mahakumb

क्या सुप्रीम कोर्ट की चिंता पर चेतेंगे राजनीतिक दल?

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2025 05:33 AM

will political parties pay heed to supreme court s concerns

गत दीवाली पर घर की रंगाई-पुताई और थोड़ी बहुत मुरम्मत का काम करने वालों को ढूंढते-ढूंढते पसीना आ गया। जो ठौर-ठिकाने हर शहर, कस्बों में लेबर चौक या मजदूर अड्डों के रूप में पहचाने जाते हैं, वे वीरान थे। एक ओर देश की जनसंख्या दिनों दिन बढ़ रही...

गत दीवाली पर घर की रंगाई-पुताई और थोड़ी बहुत मुरम्मत का काम करने वालों को ढूंढते-ढूंढते पसीना आ गया। जो ठौर-ठिकाने हर शहर, कस्बों में लेबर चौक या मजदूर अड्डों के रूप में पहचाने जाते हैं, वे वीरान थे। एक ओर देश की जनसंख्या दिनों दिन बढ़ रही है। दूसरी ओर काम के लिए लोग ढूंढे नहीं मिल रहे। अमूमन पूरे देश में ऐसे हालातों का सामना करना पड़ रहा है। वजहों के दूरगामी परिणामों को सोचकर ही डर लगता है। क्या हम बहुत जल्द निकम्मों का देश कहलाएंगे? ऐसा भी नहीं कि लोग काम नहीं करना चाहते। जब घर बैठे काफी कुछ मुफ्त मिलेगा तो कोई पसीना क्यों बहाए! रेवड़ी कल्चर की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने लोगों को मुफ्तखोरी का आदी बनाना शुरू कर दिया। 

इस पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया लेकिन तीखी चिंताजनक टिप्पणी ने देश में एक नई बहस शुरू कर दी। आखिर ये है क्या? देश में वोट के बदले मुफ्त बांटने की शुरूआत पहली बार 1967 में हुई। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में द्रमुक ने एक रुपए में डेढ़ किलो चावल का वायदा किया और इससे कांग्रेस बुरी तरह धराशायी होकर सत्ता से बेदखल हो गई। अकाली दल ने भी पंजाब में किसानों को मुफ्त बिजली देने का वायदा किया। इस तरह शुरू हुआ सिलसिला धीरे-धीरे सभी राज्यों में संक्रमण जैसे फैलता गया। कहीं कम कहीं ज्यादा की होड़ मच गई। अब अमूमन हर चुनावों के दौरान मुफ्त की रेवड़ी यानी फ्रीबीज देने की राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्धा चरम पर है। जहां लोग भी ज्यादा निजी फायदा देख वोट देते हैं वहीं राजनीतिक दलों का मकसद महज चुनाव जीतना होता है। राज्यों, उसकी विकास योजनाओं पर क्या दुष्परिणाम हो रहा सभी बेफिक्र हैं। साल 2022 में भारतीय रिजर्व बैंक ने मुफ्त की योजनाओं को ‘लोक कल्याणकारी उपाय’ तो बताया लेकिन इनसे जुड़े खर्चों पर जबरदस्त चिंता जाहिर की। 

राज्यों के मौजूदा संसाधनों के साथ सामाजिक-आर्थिक बुनियादी ढांचों और विकास की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। फ्रीबीज की कोई तय परिभाषा नहीं है। पहली बार जुलाई 2022 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अक्तूबर 2024 में आखिरी बार सुनवाई के दौरान केन्द्र को मुफ्त की रेवड़ी परिभाषित करने को कहा गया। यकीनन देश के करदाताओं के पैसों का ऐसा इस्तेमाल हरगिज सही नहीं है। इस बाबत भारतीय रिजर्व बैंक की 2023 की एक रिपोर्ट ‘स्टेट फाइनांस ए रिस्क एनालिसिस’ यानी किसी राज्य के वित्त में मौजूद जोखिमों का विश्लेषण पर गहरी चिंता जताई गई। इसमें खास तौर पर पंजाब, बिहार, राजस्थान, केरल और प. बंगाल का जिक्र है जिनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है। मुफ्त योजनाओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी है जिसकी शुरूआत दक्षिण से हुई।

