Edited By jyoti choudhary,Updated: 19 Sep, 2024 05:54 PM
अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्कयाज दरों में कटौती की घोषणा के बाद विशेषज्ञों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कम ब्याज दर पर वित्तपोषण से निवेश प्रवाह बढ़ सकता है, जबकि अन्य का मानना है कि इससे शेयरों...
बिजनेस डेस्कः अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा नीतिगत दर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की घोषणा के बाद विशेषज्ञों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कम ब्याज दर पर वित्तपोषण से निवेश प्रवाह बढ़ सकता है, जबकि अन्य का मानना है कि इससे शेयरों पर रिटर्न में कमी आएगी और सोने की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
फेडरल रिजर्व की इस कटौती के बाद प्रमुख नीतिगत दर अब 4.75 से 5.0 प्रतिशत के दायरे में आ गई है, जबकि पहले यह 5.25 से 5.50 प्रतिशत के दायरे में थी, जो पिछले दो दशकों का उच्चतम स्तर था।
विशेषज्ञों की राय
पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष संजीव अग्रवाल (Sanjeev Aggarwal) ने कहा कि फेड की दरों में कटौती से इक्विटी पर रिटर्न कम हो सकता है, जबकि सोने की कीमतों में तेजी की संभावना है। इसी तरह, कामा ज्वेलरी के प्रबंध निदेशक कोलिन शाह ने कहा कि ब्याज दरों में कटौती से सोने की कीमतों में वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है, जो इस परिदृश्य को सकारात्मक रूप से देखे जाने का कारण बन सकता है।
विदेशी निवेश और भारतीय बाजार
बिज2क्रेडिट के सीईओ रोहित अरोड़ा का मानना है कि फेड की दर कटौती से भारतीय बाजारों में विदेशी निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह बढ़ेगा। इससे रुपया मजबूत हो सकता है और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को ब्याज दरें कम करने का अवसर मिल सकता है। हालांकि, आरबीआई ने फरवरी 2023 से रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर स्थिर रखा है।
भारतीय ब्याज दरों पर प्रभाव
इंडियाबॉन्ड्स डॉट कॉम के सह-संस्थापक विशाल गोयनका का कहना है कि भारत में अभी ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम है, खासकर आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक से पहले। हालांकि, उभरते बाजारों पर इसका दीर्घकालिक असर देखा जा सकता है।
निवेश प्रवाह पर प्रभाव
ओमनीसाइंस कैपिटल के सीईओ विकास वी. गुप्ता ने कहा कि कम दर पर वित्तपोषण से विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के माध्यम से भारत जैसे उभरते बाजारों में निवेश प्रवाह को बढ़ावा मिल सकता है। इससे भारतीय बाजारों में विदेशी निवेश बढ़ेगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक हो सकता है।