Edited By ashwani,Updated: 05 Feb, 2025 11:01 PM
पिता के निधन से टूटा, मगर क्रम नहीं टूटने दिया, रोते हुए रातभर चलाकर 100 किलोमीटर पूरे किए
चंडीगढ़,
उम्र 55 साल, राेज 100 किलोमीटर साइकिलिंग और लगातार 1000 दिन से ज्यादा तक और इसे निरंतर जारी रखना आसान नहीं था मगर यह जोश, जुनून और समर्पण की बदौलत ही यह संभव हो पाया है। वैसे तो गर्मी, सर्दी, बारिश, तूफान और ओले उनकी राह को नहीं रोक सके मगर जिंदगी में ऐसा भी मोड़ आया कि ऐसा लगा अब राह मुश्किल हो सकती है और इतने लंबे समय से जारी साइकिलिंग का क्रम टूट जाएगा। ट्राईसिटी के सैंचुरी राइडर और जीरकपुर निवासी रूपेश कुमार बाली बताते हैं कि गत माह पिता स्वर्ग सिधार गए तो मैं बुरी तरह टूट गया। साईकिलिंग की वही मेरे मोटिवेशन थे। दिनभर साइकिलिंग के बाद जब रात को घर लौटता था तो उनके आज कहां गए थे, पूछने मात्र से ही थकान मिट जाती थी। लगातार अढ़ाई साल से भी ज्यादा समय से साईकिलिंग के इस सिलसिले को मैं लगातार जारी रखना चाहता था मगर पिता की मौत के बाद हिम्मत नहीं हो रही थी। साइकिलिंग कम्युनिटी के मेरे दोस्तों ने मुझे ढांढस बंधाया तो मैंने फिर साइकिल उठाई। मुश्किल दिनचर्या होने के कारण अपना दिन का लक्ष्य मैं रात को पूरा करता था।
रूपेश बाली बताते हैं कि उनका मकसद सोशल मीडिया की दुनिया में खोए युवाओं को अपनी फिटनैस के लिए कुछ वक्त निकालने के साथ-साथ साइकिल को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित करना था। कहते हैं साइकिलिंग मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। शौकिया साईकिलिंग शुरू की थी, कब ये जुनून में बदल गई मुझे भी पता न लगा। 10 मई 2022 से सैंचुरी लगानी शुरू की थी यानी रोज 100 किलोमीटर साइकिलिंग। अधिकतर दैनिक कार्यों के लिए साइकिल का ही प्रयोग करता हूं। अब तक 1004 राइड और 131107 किलोमीटर हो चुके हैं
12 साल तक 3 कैंसरों से जूझे
रूपेश बाली बताते हैं कि उनके पिता ही उनकी मोटिवेशन हैं। उन्होंने 41 साल से ज्यादा साइकिल चलाई। 12 साल 3 कैंसर और कई तरह की दिक्कतों से जूझे। बीमारियों के अलावा उनकी जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आए, जिनमें वह एक फाइटर की तरह हमेशा तैयार खड़े रहे। 15 साल की बेटी को खो दिया। पत्नी की उम्र 53 साल थी, जब वह चल बसीं। कई साल तक सेवा भारती संस्था के साथ जुडक़र सेवा की।
वो 33 किलोमीटर जिंदगी के सबसे मुश्किल
जिस दिन पिता का निधन हुआ उस दिन रूपेश बाली की 986वीं राइड थी और वह साइकिलिंग करते हुए मोरिंडा जा रहे थे। बेटे अर्जुन का कॉल आया कि दादा जी नहीं रहे तो उसके बाद के बचे 33 किलोमीटर मेरी जिंदगी के सबसे मुश्किल किलोमीटर थे। रोते हुए 100 किलोमीटर पूरे कर घर पहुंचा। रात को सोने से पहले ही उनसे बात की थी।