Volkswagen भारत में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में, कर चुकी है दो अरब डॉलर से अधिक का निवेश

Edited By jyoti choudhary,Updated: 01 Jul, 2024 11:56 AM

this foreign auto company is disillusioned with india preparing to sell stake

एक और विदेशी ऑटो कंपनी भारत में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। जर्मनी की दिग्गज ऑटो कंपनी फॉक्सवैगन (Volkswagen) अपने भारतीय कारोबार में हिस्सेदारी एक स्थानीय पार्टनर को बेचने के लिए बातचीत कर रही है। फॉक्सवैगन भारत में अबतक दो अरब डॉलर से अधिक...

बिजनेस डेस्कः एक और विदेशी ऑटो कंपनी भारत में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। जर्मनी की दिग्गज ऑटो कंपनी फॉक्सवैगन (Volkswagen) अपने भारतीय कारोबार में हिस्सेदारी एक स्थानीय पार्टनर को बेचने के लिए बातचीत कर रही है। फॉक्सवैगन भारत में अबतक दो अरब डॉलर से अधिक निवेश कर चुकी है, इसके बावजूद बाजार में अपनी पकड़ बनाने में विफल रही है। इसलिए कंपनी अपने भारतीय कारोबार में हिस्सेदारी बेचने जा रही है। कंपनी के एक टॉप ग्लोबल एग्जीक्यूटिव ने कहा कि कंपनी अपनी कम बाजार हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए नई सस्ती कारों का विकास कर रही है। कंपनी ने अब तक देश में महंगी यूरोपीय गाड़ियों को लॉन्च किया जा है जिन्हें खास सफलता नहीं मिली है।

ग्रुप ने साथ ही मांग की है कि देश में हाइब्रिड वाहनों पर टैक्स की दरें कम होनी चाहिए। उसका तर्क है कि सरकार ऐसे समय में लोगों को इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकती जब मार्केट को पेट्रोल-डीजल इंजन से ग्रीन कारों में बदलाव में समय लग रहा है। स्कोडा ऑटो के ग्लोबल सीईओ क्लॉस जेलमर ने यह बात कही है। वह भारत में फॉक्सवैगन ग्रुप की निवेश और रणनीति के प्रमुख भी हैं। माना जा रहा है कि कंपनी भारत में महिंद्रा एंड महिंद्रा को पार्टनर बना सकती है। इस बारे में जेलमर ने कहा, 'हम 20 से अधिक वर्षों से भारत में हैं। यह साबित नहीं हुआ है कि हम सही रास्ते पर हैं। इसलिए, आप एक नया रास्ता आजमाते हैं। मुझे विश्वास है कि अगर हमें सही साझेदार मिल जाए, तो हम एक-दूसरे से सीख सकते हैं और लाभ उठा सकते हैं।'

कैसा पार्टनर चाहिए

हालांकि जेलमर ने यह नहीं बताया कि फॉक्सवैगन ग्रुप स्थानीय साझेदार के साथ वार्ता कब तक पूरी कर लेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या यह ऐसी साझेदारी होगी जिसमें नए प्लेयर को इक्विटी की पेशकश की जाएगी, उन्होंने कहा, 'हम एक सच्ची साझेदारी की तलाश कर रहे हैं। यह कुछ हद तक बिना किसी अनुबंध के शादी करने जैसा है। इसका मतलब है इंजीनियरिंग क्षमता, बिक्री क्षमता, खरीद क्षमता तक एक्सेस प्राप्त करना।' उन्होंने कहा कि यूरोपीय कारें अक्सर ओवर-इंजीनियर्ड वाली होती हैं, जिसकी भारत में जरूरत नहीं हो सकती। अक्सर हम अपनी अपेक्षाओं के अनुसार कारें बनाते हैं जिनकी कीमत ज्यादा होती है। यह ऐसा पहलू है जो हमारी प्रतिस्पर्धी स्थिति को कमजोर करता है। इसलिए, हमें सीखने की जरूरत है और हमें सही जगह के बारे में पता होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारतीय साझेदार हमारी गाड़ियों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सोर्सिंग और खरीद के लिए स्थानीय कनेक्शन देगा। हमारी इंजीनियरिंग उत्कृष्टता के साथ मिलकर, यह एक विनिंग कंबिनेशन हो सकता है। यह कहना सही नहीं होगा कि हम एक कमजोर साझेदार हैं जो किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं जो हमारा नेतृत्व करे। यह दोनों के लिए समान स्तर पर होना चाहिए, हमें एक-दूसरे को लाभ पहुंचाना चाहिए और फिर यह अतीत की तुलना में बहुत अधिक सफल हो सकता है। 

हाइब्रिड के लिए इनसेंटिव्स के बारे में उन्होंने कहा, 'मैं केवल इतना कह सकता हूं कि चीन, यूरोप और अमेरिका में सीखे गए सबक बताते हैं कि BEV (बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन) और ICE के बीच विकल्प देना सही तरीका नहीं है। यदि आप चीन और हाइब्रिड की हिस्सेदारी को देखें, तो यह चौंका देने वाला है और BEV से अधिक है। हमें यही करने की आवश्यकता है।

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