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जमीन बेचकर, कर्ज उठाकर विदेश क्यों जाएं

Edited By ,Updated: 06 Mar, 2025 05:55 AM

why sell land take loan and go abroad

भारत सरकार शुरू से ही विदेश जाने वालों के प्रति चिंतित, सजग तथा संबंधित रही है। ‘इंडियन पासपोर्ट एक्ट’ 1967 से लागू हुआ है। तभी से पासपोर्ट प्राप्त करना अपेक्षाकृत सरल हो गया है। उससे पहले पासपोर्ट प्राप्त करना काफी कठिन था। कुछेक लोगों को ही बड़ी...

भारत सरकार शुरू से ही विदेश जाने वालों के प्रति चिंतित, सजग तथा संबंधित रही है। ‘इंडियन पासपोर्ट एक्ट’ 1967 से लागू हुआ है। तभी से पासपोर्ट प्राप्त करना अपेक्षाकृत सरल हो गया है। उससे पहले पासपोर्ट प्राप्त करना काफी कठिन था। कुछेक लोगों को ही बड़ी मुश्किल से पासपोर्ट मिलता था। पासपोर्ट धारक को विदेश जाने के लिए ‘प्रोटैक्टर ऑफ एमीग्रेन्टस’ अर्थात अप्रवासियों को संरक्षक से अनुमति प्राप्त करके उसकी मोहर लगवानी पड़ती थी। 

इस मोहर का उद्देश्य था पासपोर्ट धारक विदेश जाकर किसी प्रकार से परेशान तथा शोषित न हो तथा केवल सक्षम व्यक्ति ही विदेश जाएं। इस प्रावधान को सन् 2007 में बदलकर ‘एमीग्रेशन चैक नॉट रिक्वायरड’ पासपोर्ट पर अंकित करना शुरू हो गया। इसके लिए भी कुछ खास शर्तें हैं। इनका उद्देश्य भारतीयों को विदेश में संरक्षण देना, सुनिश्चित करना था परन्तु पासपोर्ट धारकों ने इस प्रक्रिया को मात्र एक औपचारिकता के रूप में लिया तथा उसका मूल उद्देश्य दरकिनार कर दिया। विदेश जाकर वहां बसने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कानूनी ढंग से बात करें तो पढ़ाई के लिए वीजा प्राप्त करके पढ़ाई पूरी करके अन्य औपचरिकताएं व कागजात पूरे करके विदेश में बसने की इजाजत लेना अमरीका सहित कई अन्य देश वहां बसे अप्रवासी भारतीयों के परिवारों के सदस्यों को वहां पहुंचाने की इजाजत देते हैं। इसे ‘फैमिली पटीशन’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया में संबंध की निकटता के आधार पर कम या ज्यादा समय लग सकता है।

विदेशी लड़के-लड़की के साथ शादी करके भी जाया जा सकता है। विदेश घूमने के लिए भी वीजा का प्रावधान है। अमरीका जाकर बसने, वहां का स्थायी निवासी बनने तथा ‘ग्रीन कार्ड’ प्राप्त करने के लिए एक ‘इन्वैस्टमैंट वीजा ई-बी 5’ का भी प्रावधान सन 1990 से चला आ रहा है। इसके लिए 8 लाख अमरीकन डालर का निवेश करना होता था। उस समय अमरीकन डालर की कीमत भारतीय रुपए के मुकाबले 17 रु. थी। अब अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे बदलकर नया रूप ‘गोल्ड कार्ड’ दे दिया है। इसके लिए 50 लाख अर्थात 44 करोड़़ रुपए का निवेश करना जरूरी हो गया है।  इसमें पति-पत्नी सहित 21 वर्ष से कम बच्चों को भी स्थायी तौर पर रहने की अनुमति है। कुछ लोग विदेश में बसने के लिए ‘विजिटर वीजा’ प्राप्त करने के पश्चात वहां जाकर वापस नहीं आते किसी प्रकार वकील आदि का सहारा लेकर वर्क परमिट बनवाकर या वहां के निवासी से शादी करके मामले को लम्बी प्रक्रिया में डाल देते हैं। 

