नहीं रुक रही कत्थे के पेड़ों की तस्करी, रातों-रात कटाई कर पेड़ लेकर हो जाते रफू-चक्कर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jun, 2017 07:42 AM

khair tree

चंडीगढ़ के जंगलों से कत्थे (खैर) के पेड़ों की धड़ल्ले से तस्करी हो रही है।

चंडीगढ़(अश्वनी) : चंडीगढ़ के जंगलों से कत्थे (खैर) के पेड़ों की धड़ल्ले से तस्करी हो रही है। नियमानुसार जिस सुखना वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में से सूखे पेड़ तक को बाहर नहीं निकाला जा सकता, उस जगह से लहलहाते खैर के पेड़ों को काटकर खुले बाजार तक पहुंचाया जा रहा है। खासतौर पर पंजाब व हरियाणा के साथ सटी सैंक्चुरी की सीमा में कटाई जोरों पर है। घरेड़ी, नत्थेवाला, नेपली सहित सकेतड़ी, कैंबवाला, खुड्डा अलीशेर व नयागांव के साथ सटी सीमा पर आसानी से कटे हुए पेड़ों को देखा जा सकता है। 

 

सीमा के साथ सटे गांव के बाशिंदों की मानें तो पिछले कुछ महीनों के दौरान सैंक्चुरी में शाम ढलते ही असामाजिक तत्वों की गतिविधियों में खासा इजाफा हुआ है। अंधेरा होते ही अवैध काम करने वाले जंगल में दाखिल हो जाते हैं और रातों-रात पेड़ की कटाई कर यहां से पेड़ लेकर रफू चक्कर हो जाते हैं। इस संबंध में कई बार वन विभाग के अधिकारियों को सूचित भी किया गया है लेकिन वह इसकी सुध नहीं ले रहे हैं। 

 

नियमानुसार सैंक्चुरी में बिना मंजूरी के दाखिला होना जुर्म है। पर्यावरण प्रेमी या सैंक्चुरी में घूमने के लिए जाने वालों को पहले वन एवं वन्यजीव विभाग के कार्यालय में आवेदन करना पड़ता है। इस आवेदन की अधिकारियों के स्तर पर जांच-पड़ताल होती है, जिसके बाद अनुमति पत्र जारी किया जाता है। इस अनुमति पत्र को देखे बिना सैंक्चुरी के गेट पर तैनात कर्मचारी सैंक्चुरी के भीतर दाखिल नहीं होने देते हैं।

 

टूटी हुई बाड़ तस्करी का जरिया :
वैसे तो चंडीगढ़ वन एवं वन्यजीव विभाग ने अवैध तौर पर प्रवेश को रोकने के लिए सैंक्चुरी के इर्द-गिर्द बाड़बंदी की हुई है लेकिन अवैध गतिविधियां करने वालों ने इस बाड़ को कई जगह से तोड़ दिया है। टूटी हुई यही बाड़ तस्करी का मुख्य जरिया है। पंजाब के गांवों के साथ सटी सैंक्चुरी की सीमा पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा जगह बाड़ पूरी तरह टूटी हुई है। कई जगह तो बाड़ इतनी ज्यादा टूटी है कि पूरा वाहन तक भीतर ले जाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही हाल हरियाणा की तरफ गांवों के साथ सटी सीमा का है। सकेतड़ी गांव में कई जगह आसानी से सैंक्चुरी के भीतर दाखिल हुआ जा सकता है।

 

हरियाणा से जुड़े हो सकते हैं तस्करों के तार :
चंडीगढ़ के जंगल से होने वाली खैर के पेड़ों की तस्करी के तार हरियाणा से जुड़े हो सकते हैं। अप्रैल 2017 में हरियाणा के मुख्यमंत्री के फ्लाइंग स्क्वॉयड ने खैर के पेड़ों की तस्करी के बड़े रैकेट का भांडाफोड़ भी किया था। पंचकूला जिले में 400 से ज्यादा खैर के पेड़ की रिकवरी हुई थी। इस मामले में हरियाणा वन विभाग के दो वन्य कर्मचारियों की मिलीभगत भी सामने आई थी। बाकायदा हरियाणा वन एवं वन्यजीव विभाग प्रमुख पी.पी. भौजवैद्य ने इस मामले में हरियाणा डायरैक्टर जनरल ऑफ पुलिस को पत्र भेजकर पूरे मामले की गहनता से जांच कर दोषियों के खिलाफ स त कार्रवाई का अनुरोध किया था। 

 

जंगल में वन्यप्राणियों पर भी खतरा :
अवैध गतिविधियों की वजह से जंगल में वन्यप्राणियों की जान पर भी खतरा मंडरा रहा है। गांव वासियों की मानें तो जंगल में सांभर, जंगली सुअर, बारासिंघा, मोर, जंगली मुर्गों की काफी तदाद है। ऐसे में अगर तस्करी करने वाले रात में पेड़ काटकर ठिकाने लगा सकते हैं तो उनके लिए वन्यजीवों का शिकार करना कोई बड़ी बात नहीं है। बाड़ के साथ सटे घरों के मालिकों की मानें तो उन्हें रात में जंगल से कई बार हलचल सुनाई देती है। इस संबंध में भी कई बार वन विभाग के अधिकारियों को सूचित किया गया है लेकिन वह कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

 

5 हजार प्रति क्विंटल बिकता है खैर :
खैर की बाजार में खासी डिमांड है। पेड़ को छीलकर इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार कर दिया जाता है, जिनकी बाजार में करीब 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से कीमत मिल जाती है। इन्हीं टुकड़ों को उबालकर उनका रस जमा लिया जाता है, जो कत्थे के तौर पर बाजार में बिकता है। बाजार में कत्थे की डिमांड के हिसाब से यह भाव चढ़ते-उतरते भी रहते हैं। खैर की लकड़ी काफी अच्छी मानी जाती है, जिनसे खेती की औजार व घर के साज-सामान भी बनाए जाते हैं।

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