Edited By ,Updated: 30 Oct, 2024 05:40 AM
यदि भारत का लोकतंत्र एक व्यक्ति, एक वोट के सिद्धान्त पर आधारित है, तो चुनाव एक परिवार पर निर्भर है, चाहे महाराष्ट्र हो, झारखंड या कोई अन्य राज्य। किंतु इस बार सबकी निगाहें केरल की वायनाड सीट के उपचुनाव पर लगी हैं, जहां कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार...
यदि भारत का लोकतंत्र एक व्यक्ति, एक वोट के सिद्धान्त पर आधारित है, तो चुनाव एक परिवार पर निर्भर है, चाहे महाराष्ट्र हो, झारखंड या कोई अन्य राज्य। किंतु इस बार सबकी निगाहें केरल की वायनाड सीट के उपचुनाव पर लगी हैं, जहां कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार की प्रियंका को चुनावी मैदान में उतारा है क्योंकि राहुल ने इस सीट से त्यागपत्र दे दिया था।
35 वर्ष बहुत लंबी अवधि होती है किंतु राजनीति में इसे लंबी अवधि नहीं माना जाता। प्रियंका गांधी 35 वर्षों से चुनाव प्रचार कर रही हैं। अपने परिचय में उन्होंने अपने लिए जन समर्थन मांगा है। वे 2019 में औपचारिक रूप से राजनीति में आईं और कांग्रेस की महासचिव बनीं तथा उसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में भारी हार का सामना करना पड़ा किंतु इस वर्ष चुनाव प्रभारी के रूप में उन्हें हिमाचल में आपवादिक जीत मिली। नि:संदेह वह करिश्माई नेता हैं और उनकी सूरत अपनी दादी इंदिरा से मिलती है। उनमें स्पष्टता और आत्मविश्वास है और वह जल्दी से लोगों से जुड़ जाती हैं। गांधी परिवार के एक निष्ठावान नेता का कहना है कि वह जन्मजात राजनीतिक रूप से कुशल हैं और उनमें ऐसी क्षमता है कि भीड़ को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं, जबकि राहुल गांधी सौम्य हैं।
तथापि उनका राजनीतिक जीवन अभी कुछ खास उल्लेखनीय नहीं है। उन्हें कोई सक्रिय राजनीतिक अनुभव नहीं। वह सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी की चुनाव प्रबंधक रही हैं और उन्होंने उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में चुनावों के दौरान कुछ भाषण दिए हैं। इससे प्रश्न उठता है कि प्रियंका का चुनाव प्रचार कितना सघन होगा? क्या उनके लिए जीत आसान होगी, विशेषकर इसलिए भी कि उनके पति राबर्ट वाड्रा कई घोटालों से जुड़े हुए हैं। क्या वह अपनी दादी इंदिरा गांधी के बेलछी नरसंहार के राजनीतिक समय की तरह लाभ उठा पाएंगी? हालांकि वायनाड उनके लिए एक सुरक्षित सीट है। वायनाड निर्वाचन क्षेत्र प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त रहा है और वहां कठोर राजनीति की आवश्यकता है।
प्रियंका को वायनाड से खड़ा करने से विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस इस अलोचना से बचना चाह रही है कि गांधी परिवार ने दक्षिण को नजरंदाज किया, हालांकि इस क्षेत्र से कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिल रहा है। प्रियंका के राजनीति में प्रवेश से न केवल कार्यकत्र्ताओं में जोश आएगा, अपितु वह यह भी संदेश देंगी कि वह अपने भाई के साए से बाहर निकल गई हैं और अपने भाई व मां के साथ मिलकर कांग्रेस नेतृत्व पर नेहरू-गांधी परिवार की पकड़ मजबूत तथा पार्टी का भविष्य तय करने में अपनी भूमिका की पुष्टि कर रही हैं। देखना यह है कि वह मतदाताओं का दिल जीत पाती हैं या नहीं। कांग्रेस उनकी उपस्थिति से लाभान्वित होगी। प्रियंका राहुल गांधी की छवि को प्रभावित किए बिना उन्हें हर संभव सहायता करने का प्रयास करेंगी। उनके विरोधी राहुल गांधी की इस टिप्पणी की आलोचना कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रियंका को चुनकर वायनाड के लोग यह सुनिश्चित करेंगे कि वायनाड को दो सांसद मिलेंगे एक आधिकारिक और एक अनाधिकारिक। शायद वे इस निर्वाचन क्षेत्र के प्रति भाई-बहन के समर्पण को प्रदर्शित करना चाहते हैं किंतु उनके इस वक्तव्य का तात्पर्य यह निकाला गया कि प्रियंका राहुल की प्रॉक्सी होंगी।
