Edited By jyoti choudhary,Updated: 28 Jun, 2024 01:25 PM
वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) परिषद ने मोटर बीमा दावों में कबाड़ के निस्तारण से होने वाली आमदनी पर कर लगाए जाने को लेकर स्थिति साफ करते हुए कहा है कि दावों के निपटान के बाद कबाड़ या मलबे की बिक्री या निपटान के मामले में जनरल इंश्योरेंस करने वालों को...
नई दिल्लीः वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) परिषद ने मोटर बीमा दावों में कबाड़ के निस्तारण से होने वाली आमदनी पर कर लगाए जाने को लेकर स्थिति साफ करते हुए कहा है कि दावों के निपटान के बाद कबाड़ या मलबे की बिक्री या निपटान के मामले में जनरल इंश्योरेंस करने वालों को जीएसटी देनदारी का भुगतान करना होगा।
कबाड़ के मूल्य से आशय क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी संपदा की कीमत से है। बीमित संपदा के दावों के निपटान के बाद क्षतिग्रस्त हुई संपदा को रिकवर करके उसे बेचा जाता है, जिससे बीमा कंपनियों को धन मिलता है। उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने अनुरोध किया था कि कबाड़ के मूल्य को लेकर स्थिति साफ की जानी चाहिए, उसके बाद परिषद ने स्थिति साफ की है। हितधारकों की ओर से स्पष्टीकरण की मांग की गई थी कि क्या मोटर वाहन बीमा के मामले में, मोटर वाहन को हुए नुकसान के दावे के मूल्यांकन में निर्धारित अवशेष या मलबे के मूल्य पर बीमा कंपनी द्वारा जीएसटी का भुगतान किया जाना है?
कर अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि अगर बीमा अनुबंध में मलबे के मूल्य में कटौती किए बगैर बीमित वस्तु के घोषित मूल्य (आईडीवी) पर दावों के निपटान का प्रावधान है, वह संपत्ति बीमा कंपनी की होगी। ऐसे मामलों में बीमा कंपनी उस संपत्ति का निपटान करती है, इसलिए मलबे के निपटान या बिक्री पर जीएसटी की देनदारी बीमा कंपनियों की होगी।
बहरहाल ऐसे मामलों में जहां जनरल इंश्योरेंस कंपनियां मलबे के मूल्य को दावे की राशि में से घटा देती हैं, वह संपत्ति बीमा कराने वाले व्यक्ति की होती है। ऐसे में बीमा कंपनियों की इस पर जीएसटी की देनदारी नहीं बनेगी। जनरल इंश्योरेंस सर्विस के काम में लगी बीमा कंपनियां पॉलिसीधारकों द्वारा मोटर वाहनों की मरम्मत या क्षति की लागत का बीमा करती हैं।