Edited By ,Updated: 24 Mar, 2025 05:33 AM

राष्ट्रपति ट्रम्प, जिन्होंने युद्ध समाप्त करने और कभी युद्ध शुरू न करने का वादा किया था, यमन पर बमबारी करने के लिए 8,000 मील की यात्रा कर चुके हैं। अगर वे ऐसा करते रहे तो यमन भी वियतनाम और अफगानिस्तान बन जाएगा। कई मायनों में वे एक जैसे देश हैं, जहां...
राष्ट्रपति ट्रम्प, जिन्होंने युद्ध समाप्त करने और कभी युद्ध शुरू न करने का वादा किया था, यमन पर बमबारी करने के लिए 8,000 मील की यात्रा कर चुके हैं। अगर वे ऐसा करते रहे तो यमन भी वियतनाम और अफगानिस्तान बन जाएगा। कई मायनों में वे एक जैसे देश हैं, जहां दृढ़ निश्चयी लड़ाके रहते हैं। चूंकि राष्ट्रपति और उनकी टीम को इसके इतिहास, समाजशास्त्र और स्थलाकृति के बारे में कुछ भी नहीं पता है, इसलिए यहां मेरी यात्राओं से एक संक्षिप्त नोट है। 8,500 फीट की ऊंचाई पर, यमन की राजधानी सना का पुराना शहर, आराम की जादुई हवा देता है। इसकी गलियों की भूलभुलैया, बहुमंजिला मिट्टी और ईंट की हवेलियां, बेहतरीन मोजेक से सजी हुई हैं। लेकिन सना की शांति संघर्ष के तूफानी बादलों को छिपाती है जो अफगानिस्तान की तरह ही जटिल और नाटकीय है। यमन के संघर्ष हमारे टी.वी. स्क्रीन पर क्यों हावी नहीं होते? इसका कारण आसानी से समझा जा सकता है।
उदाहरण के लिए, सऊदी अरब की सीमा से लगे सादा में संघर्ष के मैदान नंगे, खड़े और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ हैं जो टी.वी. क्रू की तुलना में चट्टान चढऩे वालों के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं। 19वीं सदी में सऊदी अरब से सटे वहाबी शासकों ने नजफ में अली की दरगाह और कर्बला को नष्ट कर दिया जो सऊदी-यमनी धार्मिक संघर्ष का संकेत देता है जो आज भी अनसुलझा है।
यमन में इमामों की व्यवस्था कैसे पनपी : पैगम्बर मोहम्मद के दामाद हजरत अली शियाओं के पहले इमाम हैं। सुन्नी उन्हें चौथे खलीफा के रूप में पूजते हैं। कहीं न कहीं शिया-सुन्नी झगड़े की जड़ें यहीं हैं। अली को पैगम्बर ने काजी या जज के तौर पर सना भेजा था। अली के सबसे बड़े बेटे हसन दूसरे इमाम हैं। कर्बला के शहीद छोटे बेटे हुसैन तीसरे इमाम हैं। हुसैन के बेटे, जैन-उल-अबेदिन कर्बला में हुसैन के एकमात्र जीवित पुरुष रिश्तेदार थे क्योंकि वे बीमार थे और युद्ध में नहीं जा सकते थे। वे ठीक हो गए और चौथे इमाम बन गए। उनके दो बेटे बकर इब्न अली और जैद इब्न अली कर्बला की लड़ाई के प्रति अपनी प्रतिक्रिया में भिन्न थे। बकर का दृष्टिकोण अधिक गांधीवादी था।