पहले मिक्सी, टी.वी., मुफ्त साड़ी, कंबल, टी.वी., लैपटॉप, साइकिल, बिजली-पानी, गेहूं-चावल का वादा किया जाता था। अब सीधे खातों में पैसे भेजने की गारंटी है जो कई राज्यों में जारी है। 2020 में केंद्र ने मुफ्त राशन योजना शुरू की और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलने लगा। आयुष्मान भारत योजना में 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज तो किसान सम्मान निधि में 4 महीने में 2000 रुपए की सहायता दी जाती है। 2016 से ‘उज्ज्वला’ योजना में महिलाओं को मुफ्त सिलैंडर तो 2014 से गरीब तबके लिए पी.एम. आवास योजना जारी है। जहां मार्च 2019 तक सभी राज्यों का कर्ज 47.86 लाख रुपए था जो मार्च 2023 तक बढ़कर 76 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा हो गया। अभी मुफ्त योजनाओं को अमल में लाने वाले राज्यों की कर्ज की स्थिति देख चिंता होती है। 

मध्यप्रदेश में ‘लाडली बहना’ के चलते 3.8 लाख करोड़, महाराष्ट्र में ‘लाड़की बहीणा’ योजना की खातिर 7.8 लाख करोड़, कर्नाटक राज्य सरकार की 5 गारंटी खातिर 6.65 लाख करोड़, पंजाब में मुफ्त की बिजली और बस यात्रा हेतु 3.74 लाख करोड़, हरियाणा में ‘लाडो लक्ष्मी’ योजना की खातिर 3.17 लाख करोड़ तो झारखंड में ‘महतारी’ योजना खातिर 1.09 लाख करोड़ रुपयों का कर्ज पहले ही चढ़ चुका है। 2024-25 के बजट में राज्य के वित्तीय घाटे का अनुमान 1.10 लाख करोड़ था जो अब 2 लाख करोड़ के पार जाना संभावित है। राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के हथियार के तौर पर इसका इस्तेमाल जारी है। मध्य प्रदेश में  ‘लाडली बहना’ योजना चलाकर भाजपा ने महिलाओं को ऐसा लुभाया कि पहले के मुकाबले प्रचंड बहुमत से जीती। ‘लाड़की बहणा’ योजना ने महाराष्ट्र में जादू कर भाजपा गठबंधन की शानदार वापसी की। ‘मंईया सम्मान’ योजना ने झारखंड में जे.एम.एम. गठबंधन को फिर कुर्सी पर बिठाया। यही कर के दिल्ली में भी भाजपा ज्यादा लुभावने तरीकों से मतदाताओं तक पहुंची और 27 बरस बाद शानदार जीत हासिल की।

दुनिया में कई देश अपने सभी नागरिकों को कुछ अहम और लोकोपयोगी सुविधाएं मुफ्त देते हैं। चैक रिपब्लिक, इटली, फ्रांस, स्पेन, ग्रीस में शिक्षा। स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, डेनमार्क, जर्मनी में बेहद सस्ती उच्च शिक्षा। इंगलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, स्वीडन, ब्राजील, डेनमार्क में अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं तो लक्जेमबर्ग और बेल्जियम, स्वीडन के कुछ शहर मुफ्त बस सेवा देकर प्रदूषण कम करने की भूमिका निभा रहे हैं। चीनी दार्शनिक लाओ त्जु ने सच कहा था  किसी व्यक्ति को एक मछली देकर उसे एक दिन का भोजन दे देंगे। लेकिन उसे मछली पकडऩा सिखा देंगे तो जीवन भर भोजन दे सकेंगे। वाकई मुफ्त देने की बजाय लोगों को आत्मनिर्भर बनने की सीख दी जाए। भारतीय परिवेश के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है। लेकिन फ्रीबीज से भारत में परजीवियों का एक वर्ग बनता जा रहा है जो चिंताजनक है। इसे रोकना ही होगा।-ऋतुपर्ण दवे

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!