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दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के मामले में असली खतरा यह नहीं है कि इस मामले में कुछ कार्रवाई नहीं होगी। इतने बड़े खुलासे के बाद और अब तक...
इस सुरम्य बसंत के मौसम में राजनीतिक दिल्ली में हमारे जनसेवकों में गर्मी पैदा हो रही है और यह गर्मी दिल्ली उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश के...
पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक किशोरी के मामले में विवादास्पद फैसला दिया। मामला नवम्बर 2021 में उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर का है। लड़की की...
कुछ सालों तक एलेक्सा से खेलने के बाद अब भारतीयों को ग्रोक नाम का नया विदेशी खिलौना मिल गया है। ‘ट्विटर’ जिसे अब ‘एक्स’ कहते हैं, के मालिक एलन मस्क की...
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दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद, जिसने पार्टी को दिल्ली में सत्ता में स्थापित किया, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘‘मजा आ गया’’ (पार्टी 1998 में सत्ता खो चुकी थी)। लेकिन नए मुख्यमंत्री की राह आसान नहीं होने वाली है। वह उन नए शक्ति समीकरणों का जिक्र कर रहे थे जो इस फैसले से दिल्ली के प्रशासन के लिए सामने आएंगे।
गत दीवाली पर घर की रंगाई-पुताई और थोड़ी बहुत मुरम्मत का काम करने वालों को ढूंढते-ढूंढते पसीना आ गया। जो ठौर-ठिकाने हर शहर, कस्बों में लेबर चौक या मजदूर अड्डों के रूप में पहचाने जाते हैं, वे वीरान थे। एक ओर देश की जनसंख्या दिनों दिन बढ़ रही है। दूसरी ओर काम के लिए लोग ढूंढे नहीं मिल रहे। अमूमन पूरे
आधुनिक कार्यालय में तनाव संक्रमण एक मौन महामारी है। भावनात्मक या शारीरिक संकेतों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तनाव के प्रसार के रूप में परिभाषित, यह घटना अक्सर किसी के ध्यान में नहीं आती है। यह उत्पादकता, टीम की गतिशीलता और व्यक्तिगत भलाई को प्रभावित करती है। यह केवल एक पारस्परिक मु
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, कांग्रेस नेतृत्व अपनी राज्य इकाई को मजबूत करने के लिए अपना ध्यान बिहार पर केन्द्रित कर रहा है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने दिसम्बर 2022 में अखिलेश सिंह को बी.पी.सी.सी. अध्यक्ष नियुक्त किया और वह लालू प्रसाद के करीबी हैं।
दिल्ली में एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित हुए हैं। बात यहां तक पहुंच गई कि अरविंद केजरीवाल के साथ ही मनीष सिसौदिया जैसे नेता चुनाव हार गए। यह जरूर रहा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गईं। भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। अब 27 साल बाद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चल रहा संघर्ष, जिसमें अधिकांश न्यायाधीश निष्क्रिय दर्शक बने हुए हैं, पाकिस्तान में वकीलों के आंदोलन की याद दिलाता है। यह एक निर्णायक क्षण था जब एक मुख्य न्यायाधीश ने अपनी कमियों के बावजूद पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली लोगों से भिडऩे का साहस किया। वकीलों और नागरिक समाज के एक बड़े पैमाने पर लामबंदी ने दशकों में देश के सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सुधारों को उत्प्रेरित किया।
हाल ही में संपन्न दिल्ली विधानसभा चुनाव के 2 नतीजे स्पष्ट हैं। पहला निष्कर्ष यह है कि नरेंद्र मोदी हमारे भारत में एक महापुरुष के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी राजनीति का ब्रांड और मतदाताओं पर उनकी पकड़ अब भी बेजोड़ है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि राहुल गांधी मोदी के मुकाबले कहीं नहीं टिकते। उन्हें ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेतृत्व की आकांक्षा छोड़ देनी चाहिए।
मतदाताओं ने तो पिछले सप्ताह ही भाजपा के पक्ष में जनादेश दे दिया था, लेकिन नए मुख्यमंत्री के लिए दिल्ली को अगले सप्ताह तक इंतजार करना पड़ सकता है। 8 फरवरी को आए चुनाव परिणामों में भाजपा को 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में 48 सीटों के साथ जबर्दस्त बहुमत मिला है। फिर भी नया मुख्यमंत्री चुनने में समय लग रहा है तो सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश यात्रा पर होना है।
अपने 50 वर्षों से ज्यादा के सार्वजनिक जीवन में मैंने लोगों को अपने पसंदीदा राजनीतिक दल या उसके नेता की विजय पर जश्न मनाते कई बार देखा है। परंतु किसी नेता या उसकी पार्टी की हार पर लोगों को नाचते-गाते और उत्सव मनाने का साक्षी 2 बार रहा हूं। इस प्रकार का पहला मौका मेरे जीवन में 1975-77 के आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पारंपरिक रायबरेली सीट से हारने और देश से कांग्रेस का जनता द्वारा सूपड़ा साफ करने के समय आया था।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के बीच दुश्मनी और जातीय हिंसा में उनकी मिलीभगत पर सुप्रीम कोर्ट के अभियोग की छाया का सामना करते हुए, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन इससे पहले उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया।
