Edited By jyoti choudhary,Updated: 20 Jun, 2024 11:55 AM
अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश और सबसे बड़ी इकॉनमी है। उसकी करेंसी डॉलर करीब आठ दशकों से दुनिया का इकॉनमी पर एकछत्र राज करती आई है। आपसी कारोबार के लिए दुनिया डॉलर पर ही निर्भर रहा है लेकिन अब कई देश डॉलर से दूरी बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि...
बिजनेस डेस्कः अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश और सबसे बड़ी इकॉनमी है। उसकी करेंसी डॉलर करीब आठ दशकों से दुनिया का इकॉनमी पर एकछत्र राज करती आई है। आपसी कारोबार के लिए दुनिया डॉलर पर ही निर्भर रहा है लेकिन अब कई देश डॉलर से दूरी बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि दुनिया के सेंट्रल बैंक्स के रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी लगातार गिरती जा रही है। फाइनेंशियल ईयर 2024 की चौथी तिमाही में दुनिया के सेंट्रल बैंक्स में डॉलर का शेयर 58.4% रह गया है जो तीसरी तिमाही में 59.2% था। साल 2000 में इसकी हिस्सेदारी 71% थी। हालांकि यह अब भी दूसरे करेंसीज के मुकाबले कहीं आगे हैं। मसलन चीन की करेंसी युआन की हिस्सेदारी चौथी तिमाही में महज 2.3% थी जबकि यूरो की हिस्सेदारी करीब 20% है। दूसरी ओर साल 2023 के अंत में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी 17.6% पहुंच गई। यह 27 साल में सबसे ज्यादा है।
साल 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो अमेरिका ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। पश्चिमी देशों ने रूस का करीब आधा विदेशी मुद्रा भंडार फ्रीज कर दिया। रूस के प्रमुख बैंकों को SWIFT से हटा दिया गया। यह सिस्टम सीमा पार इंटरनेशनल पेमेंट की सुविधा है। चीन का पहले से ही अमेरिका से तनाव चल रहा है। उसे लग रहा है कि अमेरिका उसके साथ भी यही हथियार चल सकता है। इसे देखते हुए रूस और चीन अपना वित्तीय ढांचा तैयार करने में जुट गए। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है, जबकि रूस दुनिया का सबसे बड़ा एनर्जी एक्सपोर्टर है। दोनों देश तेल के लिए युआन में भुगतान कर रहे हैं। सऊदी अरब भी कच्चे तेल के बदले में चीन से युआन में भुगतान लेने को तैयार है। बाकी देश भी डॉलर का विकल्प सोच रहे हैं। इसमें अमेरिका के करीबी दोस्त भी शामिल हो रहे हैं। इससे डॉलर को झटका लगा है।
सोने की हिस्सेदारी बढ़ी
इस बीच साल की पहली तिमाही में दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने रेकॉर्ड 290 टन सोना खरीदा। केंद्रीय बैंकों के भारी मात्रा में सोना खरीदने के कारण सोने की कीमत में हाल में काफी तेजी आई है। एक जमाना था जब दुनिया के केंद्रीय बैंकों के रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा थी। साल 1935 तक यह स्थिति रही लेकिन उसके बाद सोने की हिस्सेदारी लगातार घटती गई। 2010 के दशक में यह करीब 13 फीसदी के आसपास रह गया था। लेकिन पिछले कुछ सालों से केंद्रीय बैंक डॉलर पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं लेकिन सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि डॉलर की गिरती परचेजिंग पावर से बचने के लिए सोना सबसे बेहतर है।