भारत ने इस मामले में चीन को छोड़ा पीछे, एशिया-यूरोप और अमेरिका... हर जगह से मिली Good News

Edited By jyoti choudhary,Updated: 04 Nov, 2024 05:57 PM

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चीन, जो कभी मैन्युफैक्चरिंग में सबसे आगे था, अब इस क्षेत्र में काफी पीछे हो गया है। जहां एक ओर चीन की आर्थिक वृद्धि में सुस्ती आई है, वहीं भारत के लिए सकारात्मक संकेत मिले हैं। HSBC के ताजे आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में भारत के मैन्युफैक्चरिंग...

बिजनेस डेस्कः चीन, जो कभी मैन्युफैक्चरिंग में सबसे आगे था, अब इस क्षेत्र में काफी पीछे हो गया है। जहां एक ओर चीन की आर्थिक वृद्धि में सुस्ती आई है, वहीं भारत के लिए सकारात्मक संकेत मिले हैं। HSBC के ताजे आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उल्लेखनीय तेजी आई है, जिसके चलते भारत ने इस मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया है।

विदेशी मांग का प्रभाव

भारत को विभिन्न देशों से नए ऑर्डर मिले हैं, जिससे बिक्री में वृद्धि हुई है। इस कारण अक्टूबर में नौकरियों की संख्या भी बढ़ गई। अक्टूबर महीने में भारत ने एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका और अमेरिका से पहले से ज्यादा ऑर्डर प्राप्त किए, जिससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गति मिली है।

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भारत और चीन का PMI

भारत का पीएमआई: अक्टूबर में एचएसबीसी इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) 57.5 पॉइंट पर पहुंच गया, जो सितंबर में 56.5 पॉइंट था।

चीन का पीएमआई: चीन की PMI 50.30 पॉइंट पर स्थिर रही है। हालांकि अक्टूबर में चीन के PMI में भी हल्का सुधार देखा गया है, फिर भी यह भारत से काफी पीछे है।

भारत में बनी चीजों की बढ़ती मांग

पिछले कुछ समय में भारतीय उत्पादों की वैश्विक मांग में वृद्धि हुई है। कई विदेशी कंपनियों ने भारत से ऑर्डर बुक किए हैं। वर्तमान में औसत ऑर्डर की संख्या पिछले 20 वर्षों में मिली औसत संख्या से भी अधिक है। नए उत्पादों की लांचिंग और सफल मार्केटिंग ने भी बिक्री में योगदान किया है।

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कर्मचारियों की संख्या बढ़ी

मांग बढ़ने से कर्मचारियों की संख्या में भी तेजी आई है यानी रोजगार के अवसर बढ़े हैं। डेटा के मुताबिक मैन्युफैक्चरर्स ने अक्टूबर में अतिरिक्त कर्मचारियों को जॉब दी। यह संख्या सितंबर के रखे गए नए कर्मचारियों के मुकाबले ज्यादा थी।

अक्टूबर का डेटा कलेक्शन करीब 20 वर्षों में सबसे अधिक रहा। एचएसबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय मैन्युफैक्चरर्स भविष्य के प्रोडक्शन की मात्रा के बारे में अधिक आशावादी हो गए हैं।


 

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