संविधान पर शोर-शराबा क्यों?

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2024 05:29 AM

why the hue and cry over the constitution

देश भर में आज संविधान को लेकर सभी राजनीतिक दल हल्ला-गुल्ला कर रहे हैं परंतु देश के सामने जो वास्तविक चुनौतियां हैं उन्हें राजनेता  गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। 1980 से अब तक भारत की ही एक स्टेट जम्मू-कश्मीर आतंकवाद की भट्ठी में जल रही है।

देश भर में आज संविधान को लेकर सभी राजनीतिक दल हल्ला-गुल्ला कर रहे हैं परंतु देश के सामने जो वास्तविक चुनौतियां हैं उन्हें राजनेता  गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। 1980 से अब तक भारत की ही एक स्टेट जम्मू-कश्मीर आतंकवाद की भट्ठी में जल रही है। रक्त बीज की तरह वहां आतंकवादी लोगों की जानें ले रहे हैं और फिर उतने ही पैदा हो रहे हैं। कौन गंभीर है इस ओर दो टूक फैसला होना चाहिए। मोदी साहिब सर्व शक्तिमान हैं। जम्मू-कश्मीर के इस चैलेंज को स्वीकार करें। नाहक पुलिस और फौजियों को शहीद करवा रहे हैं। आर-पार हो जाना चाहिए। 

गृह मंत्री अमित शाह तभी राजनीति के चाणक्य कहलवाने के योग्य होंगे यदि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले को नक्सल मुक्त करवाएंगे। व्यर्थ चाणक्य कहलाने का क्या लाभ। मणिपुर साल भर से खूनी खेल खेल रहा है, चाणक्य नीति बार-बार वहां फेल क्यों हो रही है? क्या मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं? चौथी चुनौती आसमान छूती महंगाई पर सरकार चुप क्यों है? आवश्यक वस्तुओं के दाम साधारण व्यक्ति के हाथ से छूट रहे हैं। और राजनेता संविधान के मुद्दे को व्यर्थ उछाल रहे हैं। पक्ष-प्रतिपक्ष संघ प्रमुख मोहन भागवत के उद्घोषण पर अमल करें। संविधान को कुछ नहीं होगा। जून 1975 को संविधान को छेड़ कर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देख लिया। भारत की जनता को एक-एक चीज 50 वर्ष पहले की याद है। कृपया राजनीतिक दल जनता का ध्यान मत भटकाएं। भारत के लोगों की उपरोक्त ङ्क्षचताओं पर सभी राजनेता एकमत से ङ्क्षचतन करें। चुनौतियों का निधान निकालें। 

भारत के संवैधानिक इतिहास में 26 नवम्बर 1949 का दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन संविधान सभा ने भारतीय लोगों के नाम पर स्वतंत्र भारत का संविधान अर्पित किया। संविधान वह संवैधानिक पुस्तक है जिसके द्वारा लोगों ने अपनी सरकारें और प्रशासन अपने ढंग से चलाने का संकल्प लिया। भारत के लोगों ने लोकतंत्र की सारी शक्तियां अपने ऊपर ले लीं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सारी शक्तियां जनता के हाथ आ गईं। संसद में और विधानसभाओं में जनमत का प्रतिनिधित्व भारत के लोगों के हाथ आ गया। नगर निगमों, नगर पालिकाओं और पंचायतों का प्रशासन भारत के लोगों ने स्वयं संभाल लिया। केंद्र से लेकर स्थानीय स्तर तक लोकराज स्थापित हो गया। लोगों को अपनी इच्छानुसार सरकारें चुनने का अधिकार प्राप्त हो गया। संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जिसकी सारथी भारत की जनता है। इस संविधान को लोगों पर किसी सरकार या राजनेता ने नहीं लादा बल्कि भारत की जनता ने स्वयं अपने आपको अर्पित किया क्योंकि जन कल्याण इसी में है। भारत एक लोक कल्याणकारी राष्ट्र है। 

इस संविधान को कोई डिक्टेटर, कोई तानाशाह या सेना का कोई भी अफसर बदल नहीं सकता। इस संविधान के मौलिक प्रावधानों को बदला नहीं जा सकता। हां कोई सरकार संसद में दो तिहाई मत प्राप्त कर ले तो इसमें कुछ संशोधन हो सकते हैं परंतु मूल संवैधानिक ढांचे को बदला तब भी नहीं जा सकता। भारत एक लोकतांत्रिक सर्व सत्ता सम्पन्न, सार्वभौमिक गण्राज्य है। इसमें भारत के लोगों के मौलिक अधिकार निहित हैं। उन मौलिक अधिकारों को कोई छीन नहीं सकता। हां संविधान में संशोधन कर इसमें भारत के लोगों के कुछ कत्र्तव्य अवश्य डाल दिए गए हैं। हां यह भी सत्य है कि आज से 50 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी गद्दी बचाने के लिए संविधान से आपातकाल घोषित कर 25 जून,1975 को इससे छेड़छाड़ जरूर की थी परंतु 21 महीनों के इस आपातकाल से इंदिरा जी को कुछ हासिल नहीं हुआ। उलटा उनकी गद्दी जाती रही। वर्तमान समय में संसद के प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी अवश्य अपनी दादी के कार्य से क्षुब्ध तो जरूर  होंगे। तब देश जेलखाना बन गया था। प्रैस का गला घोंट दिया गया था। 

