Edited By jyoti choudhary,Updated: 16 Sep, 2024 11:35 AM
ऑनलाइन ऑर्डर देकर भोजन मंगाने में सुविधा तो है लेकिन इसकी कीमत अधिक चुकानी पड़ती है। आमतौर पर ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म जैसे स्विगी और जोमैटो के माध्यम से ऑर्डर करने पर भोजन की कीमत रेस्टोरेंट में जाकर खाने की तुलना में अधिक होती है। इसे...
बिजनेस डेस्कः ऑनलाइन ऑर्डर देकर भोजन मंगाने में सुविधा तो है लेकिन इसकी कीमत अधिक चुकानी पड़ती है। आमतौर पर ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म जैसे स्विगी और जोमैटो के माध्यम से ऑर्डर करने पर भोजन की कीमत रेस्टोरेंट में जाकर खाने की तुलना में अधिक होती है। इसे डिफरेंशियल प्राइसिंग कहा जाता है, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन ऑर्डर के बीच कीमतों का अंतर होता है।
डिफरेंशियल प्राइसिंग का उदाहरण
अगर आप किसी रेस्टोरेंट में जाकर चिली पोटैटो खाते हैं तो आपको 499 रुपए देने पड़ सकते हैं, जबकि ऑनलाइन ऑर्डर करने पर यही डिश 549 रुपए तक हो जाती है। इसी तरह सुशी प्लेट रेस्टोरेंट में 999 रुपए में मिलती है, जबकि ऑनलाइन ऑर्डर करने पर इसकी कीमत 1,100 रुपए तक हो सकती है।
दिल्ली एनसीआर के एक मशहूर रेस्टोरेंट में मलाई चाप 120 रुपए में मिलती है लेकिन ऑनलाइन ऑर्डर करने पर यह 180 रुपए में मिलती है। वेज तंदूरी मोमो की प्लेट भी ऑनलाइन ऑर्डर करने पर 80 रुपए तक महंगी हो जाती है।
क्यों होता है ऐसा?
फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म रेस्टोरेंट से 22% से 35% तक कमीशन लेते हैं। इस कारण रेस्टोरेंट्स अपने मार्जिन को बनाए रखने के लिए ऑनलाइन कीमतों को बढ़ा देते हैं। साथ ही स्विगी और जोमैटो जैसे प्लेटफॉर्म पर कूपन और डिस्काउंट का भी असर होता है, जिससे रेस्टोरेंट को अपने मुनाफे की भरपाई के लिए कीमतें बढ़ानी पड़ती हैं।
नैशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष प्रणव रुंगटा के अनुसार, प्लेटफॉर्म कमीशन के अलावा जीएसटी और पेमेंट गेटवे चार्जेस की वजह से कुल खर्च 24% से 25% तक हो जाता है।
यह अंतर सर्विस चार्ज और डिलीवरी फीस को अलग रखकर होता है। जब आप रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं, तो सर्विस चार्ज वैकल्पिक होता है, जबकि ऑनलाइन ऑर्डर करने पर आप स्वेच्छा से डिलीवरी बॉय को टिप दे सकते हैं।