भारत ने खिलौना उद्योग में सफलता की नई ऊंचाईयों को छुआ, निर्यात में 239% की शानदार वृद्धि

Edited By rajesh kumar,Updated: 05 Jan, 2025 04:20 PM

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भारतीय खिलौना उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत बड़ी प्रगति की है। एक नए अध्ययन के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2015 के मुकाबले आयात में 52% की गिरावट और निर्यात में 239% की वृद्धि देखी है।

बिजनेस डेस्क: भारतीय खिलौना उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत बड़ी प्रगति की है। एक नए अध्ययन के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2015 के मुकाबले आयात में 52% की गिरावट और निर्यात में 239% की वृद्धि देखी है। यह रिपोर्ट "भारत में निर्मित खिलौनों की सफलता की कहानी" पर आधारित है, जिसे भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) लखनऊ ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के निर्देश पर तैयार किया।

सरकारी प्रयासों से बेहतर हुआ विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र

रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार के प्रयासों से भारतीय खिलौना उद्योग के लिए एक बेहतर और अनुकूल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हुआ है। इसके परिणामस्वरूप, 2014 से 2020 तक, छह वर्षों के भीतर विनिर्माण इकाइयों की संख्या दोगुनी हो गई। इसके साथ ही आयातित इनपुट पर निर्भरता 33% से घटकर 12% हो गई और सकल बिक्री मूल्य में 10% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से वृद्धि हुई। इस सबका परिणाम यह हुआ कि श्रम उत्पादकता भी बढ़ी है।

भारत वैश्विक खिलौना निर्यातक के रूप में उभर रहा 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत अब वैश्विक खिलौना मूल्य श्रृंखला में एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभर रहा है। भारत को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में शून्य-शुल्क बाजार पहुंच भी प्राप्त है। इससे भारतीय खिलौनों को इन देशों में एक मजबूत स्थान मिल रहा है। हालांकि, रिपोर्ट ने यह भी कहा कि भारत को चीन और वियतनाम जैसे खिलौना केंद्रों के मुकाबले एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिए खिलौना उद्योग और सरकार के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता है।

आवश्यक कदम और प्रयास

रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि भारत में खिलौना उद्योग को और भी सशक्त बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने चाहिए। इनमें प्रौद्योगिकी में प्रगति, ई-कॉमर्स का अधिकतम उपयोग, साझेदारी को बढ़ावा देना, निर्यात को बढ़ावा देना, ब्रांड निर्माण में निवेश करना, बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों को जोड़ना, सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय कारीगरों के साथ सहयोग करना शामिल है।

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