अत: कम से कम राहुल गांधी तो संविधान बदलने का हौवा खड़ा न करें। भारत का संविधान भारत के लोगों के लिए, उनके अधिकारों के लिए एक सुरक्षा कवच है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी संविधान को बदलने का एक भय इंडिया गठबंधन ने लोगों के मनों में बिठा दिया। इसका मोदी-अमित शाह की जोड़ी को नुकसान भी हुआ। इस जोड़ी के ‘400 पार’ के नारे ने संविधान बदलने की भावनाओं की हवा निकाल दी। सरकार वही चलेगी जो जनमत का और संविधान का सत्कार करेगी। सरकार वही बनेगी जो लोगों की इच्छाओं का सम्मान करेगी। अन्यथा पांच साल के अंतराल के बाद बदल देगी। 

संविधान सभी भारतीय नागरिकों को समान न्याय के अवसर प्रदान करता है। धर्म, सम्प्रदाय, लिंग, रंग-रूप, वेषभूषा, जात-पात, स्टेटस, स्त्री-पुरुष का भेद न्याय के सामने नहीं चलेगा। न्याय पाना सबका अधिकार है। सब कानून के अधीन रह कर चलेंगे। मानव संसाधनों पर सभी भारत वासियों का समान अधिकार रहेगा। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। सरकारों का मुख्य उद्देश्य अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना होता है। भारत में रंग, जाति, सम्प्रदाय, वर्ग या पहनावे पर किसी को प्रताडि़त नहीं किया जाएगा। यह सरकारों द्वारा मुफ्त बिजली, पानी, राशन गरीबों तक पहुंचाना कल्याणकारी राज्य की पहचान है। परस्पर स्नेह, प्यार और भाईचारा बना कर रखना जनता का मौलिक कत्र्तव्य है। अपराधी को दंड मिले, बेकसूर को पूरा न्याय मिले। यह सरकार की ड्यूटी है। प्रत्येक नागरिक को राजनीति में या समाज में ऊंचे से ऊंचा पद पाने का अधिकार है। नौकरी में सब लोगों को समान अवसर प्राप्त हों। 

हमारी आपसी फूट के कारण विदेशी आक्रमणकारी हम पर हावी होते रहे। हम आपस में लड़ते-झगड़ते रहे और विदेशी इसका लाभ उठा हम पर राज करते रहे। संविधान निर्माताओं ने इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया कि देश की एकता-अखंडता किसी भी कीमत पर भंग न हो। जो भी नागरिक भारत में रह कर इस धरती का अन्न खाकर इससे गद्दारी करेगा उस पर कानूनी कार्रवाई होगी। अपराधी जेल की सलाखों के पीछे। हमारा संकल्प है कि इस देश का प्रत्येक नागरिक देश को विकास की ओर ले जाएगा। संविधान एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा सरकार की उपलब्धियों का अवलोकन किया जा सकेगा। संविधान देश की आत्मा है। भारत की स्वतंत्रता और उसकी अस्मिता का प्रत्येक नागरिक सम्मान करेगा। हर भारतवासी साहसी बनेगा और इसकी एकता को खंडित नहीं होने देगा। जब यह सब करने में हम तत्पर हैं तो नेता प्रतिपक्ष  राहुल गांधी जनता में संविधान बदल देने का आडम्बर क्यों रचें? मोदी साहिब भी विचार करें, चाणक्य से मंत्रणा कर लें कि कहां चूक हो रही है। जनता का मोहभंग क्यों हो रहा है। राजा अपना फर्ज पहचानें। मैं नहीं यह देश उन्नति करे। 

ऐसी सोच सबकी बने। पक्ष-प्रतिपक्ष के भेद मिटा डालें। देश सबका है। सबको इसी देश में जीना-मरना है। सब भारतवासियों का उदय हो। सब साहसी बनें और देश को नि:स्वार्थ भाव से आगे ले जाएं। कोई समुदाय इस प्यारे से भारत में घुटन महसूस न करे। सबका साथ, सबका विकास।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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