प्रियंका के चुनावी राजनीति में प्रवेश का एक पहलू यह भी है कि यदि वह राहुल पर भारी पड़ीं और उन्होंने राहुल को निरर्थक साबित किया और एक सत्ता का केन्द्र बनीं तो यह कांग्रेस के लिए विनाशक हो सकता है। एक पुराने कांग्रेसी नेता का कहना है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतींं। इसके अलावा वे न तो इंदिरा हैं और न ही सोनिया, जिन्होंने कांग्रेस के भाग्य को चमकाया था। उनकी बौद्धिक क्षमता का अभी परीक्षण नहीं हुआ है। यह सही है कि वह अभी परिवार के गढ़ में सफल रही हैं, किंतु वह गढ़ पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता। प्रियंका गांधी अपने पति राबर्ट वाड्रा के विवादित भूमि सौदों और गलत तरीकों से अर्जित संपत्ति का बचाव कर रही हैं। कांग्रेस के पहले जमाई राजा पर दिल्ली स्थित भवन निर्माण कंपनी डी.एल.एफ. से अनुचित लाभ प्राप्त करने का आरोप है, जहां उनकी संपत्ति 2007 में 50 लाख रुपए से बढ़कर 2012 में 300 करोड़ रुपए हो गई थी।
प्रियंका ने राबर्ड वाड्रा की चल और अचल संपत्ति क्रमश: 37 करोड़ और 27 करोड़ रुपए दर्शाई है। यही नहीं, प्रवर्तन निदेशालय ने वाड्रा पर मनी लांड्रिंग ऑर अवैध रूप से विदेशी संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया है, जिसमें वर्ष 2005 से 2010 के बीच यू.पी.ए. सरकार के दौरान रक्षा और पैट्रोलियम सौदों में रिश्वत से प्राप्त राशि से 12 मिलियन पाऊंड मूल्य की लंदन में 2 बड़ी संपत्तियां और 6 फ्लैट भी शामिल हैं। वाड्रा के खिलाफ नियमों के विरुद्ध राजस्थान के बीकानेर में 275 बीघा जमीन खरीदने के लिए भी जांच चल रही है। इस संबंध में प्रवर्तन निदेशालय ने 2015 में एक मामला दर्ज किया था। अब प्रियंका के चुनावी राजनीति में आने से वाड्रा के कथित गलत सौदे फिर से उठेंगे, हालांकि पिछले कुछ वर्षों से उनके विरुद्ध जांच चल रही है। नि:संदेह वाड्रा प्रियंका के सिर पर एक लटकी हुई तलवार की तरह हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस बात से भी चिंतित हैं कि क्या बेबाक वाड्रा पृष्ठभूमि में रहेंगे या फिर सार्वजनिक बयान देने लगेंगे क्योंकि वह कई बार अपनी चुनाव लडऩे की महत्वाकांक्षा प्रकट कर चुके हैं।
प्रियंका को यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि राजनीति एक पार्ट टाइम व्यवसाय नहीं और सफलता मीडिया स्पेस से नहीं अपितु वोट से मिलती है। हालांकि वह आज कांग्रेस के राजनीतिक क्षितिज में एक इन्द्रधनुष की तरह हैं, किंतु उन्हें वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा। राजनीति एक बड़ा जुआ है, जो किसी भी तरफ पलट सकता है। प्रियंका को हमेशा चुनाव प्रचार करने वाली बहन की भूमिका से बाहर निकलना और राजनीति में अपना स्थान सुनिश्चित करना होगा। उनसे बड़ी अपेक्षाएं हैं और उनकी क्षमताओं का निर्णय वायनाड और अन्य चुनावी जीतों द्वारा निर्धारित किया जाएगा। आप परिवार के लोगों का नाम लेकर चुनाव जीत सकती हैं, किंतु कितने चुनाव और कब तक? उन्हें एक नेता के रूप में अपने को साबित करना होगा कि वह पार्टी में एक नई जान फूंक सकती हैंं।
कांग्रेस को इस बात को ध्यान में रखना होगा कि सर्वोत्तम राजनतिक प्रणाली पार्टी के स्वतंत्र, निष्पक्ष और नियमित चुनाव करवाना है। दीर्घकाल में अल्पकालिक वंशवादी लाभ पार्टी के लिए मौत की घंटी साबित होगा। समय आ गया है कि पार्टी कुछ आत्मावलोकन करे। अन्यथा हमें एक ऐसे राजनीतिक रसातल में पड़े रहना पड़ेगा जो भाई-बहन और सामंतवादी कांग्रेस के उदय का स्वागत करता है।-पूनम आई. कौशिश