Edited By jyoti choudhary,Updated: 18 Apr, 2025 03:02 PM
कॉपर यानी तांबे की कीमतों में हाल ही में जबरदस्त उछाल देखा गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 10,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर पहुंच गई है। इसकी वजह है नई तकनीकों में इसकी बढ़ती मांग- चाहे वह इलेक्ट्रिक वाहन हों, रिन्यूएबल एनर्जी, आर्टिफिशियल...
बिजनेस डेस्कः कॉपर यानी तांबे की कीमतों में हाल ही में जबरदस्त उछाल देखा गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 10,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर पहुंच गई है। इसकी वजह है नई तकनीकों में इसकी बढ़ती मांग- चाहे वह इलेक्ट्रिक वाहन हों, रिन्यूएबल एनर्जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या फिर डिफेंस से जुड़ी टेक्नोलॉजी।
कॉपर को अब 'सुपर मेटल' कहा जा रहा है और यही कारण है कि भारत के बड़े बिजनेस ग्रुप जैसे अडानी और जेएसडब्ल्यू ने भी इस सेक्टर में कदम रख दिया है। अभी तक भारत में सिर्फ हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान कॉपर ही प्रमुख कॉपर निर्माता थीं।
अनिल अग्रवाल ने कहा- 'कॉपर है अगला सोना'
वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने भी तांबे को भविष्य का सबसे महत्वपूर्ण धातु करार दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “कॉपर अगला सोना है। बैरिक गोल्ड अब तांबे की ओर शिफ्ट हो रही है। यह सुपर मेटल आने वाले समय में हर इंडस्ट्री की रीढ़ बनने जा रहा है।” उनके मुताबिक तांबा उतना ही जरूरी होता जा रहा है जितना लिथियम और कोबाल्ट, जो बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स में जरूरी माने जाते हैं।
भारत में बढ़ेगा आयात या उत्पादन?
वर्तमान में भारत में रिफाइंड कॉपर का उत्पादन करीब 5.5 लाख टन सालाना है, जबकि मांग 7.5 लाख टन से ज्यादा है। इस वजह से देश हर साल करीब 5 लाख टन कॉपर का आयात करता है। 2018 में स्टरलाइट कॉपर प्लांट के बंद होने के बाद भारत में उत्पादन और भी घट गया था। यह प्लांट अकेले 4 लाख टन कॉपर बनाता था।
2030 तक दोगुनी हो सकती है मांग
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 तक भारत में कॉपर की डिमांड दोगुनी हो सकती है। इसकी एक वजह यह भी है कि भारत में प्रति व्यक्ति कॉपर की खपत अभी सिर्फ 0.6 किलोग्राम है, जबकि वैश्विक औसत 3.2 किलोग्राम है।
दुनिया के प्रमुख उत्पादक देश
कॉपर उत्पादन में चिली शीर्ष पर है, इसके बाद पेरू, चीन और कांगो का नाम आता है। भारत ने 2023 में कॉपर को 30 'महत्वपूर्ण खनिजों' की सूची में भी शामिल किया था।