ऐम्पावर हरः मेंस्ट्रुअल हाइजीन की राह में आने वाली बाधाओं को तोड़ो

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 30 Mar, 2025 09:30 AM

empower her breaking the barriers to menstrual hygiene

सन्दीप तलवार, फिलानथ्रोपिक ऐडवाइज़र एवं सीईओ, आईजीएफ

चंडीगढ़। पीरियड (मासिक धर्म) पावर्टी (गरीबी) एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दा है जो करोड़ों महिलाओं और लड़कियों पर असर करता है। दुनिया में हर महीने, दो अरब से ज्यादा स्त्रियां मासिक धर्म से गुज़रती हैं, फिर भी दुनिया भर में 1.5 अरब से ज्यादा लोगों के पास निजी शौचालय जैसी बुनियादी सेनिटेशन सेवाएं नहीं हैं। मासिक धर्म से जुड़ी हैल्थ सप्लाईज़ का अभाव और इस विषय पर शिक्षा की कमी पीरियड पावर्टी की वजह बनती है।
 
आईजीएफ में, हमारा मानना है कि किसी भी महिला को सिर्फ मासिक धर्म के कारण शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए या पीछे नहीं रहना चाहिए। यह केवल एक जैविक प्रक्रिया से कहीं ज्यादा है - यह जीवन का एक हिस्सा है; लेकिन फिर भी भारत में करोड़ों लड़कियों और महिलाओं के लिए माहवारी संघर्ष, शर्मिंदगी और कठिनाई की कारक बनी हुई है। अपनी ऐम्पावर हर (Empower Her) पहल के ज़रिए हम महज़ सैनिटरी उत्पाद ही नहीं बाँट रहे हैं - बल्कि हम गरिमा प्रदान कर रहे हैं, स्वास्थ्य सुनिश्चित कर रहे हैं और एक ऐसी दुनिया की रचना कर रहे हैं जहाँ मासिक धर्म को किसी रुकावट की तरह नहीं बल्कि एक सहज-सामान्य वास्तविकता के रूप में स्वीकारा जाए।
 
महिलाओं की हर महीने की खामोश लड़ाइयां
 
कल्पना कीजिए, एक छोटी लड़की, जो सीखने के लिए उत्सुक है लेकिन उन दिनों से डरती है जब उसे घर पर रहना पड़ता है क्योंकि उसके स्कूल में मासिक धर्म से जुड़ी उचित सुविधाएं नहीं हैं। कल्पना कीजिए, एक माँ जो अपनी स्वच्छता संबंधी ज़रूरतों का त्याग कर रही है ताकि उसकी बेटी सिर्फ वही सैनिटरी पैड इस्तेमाल कर सके जो वे खरीद सकते हैं। उन लाखों महिलाओं के बारे में सोचिए जो अस्वास्थ्यकर विकल्पों का सहारा लेती हैं - चिथड़े, पत्ते या यहाँ तक कि कीचड़ का भी इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि उनके पास बुनियादी मेंस्ट्रुअल उत्पाद उपलब्ध नहीं हैं।
 
मूत्र और जननांग संक्रमण तथा मासिक धर्म में उठने वाला अनियंत्रित दर्द - ये ऐसी स्वास्थ्य चुनौतियां हैं जिनसे महिलाओं को तब जूझना पड़़ता है जब उनके पास मासिक धर्म के दौरान उपयुक्त उत्पाद और उससे संबंधित स्वास्थ्य संबंधी जानकारी नहीं होती।
 
दुनिया भर के देशों में इस मुद्दे पर महिलाओं के दिल में बदनामी की धारण और शर्मिंदगी का ऐहसास व्याप्त है जिसके चलते वे रोज़मर्रा की पारिवारिक और सामुदायिक गतिविधियों से अलग-थलग हो जाती हैं। इसके नतीजों में अलगाव, अवसाद, दुर्व्यवहार, उपेक्षा, यौन शोषण और यहाँ तक कि आत्महत्या की घटनाएं भी हो सकती हैं।
 
स्कूल और कार्यस्थल पर अनुपस्थिति, वेतन हानि तथा ध्यान केंद्रित करने या सामान्य रूप से कार्य करने में कठिनाई जैसी चुनौतियां तब उत्पन्न होती हैं, जब महिलाओं और लड़कियों को किफायती और सुरक्षित मेंस्ट्रुअल हैल्थ सॉल्यूशन उपलब्ध नहीं हो पाते।
 
उनके लिए, मासिक धर्म का मतलब महज़ इस मासिक चक्र को संभालना नहीं है; बल्कि इसकी वजह से उन्हें मौके गंवाने पड़ते हैं, शर्म महसूस होती है, इसकी वजह से उन्हें यह यकीन दिलाया जाता है कि इस स्वाभाविक, प्राकृतिक प्रक्रिया को छिपाया जाना चाहिए, चुपचाप सहन किया जाना चाहिए।
 
