Edited By jyoti choudhary,Updated: 23 Sep, 2024 03:25 PM
टाटा संस (Tata Sons) को टैक्स डिपार्टमेंट (tax department) से बड़ी राहत मिली है। जीएसटी डिपार्टमेंट (GST Department) की ओर से समूह को भेजी गई 1,500 करोड़ रुपए की टैक्स डिमांड समाप्त कर दी गई है। टैक्स डिमांड का यह मामला डोकोमो के साथ हुई सेटलमेंट...
बिजनेस डेस्कः टाटा संस (Tata Sons) को टैक्स डिपार्टमेंट (tax department) से बड़ी राहत मिली है। जीएसटी डिपार्टमेंट (GST Department) की ओर से समूह को भेजी गई 1,500 करोड़ रुपए की टैक्स डिमांड समाप्त कर दी गई है। टैक्स डिमांड का यह मामला डोकोमो के साथ हुई सेटलमेंट डील से जुड़ा हुआ था।
1,500 करोड़ रुपए की मिल गई राहत
एक रिपोर्ट के अनुसार, डोकोमो के साथ सेटलमेंट डील से जुड़े इस मामले में जीएसटी डिपार्टमेंट की एडजुकेटिंग अथॉरिटी ने टाटा समूह (Tata Group) की होल्डिंग कंपनी टाटा संस को राहत दी है। अथॉरिटी ने कंपनी के ऊपर जारी 1,500 करोड़ रुपए की टैक्स डिमांड को डिसमिस करने का फैसला किया है। मामले से जुड़े अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि एडजुकेटिंग अथॉरिटी का यह आदेश आर्बिट्रेशन से जुड़ी कंपनियों के लिए नजीर का काम करेगा।
हाईकोर्ट जा सकता है GST डिपार्टमेंट
हालांकि अभी टाटा संस के खिलाफ यह मामला पूरी तरह से समाप्त भी नहीं हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि जीएसटी डिपार्टमेंट एडजुकेटिंग अथॉरिटी के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट जा सकता है।
डोकोमो को किया था इतना भुगतान
दरअसल टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने समूह की दूरसंचार कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज और जापान की दूरसंचार कंपनी डोकोमो के बीच एक विवद को सुलटाने के लिए 1.27 बिलियन डॉलर का भुगतान किया था। यह भुगतान टाटा संस ने डोकोमो को किया था। जीएसटी डिपार्टमेंट का कहना था कि टाटा संस ने यह पेमेंट टाटा टेलीसर्विसेज की ओर से किया। ऐसे में इसे टाटा संस से टाटा टेलीसर्विसेज को मिले लोन के रूप में ट्रीट किया जाना चाहिए और इस कारण 18 फीसदी की दर से जीएसटी की देनदारी बनती है।
टाटा संस का तर्क- इस कारण नहीं बनती देनदारी
टाटा संस ने जीएसटी सतर्कता महानिदेशालय (DGGI) के उक्त आदेश को चुनौती दी थी। डीजीजीआई का आदेश 2019 में आया था। टाटा संस का कहना था कि लंदन की एक अदालत में आर्बिट्रेशन की सुनवाई के बाद वह पेमेंट किया गया था। ऐसे में उसके ऊपर जीएसटी की कोई देनदारी नहीं बनती है। टाटा संस ने तर्क पेश किया कि आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट में जीएसटी की देनदारी का सवाल ही नहीं उठता है।