Edited By jyoti choudhary,Updated: 21 Mar, 2025 11:10 AM

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने अनुमान लगाया कि वित्त वर्ष 2025 में भारत की जीडीपी 6.7% की दर से बढ़ेगी, जिससे यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनेगा। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि भारत की अमेरिका के प्रति कम निर्भरता के कारण...
बिजनेस डेस्कः एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने अनुमान लगाया कि वित्त वर्ष 2025 में भारत की जीडीपी 6.7% की दर से बढ़ेगी, जिससे यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनेगा। रेटिंग एजेंसी ने कहा कि भारत की अमेरिका के प्रति कम निर्भरता के कारण टैरिफ प्रभाव भी सीमित रहेगा।
भारतीय कंपनियों पर दबाव कम लेकिन चुनौतियां बरकरार
एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कंपनियों की आय में कुछ धीमापन आ सकता है लेकिन बेहतर ऑपरेटिंग प्रदर्शन और मजबूत वित्तीय स्थिति के चलते वे दबाव झेलने में सक्षम होंगी। साथ ही बढ़ती अर्थव्यवस्था, उपभोक्ता खर्च में इजाफा और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होंगे।
क्रेडिट क्वालिटी बनी सुरक्षा कवच
रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय कंपनियां मजबूत क्रेडिट क्वालिटी के चलते सुरक्षित स्थिति में हैं और अधिकांश कंपनियां ऑनशोर फंडिंग पर ध्यान केंद्रित करेंगी। हालांकि, कुछ कंपनियां सिलेक्टिव रूप से डॉलर बॉन्ड का भी उपयोग कर सकती हैं।
आईटी, ऑटो और केमिकल सेक्टर पर अमेरिका की निर्भरता
एसएंडपी के अनुसार, भारत के आईटी सर्विसेज, केमिकल और ऑटो सेक्टर की अमेरिकी बाजारों पर अधिक निर्भरता है। हालांकि, सर्विस सेक्टर पर टैरिफ का प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों, जो अमेरिका में अपने जगुआर लैंड रोवर ब्रांड के जरिए बड़ा एक्सपोजर रखती हैं, उन पर असर दिख सकता है।
रिन्यूएबल एनर्जी और अन्य सेक्टरों की स्थिति
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की योजना 2032 तक रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने की है, जो वर्तमान में 200 गीगावाट है।
वित्त वर्ष 2025 में, एसएंडपी रेटिंग वाली कंपनियों की औसत आय और EBITDA वृद्धि 8% तक रहने का अनुमान है। खासतौर पर स्टील, केमिकल और एयरपोर्ट सेक्टर औसत से अधिक ग्रोथ दर्ज कर सकते हैं। 2024 में गिरावट के बाद केमिकल सेक्टर में सुधार जारी रहने की उम्मीद है।
ऑनशोर फंडिंग को प्राथमिकता देगी भारतीय कंपनियां
एसएंडपी ग्लोबल का मानना है कि इस साल अधिकांश भारतीय कंपनियां घरेलू बाजारों में कम लागत वाली ऑनशोर फंडिंग को प्राथमिकता देंगी। वहीं, डॉलर बॉन्ड जैसे ऑफशोर फंडिंग विकल्पों का उपयोग केवल चुनिंदा मामलों में किया जाएगा।