Edited By jyoti choudhary,Updated: 18 Mar, 2025 04:16 PM

चीन, जो श्रीलंका के सबसे बड़े कर्जदाताओं में से एक है, को श्रीलंका के बाहरी कर्ज पुनर्गठन के चलते 7 अरब अमेरिकी डॉलर का भारी नुकसान हुआ है। कोलंबो में चीन के राजदूत क्यूई झेनहोंग ने बताया कि चीन अक्टूबर 2023 में पुनर्गठन समझौता करने वाला पहला...
बिजनेस डेस्कः चीन, जो श्रीलंका के सबसे बड़े कर्जदाताओं में से एक है, को श्रीलंका के बाहरी कर्ज पुनर्गठन के चलते 7 अरब अमेरिकी डॉलर का भारी नुकसान हुआ है। कोलंबो में चीन के राजदूत क्यूई झेनहोंग ने बताया कि चीन अक्टूबर 2023 में पुनर्गठन समझौता करने वाला पहला द्विपक्षीय ऋणदाता था। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि चीन आमतौर पर श्रीलंका को दी जाने वाली वित्तीय सहायता का सार्वजनिक रूप से प्रचार नहीं करता। इस बीच, राजदूत ने भारत और चीन के बीच श्रीलंका के विकास में संयुक्त सहयोग की उम्मीद भी जताई।
भारत-चीन सहयोग की उम्मीद
राजदूत झेनहोंग ने श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के विकास में भारत और चीन के संयुक्त सहयोग की संभावना जताई। उन्होंने कहा कि चीन और भारत को साझा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चीन का भारत के साथ कोई विवाद नहीं है और दोनों देशों को क्षेत्रीय विकास के लिए सहयोग बढ़ाना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में भारत, चीन और श्रीलंका मिलकर एक बड़ी विकास परियोजना को लागू कर सकते हैं।
पीएम मोदी के बयान की चीन ने की सराहना
इससे पहले, चीन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भारत-चीन संबंधों पर दिए गए सकारात्मक बयान की सराहना की थी। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने प्रधानमंत्री मोदी के संवाद को प्राथमिकता देने वाले दृष्टिकोण को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन के साथ बातचीत में कहा था कि भारत और चीन को विवाद के बजाय बातचीत के जरिए समस्याओं को हल करने पर ध्यान देना चाहिए। चीन ने इस रुख को सकारात्मक बताते हुए द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की इच्छा जताई।
श्रीलंका का कर्ज पुनर्गठन और भारत-चीन संबंधों पर असर
श्रीलंका ने 2022 के आर्थिक संकट के बाद 46 अरब अमेरिकी डॉलर के बाहरी कर्ज के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू की थी। इस कर्ज पुनर्गठन से चीन को भारी नुकसान हुआ, लेकिन चीन ने श्रीलंका को दी जाने वाली सहायता के बारे में सार्वजनिक रूप से ज्यादा जानकारी नहीं दी।
भारत और चीन दोनों ही श्रीलंका में अपनी रणनीतिक उपस्थिति मजबूत करना चाहते हैं, ऐसे में राजनयिक संतुलन बनाए रखना श्रीलंका के लिए महत्वपूर्ण रहेगा।