भारत में पेट्रोरसायन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग, चीन से ‘डंपिंग’ का खतरा

Edited By jyoti choudhary,Updated: 25 Dec, 2024 12:34 PM

demand to increase import duty on petrochemical products in india

भारत में पेट्रोरसायन उत्पादों के आयात पर चीन जैसे देशों द्वारा कम आयात शुल्क का फायदा उठाते हुए 'डंपिंग' किए जाने की आशंका जताई जा रही है। इस संदर्भ में फिक्की (FICCI) की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने सरकार को पत्र लिखकर इन उत्पादों पर आयात...

बिजनेस डेस्कः भारत में पेट्रोरसायन उत्पादों के आयात पर चीन जैसे देशों द्वारा कम आयात शुल्क का फायदा उठाते हुए 'डंपिंग' किए जाने की आशंका जताई जा रही है। इस संदर्भ में फिक्की (FICCI) की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने सरकार को पत्र लिखकर इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है। समिति ने रसायन और उर्वरक मंत्रालय से पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन पर सीमा शुल्क को 7.5% से बढ़ाकर 12.5% करने का आग्रह किया है।

पेट्रोरसायन की कमी और बढ़ती मांग

पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन का व्यापक रूप से विभिन्न उद्योगों में उपयोग होता है, जैसे मोटर वाहन, पैकेजिंग, कृषि, इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा उपकरण, तथा निर्माण। भारत में पेट्रोरसायन की कमी है और अनुमान है कि 2030 तक पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन की कमी 1.2 करोड़ टन प्रति वर्ष तक पहुंच सकती है, जो लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है।

चीन का बढ़ता निर्यात और भारत की आयात निर्भरता

चीन पेट्रोरसायन उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है और तेजी से एक प्रमुख निर्यातक बनता जा रहा है। भारत के प्रमुख आयात स्रोत पश्चिम एशिया और अमेरिका हैं, जहां कच्चे माल की कम कीमतें भारतीय उत्पादकों के लिए चुनौती उत्पन्न करती हैं। भारतीय उत्पादक मौजूदा चक्रीय संकट से जूझ रहे हैं, जबकि चीन के सस्ते उत्पादों की निरंतर आपूर्ति से प्रतिस्पर्धा और बढ़ रही है।

FICCI ने क्या लिखा भारत सरकार को

भारत सरकार को लिखे अपने मांग पत्र में फिक्की (FICCI) की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने बताया कि रसायनों और पेट्रोरसायनों का वर्तमान आयात 101 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो भारत के लिए अपने आयात बिल को कम करने और आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है। रसायन और पेट्रोरसायन भारत में आयात की दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी है। पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन के आयात पर शुल्क की कम दर इन सामग्रियों के लिए भारतीय बाजार में वृद्धि अपेक्षाकृत आसान बनाती है।

समिति ने लिखा कि आयात में यह वृद्धि हमारे घरेलू उत्पादकों के मुनाफे के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती है, जिससे स्थानीय बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बाधित होती है। अनावश्यक आयात के कारण विदेशी मुद्रा की अनावश्यक निकासी होती है, चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ता है तथा घरेलू क्षमता का कम उपयोग होता है। समिति ने कहा कि सीमा शुल्क में वृद्धि से उद्योग में नए निवेश के समक्ष आने वाले कुछ जोखिमों मसलन लंबी भुगतान अवधि और कम आंतरिक प्रतिफल दर को कम करने में मदद मिलेगी।

कितना बड़ा है भारत का Chemical कारोबार

भारतीय रसायन उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऑटोमोटिव, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, पर्सनल केयर, निर्माण और इंजीनियरिंग, खाद्य उत्पादन और प्रसंस्करण आदि जैसे डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए 80,000 से अधिक कैमिकल उत्पादों की जरुरत होती है।

अनुकूल मेगाट्रेंड के चलते भारतीय रसायन उद्योग पिछले 6 वर्षों में 7.6% की दर से बढ़कर वित्त वर्ष 2016 तक 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर याने करीब 13 लाख 20 हजार करोड़ रुपए है। भारतीय रसायन बाजार 2025 तक 9.3% की दर से बढ़ रहा है, जिसमें Speciality chemicals साल 2025 तक 12% से अधिक की सीएजीआर के साथ बढ़ रहे हैं।

विशाल बाजार को देखते हुए भारत के दुनिया के चौथे बड़े उपभोक्ता देश बनने की क्षमता है। लेकिन क्या घरेलू उत्पादन से मांग पूरी हो पाएगी, इस पर सवालिया निशान है। आपूर्ति और मांग के बीच का अंतर हाल के वर्षों में लगातार बढ़ रहा है और आयात से इसकी पूर्ति हो रही है। वहीं रासायनिक क्षेत्र (Chemical Sector) में नए निवेश बहुत कम हैं, जो चिंता का विषय है। भारत का कैमिकल उद्योग वैश्विक स्तर के बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक, Ease of doing business और प्रतिस्पर्धी कीमतों से मुकाबला करने की लड़ाई लड़ रहा है।
 

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