तम्बाकू की अर्थव्यवस्थाः घाटे से लाभ तक, विकसित भारत 2047 में दे सकती है योगदान

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 25 Oct, 2024 10:59 AM

tobacco economy from loss to profit can contribute to developed india 2047

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक देश है, जहाँ प्रतिवर्ष लगभग 80 करोड़ किलोग्राम तम्बाकू का उत्पादन होता है।

चंडीगढ़। विश्व की सबसे तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति मजबूत होती जा रही है। ब्लूमबर्ग इकॉनॉमिक्स एनालिसिस के अनुमान से भारत 2028 तक विश्व की जीडीपी वृद्धि में एक अहम योगदान देने लगेगा। विकसित भारत के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत में अनेक गंभीर चुनौतियों को संबोधित किए जाने की आवश्यकता है, जिनमें से एक है तम्बाकू क्षेत्र को नियमित करना। यदि इस क्षेत्र को दूरदर्शी और व्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ प्रबंधित किया जाए, तो इसमें आर्थिक घाटे को आर्थिक लाभ में परिवर्तित करने की क्षमता है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक देश है, जहाँ प्रतिवर्ष लगभग 80 करोड़ किलोग्राम तम्बाकू का उत्पादन होता है। हमारा देश तम्बाकू का अग्रणी निर्यातक है। साल 2019 से 2021 के बीच तम्बाकू उत्पादों से 53,750 करोड़ रुपये का औसत वार्षिक राजस्व प्राप्त हुआ था। तम्बाकू उद्योग में खेती, प्रोसेसिंग, मैनुफैक्चरिंग और निर्यात गतिविधियों में लगभग 4.57 करोड़ लोग काम करते हैं, जिससे प्रतिवर्ष 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। तम्बाकू की खेती से 60 लाख किसानों और 2 करोड़ खेत मजदूरों को आजीविका, आय और सुरक्षा प्राप्त होती है, जिससे देश के टैक्स राजस्व को एक बड़ा योगदान मिलता है।

तम्बाकू सेक्टर के आर्थिक लाभों के बावजूद इस क्षेत्र में बड़ी चुनौतियाँ हैं, जिनमें से एक स्वास्थ्य सेवा के खर्च पर इसके कारण पड़ने वाला भार है। ‘ह्यूमन सेंट्रिक एप्रोच टू टोबैको कंट्रोल’ के अनुसार देश में 25 करोड़ लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं और भारत में निजी एवं जन स्वास्थ्य सेवा व्यय का 5.3 प्रतिशत तम्बाकू से संबंधित बीमारियों के इलाज में खर्च होता है। इसके अलावा, बढ़ते टैक्स से तम्बाकू का गैरकानूनी व्यापार बढ़ा है, जिससे सरकारी खजाने को महत्वपूर्ण राजस्व का नुकसान हो रहा है। यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गैरकानूनी सिगरेट का व्यापार दस सालों में 44 प्रतिशत बढ़कर 2011 में 19.5 बिलियन सिगरेट से 2020 में 28.1 बिलियन सिगरेट तक पहुँच गया है। ‘ह्यूमन सेंट्रिक एप्रोच टू टोबैको कंट्रोल’ रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भारत सरकार को गैरकानूनी तंबाकू उद्योग से 13,331 करोड़ का घाटा हुआ था। अगर यह राजस्व सरकार को मिलता, तो इससे अनेकों कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा सकती थीं।

हाल ही में सरकार द्वारा विदेशी सीधा निवेश (एफडीआई) प्रतिबंधों को तम्बाकू सेक्टर में बढ़ाए जाने के प्रस्ताव से ये आर्थिक चुनौतियाँ और ज्यादा बड़ी हो सकती हैं। इन प्रतिबंधों से किसानों से निर्यात के अवसर छिन जाएंगे, सरकार को नुकसान-कम करने वाली टेक्नोलॉजी नहीं मिल पाएगी, और अन्य देशों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाने की भारत की क्षमता कम हो जाएगी। यूनाईटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीडी) के अनुसार 2022 की तुलना में 2023 में एफडीआई में 43 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई, जिससे एक ज्यादा विकसित नीति की जरूरत को बल मिलता है। प्रतिबंधों से भारत में तम्बाकू की खेती करने वाले समुदाय आधुनिक टेक्नोलॉजी और उचित मूल्य पाने से वंचित हो जाएंगे, और चाईना $ 1 रणनीति का लाभ उठाने में भारत पिछड़ जाएगा क्योंकि वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देश एफडीआई निवेश के ज्यादा आकर्षक प्रस्ताव पेश कर रहे हैं।
तम्बाकू सेवन की चुनौतियों के कारण विश्व में इसके उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए बड़ी पहल शुरू की गई हैं। भारत में जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं और कठोर नियम लागू किए गए हैं। राष्ट्रव्यापी नियमों के साथ राज्यों ने भी मिलकर एक विस्तृत तम्बाकू नियंत्रण फ्रेमवर्क तैयार किया है। हालाँकि इन उपायों के कमजोर प्रभाव ने साफ कर दिया है कि हमें भारत में तम्बाकू नियंत्रण की नीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

परिणामों को प्रभावशाली बनाने के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण बहुत आवश्यक है। ‘‘ह्यूमन सेंट्रिक एप्रोच टू टोबैको कंट्रोल’’ रिपोर्ट के अनुसार, डब्लूएचओ एफसीटीसी परामर्श लागू करके धूम्रपान से होने वाली मौतों को 2030 तक 1 करोड़ और अगले वर्षों में 65 लाख तक लाया जा सकता है। लेकिन अगर बेहतर विकल्पों, जैसे निकोटीन गम, पैच, लॉन्जेस एवं अन्य टेक्नोलॉजी जैसे हीट-नॉट-बर्न की मदद ली जाए, तो धूम्रपान से होने वाली मौतों में और ज्यादा कमी लाते हुए इससे भी आधा किया जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले खर्च में प्रत्यक्ष कमी आ सकेगी। इसके अलावा, एफडीआई को प्रोत्साहित करने से विदेशी सिगरेट का गैरकानूनी आयात कम होगा, व्यापार आसान बनेगा तथा किसानों को निर्यात के और ज्यादा अवसर प्राप्त हो सकेंगे, जिससे सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष यही है कि तम्बाकू की चुनौती से प्रभावशाली तरीके से निपटने और अर्थव्यवस्था पर इसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए एक विस्तृत दृष्टिकोण बहुत आवश्यक है। एक संतुलित और अग्रगामी रखकर बनाई गई नीति के साथ भारत के तम्बाकू सेक्टर में परिवर्तन लाया जा सकता है और आर्थिक घाटे को आर्थिक लाभ में तब्दील कर सस्टेनेबल वृद्धि एवं समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।

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