Edited By jyoti choudhary,Updated: 22 Feb, 2025 12:47 PM
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भारत सरकार खाने के तेल पर छह महीने में दूसरी बार इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, यह कदम घरेलू तिलहन किसानों को समर्थन देने के लिए उठाया जा सकता है, क्योंकि वे तिलहन की गिरती कीमतों से जूझ रहे हैं। दुनिया के सबसे...
बिजनेस डेस्कः भारत सरकार खाने के तेल पर छह महीने में दूसरी बार इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, यह कदम घरेलू तिलहन किसानों को समर्थन देने के लिए उठाया जा सकता है, क्योंकि वे तिलहन की गिरती कीमतों से जूझ रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े खाद्य तेल आयातक भारत में इस फैसले से स्थानीय तेल और तिलहन की कीमतें बढ़ सकती हैं, जबकि विदेशी खरीद पर असर पड़ सकता है। इसका सीधा असर पाम तेल, सोया तेल और सूरजमुखी तेल की मांग पर पड़ सकता है।
एक सरकारी सूत्र ने बताया कि शुल्क वृद्धि के संबंध में अंतर-मंत्रालयी परामर्श समाप्त हो गया है। सरकार द्वारा जल्द ही शुल्क बढ़ाने की उम्मीद है। एक अन्य सरकारी सूत्र ने भी आधिकारिक नियमों का हवाला देते हुए पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि सरकार खाद्य महंगाई पर फैसले के प्रभाव को ध्यान में रखेगी।
सितंबर में बढ़ाई थी ड्यूटी
सितंबर 2024 में, भारत ने कच्चे और रिफाइंड वनस्पति तेलों पर 20 फीसदी बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाई थी जिसके बाद कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 27.5 फीसदी आयात शुल्क लगाया गया, जो पहले 5.5 फीसदी था, जबकि तीन तेलों के रिफाइंड ग्रेड पर अब 35.75 फीसदी इंपोर्ट टैक्स है। शुल्क वृद्धि के बाद भी, सोयाबीन की कीमतें राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य से 10 फीसदी से अधिक नीचे कारोबार कर रही हैं। व्यापारियों को यह भी उम्मीद है कि अगले महीने नए सीजन की सप्लाई शुरू होने के बाद सर्दियों में बोई जाने वाली रेपसीड की कीमतों में और गिरावट आएगी।
कितनी हैं घरेलू कीमतें
घरेलू सोयाबीन की कीमतें लगभग 4,300 रुपए ($49.64) प्रति 100 किलोग्राम हैं, जो राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 4,892 रुपए से कम है। पहले अधिकारी ने कहा कि तिलहन की कम कीमतों के कारण, खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाना समझ में आता है, उन्होंने कहा कि बढ़ोतरी की सही मात्रा अभी तक तय नहीं की गई है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा कि तिलहन किसान दबाव में हैं और उन्हें तिलहन की खेती में अपनी रुचि बनाए रखने के लिए समर्थन की आवश्यकता है।