Edited By jyoti choudhary,Updated: 22 Jul, 2024 04:10 PM
देश में बढ़ते कार्यबल को देखते हुए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन 78.5 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत है। संसद में सोमवार को पेश 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है। समीक्षा में नौकरियों की संख्या का एक व्यापक अनुमान दिया गया गया...
बिजनेस डेस्कः देश में बढ़ते कार्यबल को देखते हुए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन 78.5 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत है। संसद में सोमवार को पेश 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है। समीक्षा में नौकरियों की संख्या का एक व्यापक अनुमान दिया गया गया है। बढ़ते कार्यबल के लिए इन नौकरियों को देश में सृजित करने की जरूरत है। इसमें कहा गया कि कामकाजी उम्र में हर कोई नौकरी की तलाश नहीं करेगा। उनमें से कुछ खुद का रोजगार करेंगे और कुछ नियोक्ता भी होंगे।
समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि नौकरियों से ज्यादा आजीविका पैदा करने के बारे में है। इसके लिए सभी स्तर पर सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलकर प्रयास करना होगा। इसमें कहा गया है कि कार्यबल में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटकर 2047 में 25 प्रतिशत रह जाएगी, जो 2023 में 45.8 प्रतिशत थी। समीक्षा में कहा गया है, ‘‘परिणामस्वरूप, भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ते कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने के लिए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत है।''
इसमें सुझाव दिया गया है कि गैर-कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 78.5 लाख नौकरियों की मांग में पीएलआई योजना (5 वर्षों में 60 लाख रोजगार सृजन), मित्र कपड़ा योजना (20 लाख रोजगार सृजन) और मुद्रा जैसी मौजूदा योजनाएं पूरक भूमिका निभा सकती हैं। इसमें कहा गया है कि बढ़ते कार्यबल को संगठित रूप देने, उन क्षेत्रों में रोजगार सृजन की सुविधा प्रदान करने, जो कृषि से स्थानांतरित होने वाले श्रमिकों को अपना सकते हैं और नियमित वेतन/वेतन रोजगार वाले लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करने की चुनौतियां भी मौजूद हैं। समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि राज्य सरकारें अनुपालन बोझ को कम करके और भूमि पर कानूनों में सुधार करके रोजगार सृजन में तेजी ला सकती हैं।