Edited By ,Updated: 26 Aug, 2024 05:12 AM
कुछ नेता चुनावों के दौरान उभरते हैं, जैसे कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव। ऐसी ही एक शख्सियत हैं 59 वर्षीय सुनीता, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी हैं। वे अपने जेल में बंद पति और पार्टी के बीच अहम कड़ी बन गई हैं। केजरीवाल को जमानत...
कुछ नेता चुनावों के दौरान उभरते हैं, जैसे कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव। ऐसी ही एक शख्सियत हैं 59 वर्षीय सुनीता, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी हैं। वे अपने जेल में बंद पति और पार्टी के बीच अहम कड़ी बन गई हैं। केजरीवाल को जमानत मिलने के बाद भी वे पार्टी के लिए काम करना जारी रखेंगी या नहीं, यह अभी तय नहीं हो पाया है। राजनीतिक परिवारों की महिलाएं अक्सर अपने रिश्तेदारों की जगह राजनीति में उतरती हैं। इसका एक सफल उदाहरण सोनिया गांधी हैं। एक और उल्लेखनीय मामला राबड़ी देवी का है। उन्होंने 2000 से 2005 तक बिहार का नेतृत्व किया, जब उनके पति को कथित तौर पर घोटाले में शामिल होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था।
सुनीता के पास अनुभव और ठोस पेशेवर पृष्ठभूमि है। आयकर विभाग में उनका 22 साल का कार्यकाल, जो आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आई.टी.ए.टी.) में आयकर आयुक्त के रूप में समाप्त हुआ, उनकी योग्यता को दर्शाता है। दरअसल, सुनीता ने अपने पति की राजनीतिक यात्रा को कम प्रोफाइल के साथ आगे बढ़ाया है। केजरीवाल ने खुद को एक पारिवारिक व्यक्ति के तौर पर पेश किया और लोकसभा चुनावों के दौरान सुनीता के साथ प्रचार किया। खासकर केजरीवाल के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी में सुनीता की बढ़ती भागीदारी उनकी प्रतिबद्धता और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।
केजरीवाल के इस्तीफा देने पर मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी संभावित भूमिका के बारे में अटकलें ‘आप’ की राजनीति में एक नया नजरिया ला सकती हैं। दूसरी बात, सुनीता का नेतृत्व इस समय महत्वपूर्ण है, क्योंकि आम आदमी पार्टी संकट से जूझ रही है। कई वरिष्ठ नेता भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में केजरीवाल की गिरफ्तारी ने पार्टी की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। केंद्र ने उन्हें लंबे समय तक मौका दिया है और संवैधानिक विफलता के आधार पर उनकी सरकार को बर्खास्त नहीं किया है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में विधानसभा चुनाव जनवरी 2025 में होने हैं, जिससे आगामी चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो गए हैं।
केजरीवाल के डिप्टी मनीष सिसोदिया का सुझाव है कि केजरीवाल के जेल से बाहर आने के बाद पार्टी में सुनीता की भूमिका खत्म हो जाएगी। ‘आप’ के संस्थापक और सदस्य सिसोदिया केजरीवाल के उत्तराधिकारी हो सकते हैं। ‘आप’ सांसद संजय सिंह का दावा है कि केजरीवाल के संदेशवाहक के रूप में सुनीता की भूमिका बढ़ रही है। फिर भी, केजरीवाल का कहना है कि सुनीता की राजनीति में कोई रुचि नहीं है। हालांकि सुनीता को कामचलाऊ विकल्प के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन पार्टी में उनके बढ़ते प्रभाव के कारण उन्हें किनारे करना चुनौतीपूर्ण है। अगर केजरीवाल को जमानत भी मिल जाती है, तो यह स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी में सुनीता की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी। चौथा, पार्टी को आगामी हरियाणा और दिल्ली चुनावों के मद्देनजर नैतिक बढ़ावे की जरूरत है; ‘आप’ को एक विश्वसनीय नेता और कुछ नैतिक बढ़ावे की जरूरत है। सुनीता इस कमी को पूरा करती हैं।
पांचवां, ‘आप’ के सदस्यों ने फिलहाल सुनीता को ही कड़ी के रूप में स्वीकार कर लिया है। पार्टी में सक्रिय रूप से शामिल होने के बावजूद सुनीता ‘आप’ में कोई आधिकारिक पद नहीं रखती हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार किया है और अभी हरियाणा में प्रचार शुरू किया है। उनका बचाव यह था कि कुछ राजनीतिक ताकतें उनके पति को बदनाम करने में शामिल थीं। विपक्षी गठबंधन ने सुनीता की बढ़ती भागीदारी और स्वीकार्यता को स्वीकार किया है। हाल ही में रामलीला मैदान में एक रैली में उन्हें सोनिया गांधी के साथ एक प्रमुख स्थान पर बैठाया गया था। सुनीता ने पिछले सप्ताह आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए अभियान की शुरूआत करते हुए ‘केजरीवाल की गारंटी’ (मुफ्त) लॉन्च की। इन गारंटियों में मुफ्त बिजली, चिकित्सा उपचार, शिक्षा, हर महिला को 1,000 रुपए मासिक सहायता और युवाओं के लिए रोजगार शामिल हैं।
सुनीता के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। केजरीवाल की राजनीतिक सफलता के बावजूद, उन्हें राजनीति में अनुभव नहीं है और वे आप की सदस्य भी नहीं बनी हैं। उनके नेतृत्व के गुणों को अभी भी स्थापित करने की आवश्यकता है। क्या वह कठोर निर्णय ले पाएंगी और पार्टी को एकजुट रख पाएंगी, यह अभी भी तय किया जा रहा है। फिलहाल उनका सीमित उद्देश्य पार्टी को एकजुट रखना है। ऐसी अनिश्चित स्थिति में उन्हें सीमित तरीके से काम करना होगा। सुनीता ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसी अन्य पार्टियों से भी बातचीत शुरू कर दी है। अब उनकी पहुंच विपक्ष के सभी शीर्ष नेताओं तक है। विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन और अन्य पाॢटयों के साथ गठबंधन में उनका सक्रिय दृष्टिकोण, वापसी के बाद केजरीवाल को यह सुनिश्चित करना होगा कि पार्टी के भीतर कोई आंतरिक समस्या न हो। उन्हें पंजाब पर भी कड़ी नजर रखनी होगी, जहां ‘आप’ का शासन है। इसके अलावा, उन्हें स्पष्ट कमान शृंखला स्थापित करनी चाहिए और सिसोदिया या सुनीता को दरकिनार करने से बचना चाहिए।-कल्याणी शंकर