अनपढ़ व्यक्ति भी पैसे के सहारे किसी लड़की को ‘आईलैट्स’ के ‘स्कोर’ के सहारे विदेश की ‘पी.आर.’ (स्थायी निवासी) लेकर वहां भेज देते हैं, यह सोचकर कि वहां जाकर वह लड़के को बुला लेगी परन्तु इसमें से अधिकतर लड़कियां, विदेश की चकाचौंध, स्वतंत्रता या फिर किसी  विवशता के कारण, अपने सभी वायदों व उसूलों को ताक पर रखते हुए लड़के के साथ धोखा करती है तथा उसे भूल जाती है। विदेश में किसी अन्य के साथ घर बसा लेती है तथा भारत में बैठा लड़का ठगा-सा महसूस करता है। मारे शर्म के अपना मुंह भी नहीं खोलता। ऐसा अक्सर हो रहा है।गैर-कानूनी ढंग से विदेश जाने की प्रक्रिया में ‘डंकी रूट’ भी आता है। ऐसा करना, ‘सिर हथेली पर रख कर चलने’ के समान होता है। ऐसा वह लोग करते हैं जिनके सिर पर विदेश जाने का भूत सवार होता है तथा जिन्हें अपनी जान की परवाह नहीं होती।
एजैंटों द्वारा गुमराह किए गए व सब्जबाग दिखाए गए यह युवक ‘जिंदगी गंवाने वाले जोखिम भरे हालातों से जूझने को विवश हो जाते हैं।’

इस प्रक्रिया में विदेश जाने वाले अपनी मां-रूपी जमीन के एकड़ (किल्ले) बेच देते हैं, उच्च ब्याज दर पर कर्ज उठाते हैं। मकान, जायदाद, जमीन, गहने या तो गिरवी रखते हैं या बेच ही देते हैं। ऐसा कल के उज्ज्वल भविष्य के दृष्टिगत किया जाता है परन्तु वह भूल जाते हैं कि विदेश जाकर हर प्रकार की तंगी काटकर अपनों से दूर रहकर 5-7 सालों बाद जो थोड़ा-बहुत पैसा वह जमा करके लाते हैं, उससे रुपए के अवमूल्यन, मुद्रास्फीति तथा महंगाई के दृष्टिगत इतना कुछ भी नहीं बन पाएगा जितना वह बेचकर विदेश गए थे। जमीन के किल्ले (एकड़) बेचने वाले पशुओं के कीले (खूंटे) गढऩे में भी असमर्थ हो जाएंगे। अपनों को प्रौढ़ या बूढ़ा हो चुका पाएंगे या फिर भगवान को प्यारे हो चुके।

स्वदेश व विदेश का अंतर हमें इस बात से समय लेना चाहिए कि हाल ही में अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गैर-कानूनी अवैध अप्रवासियों के विरुद्ध एक अभियान छेड़ रखा है तथा उन्हें निर्वासित कर रहे हैं। भारत में भी ऐसे लोग वापस भेजे जा रहे हैं जो अमरीका में गैर-कानूनी ढंग से रह रहे हैं तथा जिनके पास वैध कागजात नहीं हैं। कोई भी देश, भारत भी, गैर-कानूनी ढंग से रह रहे विदेशियों को घुसपैठिया, जासूस या अपराधी के रूप में देखता है तथा यथासंभव उनको उनके देश वापस भेजने का प्रयास करता है। ऐसा अनेकों वर्षों से होता आया है। ट्रम्प भी यही कुछ कर रहे हैं। अब तक चार जहाज भरकर, भारतीय डिपोर्ट किए गए हैं। परन्तु ऐसा करते हुए अपनाए गए ढंग अमानवीय हैं तथा निदंनीय हैं। अपने को मानवाधिकारों का संरक्षक कहने वाला अमरीका खुद मानवाधिकारों का हनन कर रहा है।-एस.के. मित्तल     

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