पैंतीस प्रतिशत  का प्रस्तावित जीएसटी स्लैब होगा विकास में बाधक

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 20 Dec, 2024 12:13 PM

proposed gst slab of thirty five percent will hinder development

सरकारी आंकड़ों के अनुसार अक्तूबर में कुल जीएसटी कलेक्शन 9% बढ़कर 1.87 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जो अब तक का दूसरा सबसे बड़ा जीएसटी कलेक्शन है।

चंडीगढ़। सरकार ने 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लाकर ऐतिहासिक टैक्स सुधार की शुरुआत की। GST का उद्देश्य टैक्स संरचना को सरल बनाना और टैक्स का बोझ कम करना था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अक्तूबर में कुल जीएसटी कलेक्शन 9% बढ़कर 1.87 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जो अब तक का दूसरा सबसे बड़ा जीएसटी कलेक्शन है। मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार तो जीएसटी रेट्स रैशनलाईज़ेशन पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) ने हाल ही में 35% के एक नए जीएसटी स्लैब का सुझाव दिया है। पिंग़ल ख़ान ,लॉ फर्म, एश्लर लॉ में पार्टनर ने जानकारी देते हुए कहा कि  यह नया स्लैब मौजूदा 4 स्लैब्स के अलावा होगा, जो डिमेरिट गुड्स पर लगाया जाएगा, जिनमें वातित पेय और तम्बाकू आते हैं।जीओएम के ये सुझाव भ्रामक हैं क्योंकि जीएसटी का उद्देश्य टैक्स का रैशनलाईज़ेशन होता है।

देशों में यह रुझान देखा गया है कि सिन प्रोडक्ट्स यानी कि  दोषपूर्ण उत्पादों (वो उत्पाद, जिनकी  लोगों को लत लग जाती है और जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं ) पर टैक्स दो कारणों से लगाया जाता है। पहला कारण है, रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाना क्योंकि इन उत्पादों की लागत से इनकी मांग प्रभावित नहीं होती यानी कीमतें बढ़ने से इनकी खपत में अंतर नहीं आता। दूसरा कारण है, टैक्स लगाकर उन्हें महंगा बनाना ताकि ग्राहक उनकी बजाय सुरक्षित विकल्पों को अपनाने लगें। लेकिन यहाँ पर एक बात गौर करने लायक है कि जीएसटी वाले ज़्यादातर देशों में स्लैब्स और टैक्स दरें काफ़ी कम होती हैं।

विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, 2023 में भारत में कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक (सीएसडीएस) पर लगाया जाने वाला 40% का टैक्स सबसे अधिक टैक्स दरों में से एक था। इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों में ज़्यादा शुगर वाले उत्पादों पर ज़्यादा टैक्स लगता है, तथा कम शुगर वाले उत्पादों पर कम टैक्स लगता है। ग्राहक अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कम शुगर वाले उत्पादों की ओर जा रहे हैं, जिससे कम शुगर वाले पेय का नया बाज़ार विकसित हो रहा है। लेकिन शुगर वाले हर पेय पर एक सा टैक्स लगाने से उत्पादक कम शुगर वाले उत्पाद बनाने के लिए इन्वेस्टमेंट और इनोवेशन नहीं करेंगे। इसलिए टैक्स संरचना में परिवर्तन से ये उत्पादक कम शुगर वाले उत्पाद बनाने की ओर प्रेरित होंगे। इससे नई नौकरियां उत्पन्न होंगी और सरकार को ज़्यादा राजस्व मिलेगा। इससे इनोवेशन भी बढ़ेगा और लोगों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित होगा।

टोबैको इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित डब्लूएचओ डेटा के मुताबिक भारत में सिगरेट पर लगने वाला टैक्स प्रति व्यक्ति जीडीपी प्रतिशत में दुनिया की सबसे अधिक टैक्स दरों में एक है। भारत के तम्बाकू बाज़ार में सिगरेट उद्योग का हिस्सा 1982 में 21% था जो 2023-24 गिरकर लगभग 10% तक पहुँच गया। लेकिन इस अवधि में देश में तम्बाकू का सेवन 49% बढ़ गया। इससे यह साफ़ है कि तम्बाकू उद्योग में टैक्स का पूरा भार केवल सिगरेट पर रहा है। इसका कारण है कि सिगरेट उद्योग संगठित है और एक औपचारिक सिस्टम में काम करता है। अगर ग्राहकों को विकल्प नहीं मिलेंगे तो वो चीन में बनने वाले आयातित सिगरेट का सेवन करना शुरू कर देंगे या नकली सिगरेट का सेवन करने लगेंगे, जो भारत में तेज़ी से फैल रहे हैं।

टीआईआई हैंडबुक के अनुसार सरकार को गैरकानूनी और नकली सिगरेट्स से हर साल 21,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होता है। इन सिगरेट्स पर चेतावनी नहीं छपी होती है और टैक्स चोरी के कारण ये सस्ते होते हैं। ये सिगरेट रैगुलेटेड नहीं होते। ये उपभोक्ताओं  के स्वास्थ्य को ज़्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। लाखों नागरिकों को सुरक्षित विकल्पों के बिना छोड़कर और उन्हें सरकार द्वारा फंड की मदद से इलाज के तरीके उपलब्ध ना करवाकर सरकार संविधान की धारा 21 के अंतर्गत नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से उन्हें वंचित करेगी। इसलिए इतना ज़्यादा जीएसटी स्लैब लगाकर सरकार धूम्रपान में कमी लाने के अपने उद्देश्य से भटक जाएगी।

जहाँ कम टैक्स दरें नियमों की अनुपालना बढ़ाती हैं, वहीं ज़्यादा टैक्स दरें टैक्स चोरी को बढ़ाती हैं। इसलिए 35% की टैक्स स्लैब से टैक्स संरचना और ज़्यादा कठिन बनेगी। आज भारत में विकास की गति को तेज़ करने के लिए जीएसटी काउंसिल को एक उदार टैक्स प्रणाली लानी चाहिए, जिससे टैक्स कलेक्शन और अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी हो सके।

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