एम.एस.एम.ईज की मदद करने के लिए एक विश्वसनीय रणनीति की जरूरत है, जो जानबूझकर कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे बल्कि अनजाने में चूक कर जाते हैं। रिटर्न जांच, ऑडिट या इंफोर्समैंट के दौरान पाई गई साधारण डाटा गलतियों, विसंगतियों या नॉन कंप्लायंसेज को कम करने के लिए विभाग द्वारा एडवाइजरी जारी करने से कारोबारियों को विवाद से बचाया जा सकता है। करदाताओं को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि तेजी से बढ़ते डिजिटल माहौल में उनका रिटर्न डाटा सटीक, सुसंगत व फुलप्रूफ हो। इससे मामूली चूक से भी बचने में मदद मिलेगी जो कई बार बड़े विवादों का कारण बन सकती है। डाटा गुणवत्ता के प्रति अधिक संवेदनशीलता से डिमांड नोटिस जैसे मामलों में भारी कमी लाई जा सकती है। 

पंजाब जैसे राज्य  में ‘इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर’ के तहत आने वाली औद्योगिक इकाइयों, जिनके तैयार माल की तुलना में कच्चे माल पर अधिक जी.एस.टी. लगता है, को राज्य सरकार अपनी इंडस्ट्रियल पॉलिसी के तहत निश्चित पूंजी निवेश (एफ.सी.आई.) पर नकद प्रोत्साहन से इंकार कर रही है। ऐसे मुद्दों के निपटान के लिए एक राष्ट्रीय ऑनलाइन मंच की मदद से केंद्रीय व राज्य प्रशासन एक ऐसा समाधान शुरू कर सकते हैं जिससे करदाताओं को कई अथारिटीज व अदालतों के चक्कर से बचाया जा सकता है। 

केंद्र सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि कई चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में केंद्र व राज्य की जी.एस.टी. अथारिटीज द्वारा संयुक्त रूप से जी.एस.टी. ऑडिट कराया जाएगा, ऐसे समाधान का विस्तार इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के तहत आने वाले कारोबार पर भी लागू किया जा सकता है। निष्पक्षता व समयबद्धता से विवादों के निपटान को जी.एस.टी. सुधारों में शामिल करना समय की मांग है।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं) -डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
 

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!