Edited By jyoti choudhary,Updated: 03 Mar, 2025 04:52 PM
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एशिया के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सहयोगी कंपनी पर भारी जुर्माना लग सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह जुर्माना बैटरी सेल प्लांट की स्थापना में देरी के कारण लगाया जा सकता है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...
बिजनेस डेस्कः एशिया के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सहयोगी कंपनी पर भारी जुर्माना लग सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह जुर्माना बैटरी सेल प्लांट की स्थापना में देरी के कारण लगाया जा सकता है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आयात घटाने और स्थानीय उत्पादन बढ़ाने की योजना का हिस्सा था। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड ने इस योजना के तहत बोली जीतकर बैटरी सेल निर्माण का वादा किया था लेकिन समय सीमा पूरी न करने पर कंपनी को 1.25 अरब रुपए (14.3 मिलियन डॉलर) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
पीएम मोदी मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को देश की जीडीपी के 25% तक ले जाना चाहते हैं लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं हो पा रहा है। साल 2014 में इस सेक्टर की जीडीपी में हिस्सेदारी 15% थी जो 2023 में घटकर 13% रह गई है। इस बारे में रिलायंस इंडस्ट्रीज और भारी उद्योग मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत निर्माताओं को सब्सिडी मिलती है। स्मार्टफोन के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने में यह योजना काफी सफल रही है। लेकिन सभी क्षेत्रों में इसकी सफलता एक जैसी नहीं रही है।
बैटरी सेल प्लांट
रिलायंस न्यू एनर्जी के साथ-साथ राजेश एक्सपोर्ट्स और ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड की एक यूनिट ने साल 2022 में बैटरी सेल प्लांट बनाने के लिए बोली जीती थी। यह देश के इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के प्रयास का हिस्सा था। यह सरकार के PLI कार्यक्रम के तहत था। इस प्रोजेक्ट के लिए 181 अरब रुपये की सब्सिडी रखी गई थी। यह 30 गीगावाट-घंटे क्षमता वाले एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल बैटरी स्टोरेज बनाने के लिए थी। कंपनियों को परियोजना के लक्ष्यों को पूरा करने पर यह सब्सिडी मिलनी थी।
कंपनियों को समझौते के दो साल के भीतर मिनिमम कमिटेड कैपेसिटी और 25% लोकल वैल्यू एडिशन हासिल करना था। पांच साल के भीतर इसे 50% तक पहुंचाना था। लेकिन रिलायंस न्यू एनर्जी और साथ-साथ राजेश एक्सपोर्ट्स इन लक्ष्यों को हासिल करने नाकाम रहे। लेकिन भावीश अग्रवाल की ओला सेल टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने इस PLI कार्यक्रम के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं पर प्रगति की है। ओला इलेक्ट्रिक के एक प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी ने पिछले साल मार्च में परीक्षण उत्पादन शुरू किया था। अप्रैल से जून तिमाही में लिथियम-आयन सेल का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने की योजना है। उन्होंने कहा कि हम निर्धारित समय सीमा को पूरा करने के लिए सही रास्ते पर हैं।
क्या है मामला
सूत्रों के मुताबिक रिलायंस की यूनिट ने अपना ध्यान ग्रीन हाइड्रोजन पर केंद्रित कर दिया है। यह ईंधन कार्बन मुक्त भविष्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। कंपनी की प्राथमिकताओं में बदलाव के तहत यह किया गया है। कंपनियां अभी तक स्थानीय स्तर पर लिथियम-आयन सेल बनाने के लिए आवश्यक तकनीक को अंतिम रूप नहीं दे पाई हैं। रिलायंस न्यू एनर्जी ने 2021 में सोडियम-आयन सेल निर्माता फैराडियन और 2022 में नीदरलैंड की लिथियम वर्क्स का अधिग्रहण किया था। इसमें चीन में इसकी विनिर्माण सुविधाएं भी शामिल हैं। लेकिन ये छोटे निवेश थे।
जानकारों का कहना है कि पिछले साल सेल निर्माण में निवेश करना काफी जोखिम भरा था। वैश्विक स्तर पर बहुत अधिक अनिश्चितता का माहौल था। लिथियम-आयन बैटरी प्लांट बनाने के लिए आवश्यक पूंजी निवेश बहुत अधिक है, जो 60 से 80 मिलियन डॉलर प्रति गीगावाट-घंटे तक है। इसके अलावा ग्लोबल लिथियम-आयन फॉस्फेट (LFP) बैटरी की कीमतों में गिरावट आई है। इससे सेल का आयात पहले से कहीं ज्यादा सस्ता हो गया है। इससे घरेलू मांग को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई है और भारत में निवेश की गति धीमी हो गई है।