Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 07 Mar, 2025 11:46 PM
सनातन संस्कृति में अनेक ऐसे पर्व हैं जो आनंद और समृद्धि लाते हैं, जिनमें होली प्रमुख है। रंगों का यह उत्सव सभी आयु वर्ग के लोगों को एकजुट करता है।
सनातन संस्कृति में अनेक ऐसे पर्व हैं जो आनंद और समृद्धि लाते हैं, जिनमें होली प्रमुख है। रंगों का यह उत्सव सभी आयु वर्ग के लोगों को एकजुट करता है। किंतु, समाज में बढ़ते व्यावसायीकरण ने होली को इसकी पारंपरिक जड़ों से दूर कर दिया है। आसाराम बापू ने हमेशा वेदिक रीति-रिवाजों को अपनाने, प्राकृतिक जीवनशैली को प्रोत्साहित करने और प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग पर बल दिया है। आसाराम बापू ने वेदिक होली की परंपरा को पुनर्जीवित किया है, जहा प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जिससे श्रद्धा, प्रेम, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का प्रसार होता है।
होली पर आसाराम बापू का संदेश
रंगों के साथ होली खेलने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, यहा तक कि भगवान श्रीकृष्ण के युग से पूर्व भी यह उत्सव मनाया जाता था। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय तथा आस्तिकता की नास्तिकता पर और परमात्मा की प्रकृति पर जीत का प्रतीक है | भक्त प्रह्लाद की कहानी इसका प्रमाण है कि कैसे वे अपने पिता हिरण्यकश्यप और उनकी बहन होलिका के षड्यंत्र से ईश्वर की कृपा से पूर्णतः सुरक्षित बच गए थे।
आसाराम बापू बताते हैं कि सामाजिक समरसता, भाईचारा और सकारात्मक संवाद एक स्वस्थ समाज के स्तंभ हैं—परंतु, अनेकों प्रयासों के बावजूद ये मूल्य दुर्लभ होते जा रहे हैं। भारतीय त्योहार होली इन मूल्यों को सरल और प्रभावी तरीके से प्रोत्साहन देता है।
आसाराम बापू समझाते हैं कि "होली" शब्द का अर्थ "जो हो... ली... सो 'होली'" होता है, अर्थात् यह दिन पुराने गिले-शिकवे मिटाने का है। होली एक ऐसा अवसर है जब लोग आपसी कटुता को भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं और सौहार्द बढ़ाते हैं।
होलिका दहन का आध्यात्मिक महत्व: आसाराम बापू की व्याख्या
होलिका दहन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। यह रात्रि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आसाराम बापू बताते हैं कि यह चार महा रात्रियों में से एक है, और इस अवसर पर रात्रि जागरण, जप और ध्यान करने से हमको अपार लाभ मिलता है। इस रात का सदुपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए करना चाहिए क्योंकि यह मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्, आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति में सहायक होती है।
कृत्रिम (सिंथेटिक) होली रंगों के दुष्प्रभाव
कृत्रिम (सिंथेटिक) रंग के कई स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर दुष्प्रभाव पाए गए हैं:
पर्यावरणीय प्रभाव – जल, मिट्टी और वातावरण को प्रदूषित करते हैं।
हानिकारक रसायन – इनमें सीसा और पारा जैसे विषैले तत्व होते हैं।
आंखों में जलन – प्रयोग से लालिमा और अस्थायी दृष्टि हानि हो सकती है।
सांस संबंधी समस्याएँ – खांसी और सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
कैंसर का खतरा – लंबे समय तक इन रंगों के संपर्क से कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
त्वचा में जलन – खुजली, एलर्जी और अन्य त्वचा रोग उत्पन्न होते हैं।
आसाराम बापू द्वारा पलाश और प्राकृतिक रंगों से वैदिक होली की परंपरा प्राकृतिक रंग जो सदियों से सनातन संस्कृति का हिस्सा रहे हैं, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी होते हैं। आसारामजी बापू विशेष रूप से पलाश के फूलों के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि यह स्वास्थ्य और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है।
पलाश के फूल, जिन्हें ब्रह्मवृक्ष भी कहा जाता है, यह वैदिक युग से ही औषधीय गुणों के लिए प्रयुक्त होते रहे हैं। ये होली के दौरान शरीर के तत्वों को संतुलित करने में सहायक होते हैं। बापूजी के आश्रमों में प्राकृतिक रूप से निर्मित पलाश के रंग उपलब्ध कराए जाते हैं।
स्वास्थ्य लाभ : कफ और पित्त संतुलन में सहायक। पाचन शक्ति को बढ़ाता है। रक्त शुद्धिकरण में सहायक। मानसिक शक्ति को बढ़ाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से, पलाश के रंगों से स्नान करने पर कालसर्प दोष समाप्त होता है। सभी आश्रमों में होली का आयोजन इन्हीं प्राकृतिक रंगों से किया जाता है, जिन्हें गंगा जल, चंदन और अन्य आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से तैयार किया जाता है।
अन्य प्राकृतिक होली रंग: स्रोत और निर्माण
हरा – मेंहदी पाउडर और गेहूं का आटा।
पीला – हल्दी और बेसन।
लाल – लाल चंदन पाउडर।
बैंगनी – उबले हुए चुकंदर से।
काला – आंवला पाउडर को लोहे के पात्र में रखने से।
अन्य रंग – पालक, गेंदा, गुड़हल और पुदीना।
होली के मौसम में स्वास्थ्य टिप्स और सावधानियाँ
होली के बाद कम नमक या बिना नमक वाला भोजन करना लाभकारी होता है।
कच्ची नीम पत्तियाँ, तुलसी के पत्ते, काली मिर्च और भूने हुए चने खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
आधुनिक चुनौतियों का समाधान
आजकल होली के दौरान उत्पीड़न, अनुचित व्यवहार और नशीले पदार्थों का सेवन एक बड़ी समस्या बन चुका है। बापूजी इस पावन पर्व की पवित्रता बनाए रखने हेतु सतर्कता बरतने की सलाह देते हैं। सरकार को भी खतरनाक रंगों और अनुचित गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करने चाहिए।