ऐम्पावर हर किस तरह से जिंदगियां बदल रहा है
 
आईजीएफ में हम इस घिसीपिटी रवायत को मानने से इनकार करते हैं। ऐम्पावर हर एक ऐसा आंदोलन है जो चुप्पी तोड़ने, शर्मिंदगी को खत्म करने और वास्तविक एवं टिकाऊ समाधान प्रदान करने के लिए बनाया गया हैः
 
भारत भर में स्कूलों और सार्वजनिक शौचालयों में 1.03 करोड़ सैनिटरी पैड वितरित किए गए, जिससे महिलाओं को वे हाइजीन प्रोडक्ट मिले जिनकी वे हकदार हैं। सैनिटरी पैड, अंडरगारमेंट्स, साबुन और शैक्षिक सामग्री युक्त हाइजीन किट के साथ 66,239 मेंस्ट्रुअल साइकल्स में सहयोग दिया गया। सैकड़ों महिला शौचालयों में वेंडिंग मशीनों के जरिए हर महीने 10 लाख से अधिक पैड वितरित किए जाते हैं, जिससे महिलाओं को मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स तक आसान, संकोच-मुक्त पहुँच मिलती है।
 
किंतु यह केवल आंकड़ों की बात नहीं है - यह कहानियों की बात है। उन लड़कियों की कहानियाँ जिन्हें अब स्कूल छूटने का डर नहीं है। उन महिलाओं की कहानियाँ जो अब आत्मविश्वास के साथ काम पर जा सकती हैं। उन समुदायों की कहानियाँ जो सीख रहे हैं कि मासिक धर्म स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, शर्मनाक नहीं।
 
कपड़े से पैड तक आशा का सफर
 
उत्तर प्रदेश के सीतामढ़ी में 8वीं कक्षा की छात्रा आशा को जब पहली बार मासिक धर्म आया तो वह उलझन में थी और चिंतित थी। उसने अपनी माँ से पूछा, ’’मुझे रक्तस्राव क्यों हो रहा है और यह दर्द क्यों कर रहा है?’’ लेकिन उसे कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। इसके बजाय, उसकी माँ ने रक्तस्राव को रोकने के लिए चुपचाप उसे कपड़े का एक टुकड़ा थमा दिया। अन्य विकल्पों से अनजान आशा ने बिना किसी सवाल के उसका इस्तेमाल किया।
 
बाद में, अपनी सहेलियों से बातचीत में उसे सैनिटरी पैड के बारे में पता चला। जब उसने अपनी माँ से सैनिटरी पैड माँगा, तो बिना किसी स्पष्ट कारण के उसे मना कर दिया गया।
 
स्कूल में आईजीएफ-इंडिया टीम द्वारा आयोजित मेंस्ट्रुअल हाइजीन सत्र के दौरान आशा को वह ज्ञान और आत्मविश्वास मिला कि वह अपनी माँ को कपड़े के बजाय सैनिटरी पैड के उपयोग के महत्व के बारे में शिक्षित कर पाई। आशा ने बताया, ’’मैंने उन्हें बताया कि पैड सुरक्षित और अधिक स्वच्छ हैं।’’ इस बातचीत ने उनकी माँ के दृष्टिकोण को बदल दिया, और आखिरकार वह आशा और खुद के लिए आईजीएफ द्वारा मुहैया कराए गए पैड का उपयोग करने के लिए सहमत हो गईं।
 
जागरुकता और सशक्तिकरण के माध्यम से कपड़े से पैड तक की आशा की यात्रा वर्जनाओं को तोड़ने और सुरक्षित हाइजीन प्रैक्टिस को सुनिश्चित करने में मासिक धर्म शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालती है।
 
हमसे जुड़ें - इस आंदोलन का हिस्सा बनें
 
मेंस्ट्रुअल हैल्थ कभी भी शिक्षा, रोजगार या आत्म-सम्मान के लिए बाधा नहीं बननी चाहिए। आईजीएफ में, हम केवल समाधान ही नहीं दे रहे हैं - हम एक ऐसा भविष्य बना रहे हैं जहाँ कोई भी महिला अपने मासिक धर्म की वजह से पीछे न रहे। लेकिन हम अकेले यह काम नहीं कर सकते।
 
हम आपको आमंत्रित करते हैं - सभी लोगों को, सभी कारोबारों को और सभी नीति निर्माताओं को - हमारे साथ आईए। ऐम्पावर हर का समर्थन करके, आप एक ऐसे आंदोलन का हिस्सा बन जाएंगे जो सुनिश्चित करेगा कि हर महिला जरूरत के वक्त पैड से वंचित न रहे, उसकी जिंदगी रुके नहीं, वह प्रगति की राह पर आगे बढ़ती रहे।

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