Edited By Deepender Thakur,Updated: 19 Apr, 2024 06:31 PM
बच्चे का सुरक्षित जन्म कराना एक जटिल प्रक्रिया है,
बच्चे का सुरक्षित जन्म कराना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसकी शुरुआत गर्भधारण से पहले हो जाती है, और यह पोस्ट पार्टम की अवधि तक चलती रहती है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान हर साल हजारों महिलाएं जटिलताओं से गुजरती हैं, इसलिए मैटरनल हेल्थ को प्राथमिकता दिया जाना बहुत आवश्यक है। माँओं का सफर सुरक्षित बनाने की शुरुआत प्रि-प्रेगनेंसी केयर से होती है। इस समय सही पोषण, जीवनशैली में सुधार और मेडिकल समस्याओं को नियंत्रित रखना महत्वपूर्ण होता है। बच्चे को जन्म देने की योजना पहले से बनाकर उसी के अनुरूप काम करने से महिलाओं को गर्भधारण से पहले अपने स्वास्थ्य के बारे में पूरे विश्वास के साथ निर्णय लेने में मदद मिलती है, और एक सुरक्षित गर्भ की परिस्थितियाँ बनती हैं।
गर्भावस्था की पुष्टि हो जाने के बाद तुरंत और नियमित रूप से प्रि-नैटल केयर आवश्यक हो जाती है। डॉक्टर गर्भवती माँ को समय-समय पर जाँच के लिए बुलाते हैं और माँ एवं शिशु की विस्तृत जाँच कर किसी भी जटिलता को रोकने के लिए निवारक उपाय करते हैं। प्रि-नैटल केयर में कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं, जिनमें शारीरिक परीक्षण, रक्त परीक्षण और इमेजिंग शामिल है, जिससे बढ़ते हुए गर्भ की क़रीब से निगरानी करने और माँ एवं शिशु का स्वास्थ्य सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।
पूरी जागरूकता और सहयोग से महिलाओं को आत्मविश्वास के साथ गर्भावस्था की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है, और वो अपनी सेहत और स्वास्थ्य के बारे में विश्वास के साथ निर्णय लेने में समर्थ बनती हैं। यद्यपि शिशु को जन्म देना केवल मातृत्व के सफर की शुरुआत होता है। गर्भावस्था की चौथी तिमाही, यानि पोस्ट-पार्टम की अवधि माँओं के स्वास्थ्य लाभ और माता-पिता के रूप में खुद को समायोजित करने का समय होता है। शरीर को गर्भावस्था और जन्म देने की प्रक्रिया के बाद फिर से ठीक होने में समय लगता है, और डॉक्टर इस प्रक्रिया की निगरानी करके पूरी तरह से स्वस्थ होने में मदद करते हैं।
डॉ. पूनम रुडिंग्वा, कंसल्टैंट - ऑब्सटेट्रीशियन एवं गायनेकोलॉजिस्ट, मदरहुड चैतन्य हॉस्पिटल्स, सेक्टर 44, चंडीगढ़ ने कहा, ‘‘इस दौरान महिलाएं अनेक भावनात्मक अनुभवों से गुजरती हैं। उन्हें कभी बहुत खुशी होती है, तो कभी बहुत उत्साह, या चिंता या फिर दुख। लगभग 15 प्रतिशत महिलाओं को पोस्टपार्टम अवसाद होता है, जिससे इस नाजुक अवधि में मानसिक स्वास्थ्य का सहयोग भी बहुत आवश्यक होता है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘भारत में पोस्टपार्टम अवसाद (पीपीडी) मानसिक स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है, जिससे पूरी दुनिया की अनेक महिलाएं पीड़ित हैं, लेकिन भारत में इस पर ध्यान दिए जाने की तत्काल आवश्यकता है। बढ़ती जागरुकता के बाद भी यहाँ पर पीपीडी को कलंकित माना जाता है और इसलिए इसे पर्दे के पीछे रखा जाता है। डॉक्टर महिलाओं को स्तनपान का मार्गदर्शन, पोस्टपार्टम बेचैनी के प्रबंधन और पोस्टपार्टम अवसाद की स्क्रीनिंग आदि अनेक सेवाएं प्रदान करते हैं। वो सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं को नए मातृत्व की चुनौतियों के लिए विस्तृत सहयोग मिले और उनका स्वास्थ्य बेहतर बने।’’
पोस्टपार्टम केयर में अनेक सेवाएं आती हैं, जो माँ और शिशु को पूरी तरह से स्वस्थ रखने पर केंद्रित हैं। गर्भ और चीरे के फिर से ठीक होने से लेकर स्तनपान के मार्गदर्शन और पोस्टपार्टम परेशानियों को नियंत्रित करने तक डॉक्टर माँओं को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही पोस्टपार्टम अवसाद की स्क्रीनिंग और महिलाओं को भावनात्मक चुनौतियों का सामना करने में समर्थ बनाने तक वो अनेक सहयोग देते हैं।
सुरक्षित रूप से जन्म कराने और पोस्टपार्टम केयर के लिए एक समग्र दृष्टिकोण जरूरी होता है, जो मातृत्व के पूरे सफर में महिलाओं की शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करे। प्रि-प्रिग्नेंसी और प्रि-नैटल केयर को प्राथमिकता देकर और पोस्टपार्टम अवधि में पूरा सहयोग देकर डॉक्टर महिलाओं को सुरक्षित रूप से जन्म देने में समर्थ बना सकते हैं, और माँ एवं शिशु के स्वस्थ भविष्य की परिस्थितियाँ तैयार कर सकते हैं।