उनका मानना था कि कर्बला में इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत ने पहले ही इस्लाम के बड़े पैमाने पर पुनरुत्थान को प्रेरित किया था। जैद का मानना था कि ओमायद को हराना होगा। जैद के अनुयायी ने यमन में अपनी इमामत स्थापित की जो अरब प्रायद्वीप का अधिक सभ्य हिस्सा था। ओटोमन के बाद,यमन दो देशों में बंट गया, उत्तरी यमन की आबादी 20 मिलियन थी जिसकी राजधानी सना थी। दक्षिण यमन, जिसकी आबादी 4 मिलियन थी, की राजधानी अदन थी जो रणनीतिक रूप से अदन की खाड़ी के मुहाने पर स्थित थी।इसलिए अंग्रेजों ने इसे तब तक मजबूती से पकड़ रखा था जब तक कि अरब समाजवाद ने नासिर के नेतृत्व में अरब दुनिया को अपने कब्जे में नहीं ले लिया। 1967 में समाजवादी जोश ने ब्रिटिशों को बाहर कर दिया। उस समय चल रहे शीत युद्ध के दौरान दक्षिणी यमन सोवियत प्रभाव में आ गया।
यहां मैं एक और विवरण जोडऩा चाहूंगा। भले ही कहानी को जटिल बनाने की पीड़ा हो। जब आखिरी इमाम याह्या पर ओटोमन का दबाव था तो उन्होंने अपने उत्तरी पड़ोसी सऊदी से शांति के लिए सौदेबाजी की। इस सौदे के तहत, निगरान और जीजान के 2 जिले सऊदी को एक तरह के नवीकरणीय पट्टे पर दिए गए। सना के जाने-माने बुद्धिजीवी डा. नस्र अल-नकीब के अनुसार, ये दोनों जिले ‘तेल समृद्ध’ हैं। अन्यथा सऊदी 2 शिया बहुल यमनी शहरों को क्यों स्वीकार करते जो उग्रवादी शियाओं के बगल में हैं, जिन्हें हुती कहा जाता है। हुती उनके नेता मलिक के नाम से निकला है, जिसका नाम हुती है।
अब,आइए हम अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे के बाद 1980 के दशक से कहानी को कालानुकमिक रूप से शुरू करें। अमरीका, सऊदी और जिया-उल-हक ने पाकिस्तान में अनगिनत मदरसों में कट्टर इस्लामवादियों का निर्माण शुरू किया, जिसकी कीमत वह देश आज तक चुका रहा है। सऊदी के गृह मंत्री प्रिंस नाइफ बिन अब्दुल अजीज के लिए, पाकिस्तानी मदरसे पर्याप्त नहीं थे। शुद्ध नस्ल के अरबों को उग्रवादी इस्लामवाद में भी प्रशिक्षित किया जाना था। जिस तरह अफगान मुजाहिदीन अफगानिस्तान से सोवियत को खदेड़ देंगे, उसी तरह उनके समकक्ष अदन में सोवियत समर्थक नासिरवाद को अस्थिर करने का प्रयास करेंगे।
यमन के राष्ट्रपति सालेह के सौतेले भाई अली मोहसिन अल अहमर ने सभी प्रशिक्षण शिविरों का स्थानीय प्रभार संभाला। अवधारणा पर गौर करें। इस्लामी चरमपंथ के अड्डे सोवियतों के सिर उठाने पर रोक लगा देंगे। सोवियत संघ के पतन के साथ, तस्वीर मौलिक रूप से बदल गई है। यह अरब घटक ही है जो पश्तून वर्चस्व वाले तालिबान से अलग अल कायदा के केंद्र में है। इसलिए, 1990 में सोवियत संघ के पतन के साथ दक्षिण ने अपना प्रमुख सोवियत समर्थन खो दिया। दक्षिण अब एकीकरण का विरोध नहीं कर सकता था। सद्दाम हुसैन ने 1990 में यमन के एकीकरण में अग्रणी भूमिका निभाई थी। रियाद-सना संबंधों में पड़ी नरमी का फायदा उठाते हुए, सऊदी अरब की सीमा पर स्थित शिया ‘हुतियों’ ने सीमा के दोनों ओर अपने ‘शिायावाद’ को बढ़ावा दिया। इससे सऊदी नाराज हो गए। दशकों पुराने सऊदी-यमन युद्ध ने यमन को तबाह कर दिया लेकिन हुतियों को कभी नहीं हराया। यह सब अमरीका और ब्रिटेन से हवाई और खुफिया सहायता के बावजूद हुआ।-सईद नकवी