Edited By ,Updated: 24 Oct, 2024 05:04 AM
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और अक्सर ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जिनमें नेता भी शामिल हैं, जो इस बात पर जोर देते हैं कि देश की सबसे बड़ी समस्या इसकी जनसंख्या है। वे वकालत करते हैं कि सरकार को जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए सख्त...
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और अक्सर ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जिनमें नेता भी शामिल हैं, जो इस बात पर जोर देते हैं कि देश की सबसे बड़ी समस्या इसकी जनसंख्या है। वे वकालत करते हैं कि सरकार को जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई और नियम बनाने चाहिएं। ये लोग आंशिक रूप से सही और आंशिक रूप से गलत हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश अपनी बढ़ती जनसंख्या के कारण पिछड़ गया है और इसने हमारे विकास और वृद्धि को प्रभावित किया है। यह भी सच है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता सहित हमारा बुनियादी ढांचा जनसंख्या के दबाव के कारण अपर्याप्त रहा है। लेकिन उन्हें यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि हमारी जनसंख्या वृद्धि पहले ही धीमी हो चुकी है और हमारी प्रजनन दर लगभग 2.1 है, जिसे जनसंख्या को उसी संख्या पर बनाए रखने के लिए आदर्श माना जाता है। इस बात की पूरी संभावना है कि साक्षरता और जागरूकता के प्रसार के साथ यह दर और भी कम हो जाएगी।
महानगरों और बड़े शहरों में, यह दर पहले ही उस स्तर से नीचे गिर चुकी है और बढ़ती संख्या में जोड़े या तो एक बच्चा पैदा कर रहे हैं या उन्होंने कोई बच्चा न करने का फैसला किया है। हालांकि 2021 की जनगणना में देरी हो गई है और इसलिए केवल 2011 की जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हैं। हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आधारित कई सरकारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि जनसंख्या वृद्धि की दर किसी भी तरह से चिंताजनक नहीं है। बल्कि अगर प्रजनन दर में और गिरावट आती है तो यह एक समस्या बन सकती है, जैसा कि चीन में हुआ है, जिसने एक दंपति के लिए एक बच्चे की विनाशकारी नीति के बाद दंपतियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसका प्रभावी रूप से मतलब है कि हम अतीत की उच्च जनसंख्या वृद्धि दर के कारण पीड़ित हैं और जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए दंडात्मक उपायों को लागू करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। जनसंख्या वृद्धि का मुद्दा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की टिप्पणी के मद्देनजर आया है कि महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिएं और वह ऐसा कानून लाने की योजना बना रहे हैं जिसके तहत केवल अधिक बच्चों वाली महिलाएं ही स्थानीय निकाय चुनाव लडऩे के योग्य होंगी।
इसने स्पष्ट रूप से विवाद को जन्म दिया है। उनकी चिंता, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की इसी तरह की टिप्पणियों के बाद, किसी और चीज से ज्यादा राजनीति से जुड़ी है। हमारे संविधान के तहत, हर कुछ वर्षों में जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता ताकि सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या लगभग समान हो। यह भी एक तथ्य है कि दक्षिणी राज्य उत्तरी राज्यों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि को रोकने में बेहतर हैं। उदाहरण के लिए आंध्र, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में प्रजनन दर लगभग 1.7 है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 2.4 और बिहार में 3.0 है, जो देश में सबसे अधिक है। साथ ही, उत्तरी क्षेत्र की तुलना में दक्षिणी राज्यों में बुजुर्गों का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए दक्षिणी राज्यों की जनसंख्या में गिरावट का मतलब यह होगा कि 2026 में अगले परिसीमन अभ्यास के दौरान इन राज्यों से लोकसभा सीटों की संख्या कम होनी तय है।
इसके परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्यों के राजनीतिक प्रभाव में और गिरावट आएगी। उनका प्रतिनिधित्व मौजूदा 25 प्रतिशत से घटकर 18 प्रतिशत रह जाएगा। इसका यह भी मतलब होगा कि दक्षिणी राज्यों, जिन्होंने जनसंख्या वृद्धि को रोकने में बहुत अच्छा काम किया है, को ऐसा करने के लिए दंडित किया जाएगा, जबकि जो राज्य जनसंख्या वृद्धि को रोकने में विफल रहे हैं, उन्हें लाभ होगा और उनकी लोकसभा सीटों में वृद्धि होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक गंभीर मुद्दा है और दक्षिणी राज्यों की चिंताओं को दूर करने के लिए उपाय किए जाने चाहिएं।
हालांकि, नायडू की यह घोषणा कि उनकी सरकार 2 से कम बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लडऩे से रोकने के लिए कानून लाएगी, कई मायनों में बेतुकी और गलत निर्णय है।कब बच्चे पैदा करने हैं और कितने बच्चे पैदा करने हैं, इसका फैसला संबंधित महिलाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए। उन्हें अधिक बच्चे पैदा करने के लिए मजबूर करना एक प्रतिगामी कदम है। इसकी बजाय सरकार को बेहतर स्वास्थ्य और देखभाल प्रदान करना चाहिए, खासकर महिलाओं और बुजुर्गों के लिए। अगर लोग अधिक बच्चे पैदा नहीं करना चाहते हैं, तो राजनेता उन्हें अधिक बच्चे पैदा करने के लिए क्यों मजबूर करते हैं। बच्चों के पालन-पोषण में शामिल आर्थिक लागत के अलावा, ऐसे कदमों के परिणामस्वरूप महिलाओं को कार्यबल में शामिल होने से रोका जा सकता है। सरकार को अच्छी स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करने और प्रजनन अधिकारों और परिवार नियोजन पर जानकारी प्रसारित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि उन्हें सूचित विकल्प बनाने में मदद मिल सके।-विपिन पब्बी