चुनावी सफलताओं के लिहाज से देखा जाए तो भाजपा के लिए मजबूत जन समर्थन से पिछला समय काफी शानदार रहा। वहीं परिवारवादी, भ्रष्टाचारी कांग्रेस कमजोर नेतृत्व व वोट बैंक की राजनीति करने के लिए अपने जातिवाद व धार्मिक तुष्टीकरण की राजनीति करने के कारण देश में अपने न्यूनतम स्तर पर आ पहुंची है व ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा धरातल पर दिख रहा है।
सवाल यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी (आप) का क्या होगा या कि अब केजरीवाल कहां जाएंगे? सवाल है कि वैकल्पिक राजनीति की किसी भी कोशिश का क्या भविष्य है? यह सवाल उन लोगों को भी पूछना चाहिए, जिन्हें ‘आप’ से कभी मोह नहीं रहा था या जिनका मोहभंग हो चुका है।
दिल्ली विधान सभा चुनावों में भाजपा की जीत के सुखाभास और ‘आप’ की हार की निराशा के मध्य इस बात का विश्लेषण करना आसान हो गया है कि क्या इंडिया गठबंधन ने लोक सभा चुनावों में अच्छे प्रदर्शन के बाद अपनी प्रासंगिकता और स्वरूप खो दिया है, विशेषकर दिल्ली में ‘आप’ और कांग्रेस की विफलता के बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले से कमजोर हो रहे इंडिया गठबंधन के लिए और चुनौतियां पैदा हो गई हैं।
15वीं- 16वीं सदी के दौरान धरती पर एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु का जन्म हुआ जिसने अपनी विनम्र वाणी से सामाजिक कुरीतियों पर चोट की। आज उन्हें श्री गुरु रविदास जी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर सामाजिक अन्याय, भेदभाव, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों का बोलबाला बढ़ जाता है तब इन बातों
जब मैंने पहली बार सूई अपने बाजू में चुभोई, तो लगा जैसे दुनिया की सारी परेशानियां खत्म हो गईं। लेकिन असली परेशानी तो तब शुरू हुई जब हर दिन यही नशा मेरी जरूरत बन गया। परिवार छूट गया, दोस्त दूर हो गए, और एक समय ऐसा आया जब मैंने खुद को भी खो दिया। चार साल पहले ड्रग्स के अंधेरे कुएं में गिरे रोहित (बदला हुआ नाम) की आवाज यह सब बताते हुए कांप रही थी। सड़कों पर भीख मांगते हुए दिन बिताने वाले इस युवा के लिए नशा जिंदगी थी और जिंदगी नशे में ही खत्म हो रही थी।
दिल्ली विधानसभा का यह चुनाव अपने आप में कई संदेश लेकर आया है और कुछ तो काफी सुखद हैं। कई चुनावों बाद ऐसा हुआ कि चुनाव मुद्दों पर लड़ा गया। न धर्म की बात ज्यादा हुई, न नफरत की, न ‘बंटोगे तो कटोगे’ की ज्यादा गूंज हुई और न ही जाति के हिसाब से नेता खेल खेल पाए। मोदी-शाह की अगुवाई में लम्बे समय बाद यह चुनाव ऐसा रहा जो भाजपा द्वारा अटल-अडवानी युग की तरह ठोस मुद्दों पर लड़ा गया। यह भाजपा की रणनीति और राजनीति में एक बड़ा बदलाव है और इसके नतीजे पार्टी के लिए सुखद हैं। ये नतीजे आम जनता के लिए और अधिक उत
मेष राशि के जातकों के लिए आज का दिन शुभ रहने वाला है। बिजनेस कर रहे लोग काम के सिलसिले में शहर से बाहर जा सकते हैं।
वृष राशि के लोग व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए कुछ मनचाहे बदलाव करेंगे। घर के कामों को पूरा करने के लिए भाई-बहन की मदद लेनी पड़ सकती है।
मिथुन राशि के जातकों के लिए आज का दिन खुशियों से भरा रहने वाला है। जो लोग लंबे समय से कोई वाहन या प्रॉपर्टी लेने के बारे में सोच रहे थे, उनका यह सपना...
कर्क राशि के जातकों के लिए आज का दिन ठीक-ठाक रहने वाला है। इस राशि के युवा किसी बात को लेकर थोड़ा कंफ्यूज रहेंगे।
सिंह राशि के जातकों के लिए आज का दिन बाकी दिनों के मुकाबले बेहतर रहने वाला है। किसी दोस्त के साथ मिलकर कोई नया व्यापार शुरू कर सकते हैं।
कन्या राशि के जातकों के लिए आज का दिन अनुकूल रहने वाला है। कॉलेज के किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए दोस्तों की मदद लेनी पड़ सकती है।
तुला राशि के जातकों के लिए आज का दिन सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। विदेशी कंपनी से व्यापार कर रहे लोगों के धन लाभ होने की संभावना है।
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए आज का दिन अच्छा रहने वाला है। ऑफिस के अधिकारियों के साथ मिलकर किसी बड़े प्रोजेक्ट की शुरुआत कर सकते हैं।
धनु राशि के जातकों के लिए आज का दिन बेहतर रहने वाला है। ऑफिस के किसी काम को पूरा करने के लिए अधिकारियों की मदद लेनी पड़ सकता है।
मकर राशि के जातकों के लिए आज का दिन सामान्य रहने वाला है। किसी पुराने दोस्त की शादी में शामिल हो सकते हैं।
कुंभ काशि के जातकों के लिए आज का दिन मिलाजुला रहने वाला है। व्यापार कर रहे लोग किसी पर भी आंख मूंद कर भरोसा न करें, नहीं तो पछताना पड़ सकता है।
मीन राशि के जातकों के लिए आज का दिन खास रहने वाला है। परिवार के साथ किसी रिश्तेदार के घर जाने का प्लान बनाएंगे।
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26/03/2025 14:31 IST
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