Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 19 Nov, 2024 11:45 AM
पियाल बनर्जी, डायरेक्टर, एक्सटर्नल कम्युनिकेशंस एवं मीडिया रिलेशंस, फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल इंक की इंडिया एफिलिएट, आईपीएम इंडिया
चंडीगढ़। एडवरटाईज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) और डिपार्टमेंट ऑफ कंज़्यूमर अफेयर्स (डीओसीए) ने फरवरी 2024 में एक संवादपूर्ण परामर्श सत्र का आयोजन किया, जिसमें उन श्रेणियों में काम करने वाले हितधारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिनके विज्ञापन पर प्रतिबंध है। इस सत्र का मुख्य उद्देश्य सरोगेट विज्ञापनों की व्यापक समस्या को संबोधित करना तथा विज्ञापन के नियमों का कठोर अनुपालन स्थापित करना था। इसी दौरान, सेंट्रल कंज़्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) ने कंपनियों से उन उत्पादों की सूची साझा करने के लिए कहा, जिनकी मार्केटिंग पिछले तीन सालों में एल्कोहलिक बेवरेज के समान ब्रांड के अंतर्गत की गई है।
इस तरह की प्रगतियाँ कम्युनिकेटर्स की दुविधा का ज्वलंत उदाहरण हैं, जो वो अपने ग्राहकों तक पहुँचने के तरीके तलाशते वक्त महसूस करते हैं। ये उन सेक्टर्स के वास्तविक हालात हैं, जिनका जनस्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है, और इनमें फार्मास्युटिकल्स, फाईनेंस, तम्बाकू, एल्कोहलिक बेवरेज, और टेलीकम्युनिकेशन आते हैं।
जहाँ रेगुलेशन से सुरक्षा का स्तर सुनिश्चित करने और स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कवच मिलता है, वहीं अपने क्रिएटिव लाईसेंस को अन्य उद्योगों के समान ही रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल करने के मामले में कम्युनिकेटर्स को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। इन अत्यधिक रेगुलेटेड सेक्टर्स में कम्युनिकेशन करना एक भँवरजाल की तरह है, जिसमें संचार के प्रभाव और इंटीग्रिटी के बीच संतुलन बनाए रखना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसके लिए शिक्षा और प्रभावी संचार, दोनों के मिले-जुले दृष्टिकोण की जरूरत होती है।
विश्वास के लिए शिक्षा और संचार का मेल
सोशल और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से पहले रेगुलेटेड उद्योग संचार के लिए पारंपरिक मीडिया, जैसे समाचारपत्रों, मैग्ज़ीन, और टीवी पर आश्रित थे। आज स्थिति बदल गई है। आज जहाँ जानकारी मिलना बहुत आसान हो गया है, तो वहीं भ्रामक जानकारी का जोखिम भी हमेशा से है। ग्राहकों के बीच पारदर्शिता की मांग के कारण व्यवसाय ऐसी नीतियों को अपनाने के लिए बाध्य हैं, जो रैगुलेशंस के दायरे में काम करती हैं।
इस विकसित होती हुई मांग को पूरा करने के लिए कम्युनिकेटर्स को शिक्षा पर आधारित संदेशों द्वारा विश्वास स्थापित करना पड़ सकता है। इसका एक उदाहरण फार्मास्युटिकल्स उद्योग के बहुआयामी संचार में मिलता है, जिसका उद्देश्य डॉक्टरों, मरीजों और केयरगिवर्स की वास्तविकताओं को उजागर करना है, जिन्हें चिकित्सा या इलाज की विधि पर मिलने वाली जानकारी के आधार पर सूचित निर्णय लेना होता है। लोगों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए, फार्मास्युटिकल्स कंपनियाँ अपने संदेश वैज्ञानिक रूप से स्थापित जानकारी के आधार पर तैयार करती हैं, जिसमें ध्यान आकर्षिक करने वाले बड़े-बड़े दावे नहीं होते हैं। महामारी के दौरान क्लिनिकली प्रमाणित इलाजों के विकास में समय लगा।
