गहराते वायु प्रदूषण से एनीमिया की चपेट में महिलाएं

Edited By ,Updated: 24 Jun, 2024 05:41 AM

women are suffering from anaemia due to increasing air pollution

जहरीली हवाओं का चैंबर बनता वायुमंडल महिलाओं को खून की कमी का शिकार बना रहा है। गहराते वायु प्रदूषण से महिलाओं में सांस, आंख और दिल के रोगों के साथ एनीमिया का स्तर बढ़ा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) दिल्ली और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के...

जहरीली हवाओं का चैंबर बनता वायुमंडल महिलाओं को खून की कमी का शिकार बना रहा है। गहराते वायु प्रदूषण से महिलाओं में सांस, आंख और दिल के रोगों के साथ एनीमिया का स्तर बढ़ा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) दिल्ली और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार पी.एम. 2.5 वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से महिलाओं और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में एनीमिया हो सकता है। यह पहला भारतीय अध्ययन है जो पीएम 2.5 के संपर्क और छोटे बच्चों में एनीमिया के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित करता है। 

वैश्विक स्तर पर, भारत में एनीमिया का सबसे  बड़ा बोझ खासकर महिलाओं और बच्चों में हैं। एनवायरनमैंटल एपिडेमियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि पी.एम. 2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब की वृद्धि के लिए, औसत हीमोग्लोबिन के स्तर में 0.07 ग्राम प्रति डी.एल. की कमी होती है। अगर हम देखें तो पाएंगे एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें खून में पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन नहीं होता है। इससे शरीर के अंगों में ऑक्सीजन का फ्लो कम हो जाता है इसके कारण शरीर जल्दी थक जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार अब तक एनीमिया को पोषण की कमी के तौर पर देखा जाता था। लेकिन पोषण की कमी के साथ अब वायु प्रदूषण भी एनीमिया का कारक बन रहा है। महिला स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार भले सरकार एनीमिया मुक्त भारत के लिए तमाम प्रयास कर रही है। कई पोषण अभियान चलाए गए हैं। 

इनके बावजूद वायु प्रदूषण के कारण एनीमिया के जोखिम महिलाओं को घर के अंदर का वायु प्रदूषण ज्यादा इफैक्ट करता है। घर के अंदर की हवा केवल खाना बनाने से नहीं बल्कि रोशनी और गर्मी से भी दूषित होती है। कटते जंगल, खत्म होती हरियाली, शहरीकरण अब तेजी से बढ़ा है। घरों में इंडोर प्लांट्स और किचन गार्डन का कांसैप्ट भी खत्म हो चुका है। महिलाएं  अपनी शारीरिक संरचना, प्रजनन, संतुलित आहार न लेने, रसोई में अधिक समय बिताने और आॢथक रूप से स्वतंत्र न होने के कारण वायु प्रदूषण से अधिक प्रभावित होती हैं। 

‘लैंसेट’ पत्रिका के अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में सालाना करीब 23 लाख से अधिक असमय मौतों का कारण बनता है। वहीं ‘आईक्यूएयर’ का कहना है कि भारत ने अब दुनिया के तीसरे सबसे प्रदूषित देश का स्थान हासिल कर लिया है। रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भारत की वायु गुणवत्ता औसत वाॢषक पीएम 2.5 सांद्रता 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में सालाना 10-30 हजार लोग वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं। आई.आई.टी. मुंबई के जानकारों ने दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर जो शोध किया उसके मुताबिक दिल्ली में सालाना मौत का यह आंकड़ा 14,800 है। 

वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडैक्स (ए.क्यू.एल.आई.) और शिकागो विश्वविद्यालय स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टीच्यूट के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर भारत में खराब हवा के कारण सामान्य इंसान की जिंदगी करीब 7.5 साल कम हो रही है। पिछले सालों में कम से कम 3 प्रतिष्ठित रिपोर्ट्स ने कहा कि भारत में 10 से 12 लाख लोग प्रदूषित हवा से मर रहे हैं। पहले लैंसेट रिपोर्ट जिसने 2015 में 10 लाख भारतीयों के वायु प्रदूषण से मरने की बात कही है।
जो महिलाएं खाना पकाने के लिए लकड़ी का उपयोग करती हैं, वे प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से पीड़ित होती हैं। वहीं गोबर की आग से निकलने वाले धुएं से श्वसन और फेफड़ों की बीमारियां, ब्रोंकाइटिस आदि होती हैं। रसोई संबंधी गतिविधियों के दौरान गैस स्टोव का उपयोग करने और मास्क पहनने की सलाह दी जाती है।

स्त्री रोग विशेषज्ञ वायु प्रदूषण से बचाव के लिए लोगों, विशेषकर श्वसन संबंधी समस्याओं से ग्रस्त लोगों को मास्क पहनने की सलाह देते हैं। वे प्रदूषण के खिलाफ शरीर को मजबूत बनाने के लिए योग, व्यायाम और पौष्टिक आहार की वकालत करते हैं। स्वच्छ हवा की वकालत करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि सभी सरकारों को इस समस्या के समाधान के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिए देशव्यापी प्रयासों की जरूरत है, जैसे प्लास्टिक और टायर जलाने पर रोक लगाना। हालांकि अभी हालात में कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा है। पूरे दक्षिण एशिया में महिलाएं वायु प्रदूषण से बड़ी संख्या में बीमार पड़ रही हैं। सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि हरे-भरे स्थान जीवन और स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं, इसलिए हमें पर्यावरण अनुकूल बनना होगा।- सीमा अग्रवाल
 

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