Edited By jyoti choudhary,Updated: 10 Mar, 2025 06:24 PM

शेयर बाजार में जारी गिरावट के बीच निवेशकों के लिए चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है। 16 साल बाद ऐसा नकारात्मक रुझान देखने को मिल रहा है, जिससे बाजार की स्थिरता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हालिया सुधारों के बावजूद बाजार पर...
बिजनेस डेस्कः शेयर बाजार में जारी गिरावट के बीच निवेशकों के लिए चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है। 16 साल बाद ऐसा नकारात्मक रुझान देखने को मिल रहा है, जो निवेशकों के लिए जोखिमभरा साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाजार में हालिया उतार-चढ़ाव के बावजूद लंबी अवधि तक मंदी बनी रह सकती है। हालांकि, भारतीय सूचकांक कुछ सत्रों में सुधार दिखा रहे हैं लेकिन लॉन्ग टर्म में बाजार पर बियर हावी होने की आशंका जताई जा रही है।
भारतीय बाजार का ओवर वैल्यूएशन समाप्त
पिछले पांच महीनों की बिकवाली के कारण भारतीय बाजार का ओवर वैल्यूएशन खत्म हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बीएसई सेंसेक्स अब अमेरिकी डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज (Dow Jones) की तुलना में कम P/E अनुपात पर ट्रेड कर रहा है, जो 2009 के बाद पहली बार हुआ है। इसका मतलब है कि भारतीय कंपनियों की आय और मुनाफे की वृद्धि दर घट रही है, जबकि अमेरिकी बाजार में यह अनुपात बेहतर हो रहा है।
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सेंसेक्स का घटता मूल्यांकन
BSE का सेंसेक्स वर्तमान में बीते साल की कमाई के 21.8 गुना पर मूल्यांकित है, जो मार्च 2023 में 23.8 गुना था। दूसरी ओर, डाउ जोन्स का P/E अनुपात 22.4 गुना है, जो एक साल पहले 22.8 गुना था। ऐतिहासिक रूप से सेंसेक्स औसतन डॉउ जोन्स की तुलना में 25% प्रीमियम पर ट्रेड करता था लेकिन अब यह अंतर कम हो गया है। मार्च 2022 में सेंसेक्स का P/E अनुपात 26 गुना था, जबकि अब यह गिरकर 21.8 गुना हो गया है। इसके विपरीत, डॉउ जोन्स का P/E अनुपात 15.6 गुना के निचले स्तर से लगातार बढ़ता जा रहा है।
अमेरिकी बाजार में तेजी, भारत में सुस्ती
अक्टूबर-दिसंबर 2024 तिमाही में अमेरिकी कंपनियों की आय 16% बढ़ी, जबकि भारत में यह वृद्धि सिर्फ 6% रही। 2025 के पूरे कैलेंडर वर्ष में भी अमेरिकी कंपनियों की ग्रोथ भारतीय कंपनियों से अधिक रहने की संभावना है। अनुमान है कि भारत की कमाई FY26 में 11% बढ़ सकती है लेकिन अमेरिका की तुलना में यह आंकड़ा कमजोर ही रहेगा।
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FPI का भारत से पलायन जारी
भारत में धीमी आय वृद्धि के चलते विदेशी निवेशक (FPI) अब अमेरिका, चीन और पश्चिमी यूरोप जैसे बाजारों का रुख कर रहे हैं। सितंबर 2023 से अब तक FPI ने भारतीय बाजार से करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए निकाल लिए हैं, जिससे सेंसेक्स में 12% की गिरावट दर्ज की गई है। इसके विपरीत, डॉउ जोन्स ज्यादा स्थिर बना हुआ है।
डॉलर में कमजोर भारतीय ग्रोथ
पिछले वर्ष डॉउ घटक कंपनियों की आय में 8.9% की वृद्धि हुई, जबकि सेंसेक्स की कंपनियों की आय 10% बढ़ी। हालांकि, रुपए के अवमूल्यन के कारण यह वृद्धि डॉलर के संदर्भ में घटकर सिर्फ 5.6% रह गई। यही कारण है कि भारतीय बाजार विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में नाकाम हो रहा है और वे अपनी पूंजी अमेरिका और अन्य विकसित बाजारों में लगा रहे हैं।
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क्या बाजार में और गिरावट आएगी?
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर भारत में कॉरपोरेट कमाई की वृद्धि दर धीमी रहती है और विदेशी निवेशकों का पलायन जारी रहता है, तो बाजार में लंबी मंदी की संभावना बनी रह सकती है। हालांकि, घरेलू निवेशकों की भागीदारी और सरकारी नीतियां बाजार को स्थिरता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।