सरकारों और फार्मास्युटिकल कंपनियों ने मिलकर भ्रांतियों को दूर किया और घरेलू उपचारों को लेकर सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावों द्वारा नुकसान होने से बचाया। शिक्षा को प्राथमिकता देकर फार्मास्युटिकल्स उद्योग ने रेगुलेटरी सीमाओं में जिम्मेदार संचार की अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की, ताकि विश्वास और ब्रांड की प्रतिष्ठा मजबूत हो।
डिजिटल युग में पारदर्शिता
यह विरोधाभासी महसूस हो सकता है, लेकिन रेगुलेशन संचार को व्यवस्थित कर सकते हैं, और कम्युनिकेटर्स को सशक्त बना सकते हैं। पारंपरिक और सोशल मीडिया चैनल्स के विस्तार और मौजूदा नियमों से एक ऐसा परिदृश्य निर्मित हुआ है, जिसमें अच्छी तरह विकसित, जानकारीवर्धक संदेशों की अपने ग्राहकों तक पहुँचने और परिणाम उत्पन्न करने की संभावना ज्यादा होती है। वायरल और जाली खबरें प्राकृतिक फिल्टर की तरह काम करती हैं, जिससे सुनिश्चित होता है कि संदेश विश्वसनीय हों और पूरा संचार सत्य व पारदर्शिता के साथ हो। कम्युनिकेटर्स आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस में हुई प्रगति का भी लाभ उठा सकते हैं, यह एक शक्तिशाली टूल है, जो पहले से अनुमान प्रदान कर सकता है कि इस कहानी पर विश्वास किया जाएगा और यह वायरल होगी या नहीं। ये टूल सचेत कम्युनिकेटर्स के लिए बहुत आवश्यक हैं, जो मौजूदा मीडिया परिदृश्य में सरलता और सटीकता से आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
इनसे कानूनी उलझनों का जोखिम कम होता है क्योंकि ये टूल्स संबद्ध उद्योग में लागू नए कानूनों के बारे में अपडेटेड जानकारी रखते हैं। मशहूर इंग्लिश कवि, एलेक्ज़ैंडर पोप ने ‘‘गलती करना इंसान का काम है...’’ कहकर शायद खुद को बचा लिया था। लेकिन विभिन्न उद्योगों में कम्युनिकेटर्स को अपना संदेश तैयार करते हुए सावधानी और ठोस निर्णय का अनुपालन करना बहुत आवश्यक है।
उदाहरण के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के अंतर्गत दिशानिर्देशों में अनुमति के कठोर मानक पेश किए गए हैं, जिसके अंतर्गत लक्ष्य पर केंद्रित विज्ञापन के लिए व्यक्तिगत जानकारी लेने और प्रोसेस करने से पहले यूज़र्स की स्पष्ट और सूचित अनुमति लेने का दायित्व विज्ञापनदाताओं का होगा। यह नियम ऐसे समय पर आया है जब लक्ष्य पर केंद्रित मार्केटिंग रणनीतियाँ बनाने के लिए ग्राहक का डेटा महत्वपूर्ण हो गया है।
रेगुलेटेड सेक्टर्स में संचार का डिज़ाईन करने के लिए सामरिक दृष्टिकोण आवश्यक होता है। यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन नियमों को अपनाना और नैतिक एवं प्रभावशाली संचार की रणनीति इसका मार्ग है।
कम्युनिकेटर्स को उपभोक्ताओं को शिक्षित करने, डेटा का उपयोग करने, रेगुलेशन अपनाने, और अपने क्षेत्र में खुद को एक विश्वसनीय नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। ये प्रगतिशील कानून मीडिया और कंटेंट निर्माताओं को आवश्यक कवच प्रदान करते हैं, और एक स्वस्थ परिदृश्य का निर्माण करते हैं, जिसमें विश्वसनीय जानकारी सबसे महत्वपूर्ण होती है।