दिल्ली की प्यास और बाढ़ दोनों का हल यमुना में

Edited By ,Updated: 22 Jun, 2024 05:52 AM

yamuna is the solution to both delhi s thirst and floods

देश की राजधानी दिल्ली भी अजब है, अभी यहां के लोगों के कंठ तर करने के लिए बीते 8 सालों की ही तरह फिर सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और अब हिमाचल प्रदेश से अधिक पानी लिया जा रहा है। इंतजार करें एक महीने से जो आंखें आसमान की तरफ एक-एक बूंद बरसात के लिए...

देश की राजधानी दिल्ली भी अजब है, अभी यहां के लोगों के कंठ तर करने के लिए बीते 8 सालों की ही तरह फिर सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और अब हिमाचल प्रदेश से अधिक पानी लिया जा रहा है। इंतजार करें एक महीने से जो आंखें आसमान की तरफ एक-एक बूंद बरसात के लिए तरस रही हैं, वे कुदरत की नियामत बरसते ही इसे कोसते दिखेंगी। 

बेपानी विशालकाय शहर की पूरी सड़कें, कालोनियां पानी से लबालब हो जाएंगी। कभी कोई सोचता नहीं कि दिल्ली की बाढ़ और सूखे का असल कारण तो कालिंदी के किनारों की क्रूरता है, जिसने नदी को नाले से बदतर कर दिया। यदि केवल यमुना को अविरल बहने दिया जाए और उसमें गंदगी न डाली जाए तो दिल्ली से दुगने बड़े शहरों को पानी देने और बारिश के चरम पर भी हर बूंद को अपने में समेट लेने की क्षमता इसमें है। 

सरकारी अनुमान है कि दिल्ली की आबादी 3 करोड़  40 लाख के करीब पहुंच गई है और यहां पानी की मांग प्रतिदिन 1290 मिलियन गेलन (एम.एल.डी.) है जबकि उपलब्ध पानी महज 900 एम.एल.डी. है। इसमें से लगभग आधे पानी का स्रोत यमुना ही है, शेष जल ऊपरी गंगा नहर, भाखड़ा बांध आदि से आता है। बड़ी मात्रा में जमीन की कोख खोद कर भी जल की आपूर्ति होती है। दिल्ली में यमुना को जीवित करने के लिए लगभग 4 दशक से कई हजार करोड़ फूंकने के बाद भी गंदे नालों का उसमें गिरना बंद नहीं हुआ। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज 2 फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित  करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बी.ओ.डी. का 55 प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है। 

अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एम.एल.डी. गंदा पानी और 132 टन बी.ओ.डी. यमुना में घुलता है। दिल्ली में अकेले यमुना से 724 मिलियन घनमीटर पानी आता है, लेकिन इसमें से 580 मिलियन घन मीटर पानी बाढ़ के रूप में यहां से बह भी जाता है। फरवरी-2014 के अंतिम हफ्ते में ही शरद यादव की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने जो कहा था वह आज 10 साल बाद भी यथावत है। रिपोर्ट में दर्ज है कि यमुना की सफाई के नाम पर व्यय 6500 करोड़ रुपए बेकार ही गए हैं क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति ने यह भी कहा कि दिल्ली के 3 नालों पर इंटरसैप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है। विडम्बना तो यह है कि इस तरह की चेतावनियां, रिपोर्टें न तो सरकार और न ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं। 

दिल्ली में यमुना के संकट का कारण केवल गंदगी मिलना ही नहीं है, यहां नदी गाद और कचरे के कारण इतनी ऊंची-नीची हो गई है कि यदि महज एक लाख क्यूसिक पानी आ जाए तो इसमें बाढ़ आ जाती है। नदी की जल ग्रहण  क्षमता को कम करने में बड़ी मात्रा में जमा गाद (सिल्ट, रेत, सीवरेज, पूजा-पाठ सामग्री, मलबा और तमाम तरह के कचरे) का योगदान है। नदी की गहराई क म हुई तो इसमें पानी भी कम आता है। आजादी के 77  साल में कभी भी नदी की गाद साफ करने का कोई प्रयास हुआ ही नहीं, जबकि नदी में कई गैर-कानूनी निर्माण परियोजनाओं के मलबे को डालने से रोकने में एन.जी.टी. के आदेश नाकाम रहे हैं। सन 1994 से लेकर अब तक यमुना एक्शन प्लान के 3 चरण आ चुके हैं, हजारों करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं पर यमुना में गिरने वाले दिल्ली के 21 नालों की गाद भी अभी तक नहीं रोकी जा सकी। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के आदेश भी बेमानी ही साबित हो रहे हैं। 

एक बात और, दिल्ली में यमुना के खतरे का निशान 204.8 मीटर और चेतावनी का निशान 204 मीटर अब प्रासंगिक नहीं है। यह तो अंग्रेज सरकार ने तब निर्धारित किया था जब यमुना का बहाव और हाथी डुब्बा गहराई आज के मयूर विहार, गांधी नगर, ओखला, अक्षरधाम तक हुआ करती थी। एक तरफ नदी की चौड़ाई कम की गई तो दूसरी तरफ गहराई में गाद बहा दी। इस तरह जीवनदायी पावन जल के मार्ग को कूड़ा ढोने की धार बना दिया गया। दुर्भाग्य है कि कोई भी सरकार दिल्ली में आबादी को बढऩे से रोकने पर काम कर नहीं रही और इसका खमियाजा भी यमुना को उठाना पड़ रहा है। हालांकि इसकी मार उसी आबादी को पड़ रही है। यह सभी जानते हैं कि दिल्ली जैसे विशाल आबादी वाले इलाके में हर घर पानी और मुफ्त पानी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। 

मसला आबादी को बसाने का हो या उनके लिए सुचारू परिवहन के लिए पुल या मैट्रो बनाने का, हर बार यमुना की धारा के बीच ही खंभे गाड़े जा रहे हैं। वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना पर कुल 22 पुल बन चुके हैं और 4 निर्माणाधीन हैं और इन  सभी ने यमुना के नैसर्गिक प्रवाह, गहराई और चौड़ाई का नुकसान किया है। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंट के एक शोध के मुताबिक यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 600 से अधिक आर्द्रभूमि और जल निकाय थे, लेकिन उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक अब सूखे हैं। यह बरसात के पानी को सारा साल सहेज कर रखते लेकिन अब इससे शहर में बाढ़ आने का खतरा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल- तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के कारण नदी से टूट गया। दिल्ली बसी ही इसलिए थी क्योंकि यहां यमुना बहती थी, सो जान लें कि दिल्ली बचेगी भी तब ही जब यमुना अविरल बहेगी। दिल्ली की प्यास  और बाढ़ दोनों का निदान यमुना में ही है।-पंकज चतुर्वेदी 
 

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