Rules For a Happy Life: ये हैं खुश रहने के आसान नियम, सिखाएंगे जीवन जीने की कला

Edited By Prachi Sharma,Updated: 13 Jul, 2024 10:47 AM

rules for a happy life

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन में क्या कर रहे हैं, चाहे वह कारोबार हो, सत्ता, शिक्षा या सेवा, आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपके

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पहचानें कि खुशी आपकी मूल प्रकृति है
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन में क्या कर रहे हैं, चाहे वह कारोबार हो, सत्ता, शिक्षा या सेवा, आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपके भीतर कहीं गहराई में एक भावना है कि इससे आपको खुशी मिलेगी। इस धरती पर हम जो कुछ भी करते हैं, वह खुश रहने की इच्छा से करते हैं, क्योंकि यह हमारी मूल प्रकृति है। जब आप बच्चे थे, तो आप यूं ही खुश थे। वही आपकी प्रकृति है। खुशी का स्रोत आपके भीतर है, आप उसे हमेशा के लिए एक जीवंत अनुभव बना सकते हैं।

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चीजों का महत्व पहचानें
आज सुबह, क्या आपने देखा कि सूर्य बहुत अद्भुत तरीके से उगा? फूल खिले, कोई सितारा नीचे नहीं गिरा, तारामंडल बहुत अच्छी तरह काम कर रहे हैं। सब कुछ व्यवस्थित है। आज समूचा ब्रह्मांड बहुत बढय़िा तरीके से काम कर रहा है मगर आपके दिमाग में आया किसी विचार का एक कीड़ा आपको यह मानने पर मजबूर कर देता है कि आज बुरा दिन है।

कष्ट मुख्य रूप से इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर इंसान इस जीवन के प्रति सही नजरिया खो बैठे हैं। उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्व की प्रक्रिया से कहीं बड़ी हो गई है या सीधे-सीधे कहें तो आपने अपनी रचना को स्रष्टा की सृष्टि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। यह सारी पीड़ा का बुनियादी स्रोत है। हम इस बात की पूरी समझ खो बैठे हैं कि यहां जीवित रहने के क्या मायने हैं। आपके दिमाग में आया कोई विचार या आपके मन की कोई भावना फिलहाल आपके अनुभव की प्रकृति को तय करती है। और यह भी हो सकता है कि आपके विचार और भावना का आपके जीवन की सीमित हकीकत से कोई लेना-देना न हो। पूरी सृष्टि बहुत बढय़िा तरीके से घटित हो रही है मगर सिर्फ एक विचार या भावना सब कुछ नष्ट कर सकती है।

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मन या दिमाग को उसके असली रूप में देखें
जिसे आप ‘मेरा मन’ कहते हैं, वह असल में आपका नहीं है। आपका अपना कोई मन नहीं है। कृपया इस पर ध्यान दें।जिसे आप ‘मेरा मन’ कहते हैं, वह बस समाज का कूड़ेदान है। कोई भी और हर कोई जो आपके पास से गुजरता है, वह आपके दिमाग में कुछ न कुछ डाल जाता है। आप वाकई यह चुन नहीं सकते कि किससे आपको चीजें ग्रहण करनी हैं और किससे नहीं करनी। अगर आप कहते हैं, ‘मुझे यह व्यक्ति पसंद नहीं है’, तो आप किसी भी और से ज्यादा उस इंसान से ग्रहण करेंगे। आपके पास कोई चारा नहीं है। अगर आपको इस बात की जानकारी हो कि उसे ठीक करके कैसे इस्तेमाल करना है, तो यह कूड़ेदान उपयोगी हो सकता है। असर और जानकारी का यह ढेर, जो आपने जमा किया है, वह सिर्फ दुनिया में जीवित रहने के लिए उपयोगी है। आप कौन हैं, इससे उसका कोई संबंध नहीं है।

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मन से अपने बुनियादी अस्तित्व की ओर बढ़ें
जब हम किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात करते हैं, तो हम मन से अपने बुनियादी अस्तित्व की ओर जाने की बात करते हैं। जीवन का संबंध इस सृष्टि से है जो यहां मौजूद है - उसे पूरी तरह जानना और उसके असली रूप में उसका अनुभव करना, अपने मनमुताबिक उसे विकृत न करना - ही जीवन है। अगर आप अस्तित्व की हकीकत की ओर बढऩा चाहते हैं, तो सरल शब्दों में आपको बस इस बात का ध्यान रखना होगा कि जो आप सोचते हैं, वह महत्वपूर्ण नहीं है, जो आप महसूस करते हैं, वह महत्वपूर्ण नहीं है। आप जो सोचते हैं, उसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। उसका जीवन के लिए कोई बड़ा महत्व नहीं है। मन बस उन फालतू चीजों में उलझा रहता है, जो आपने कहीं और से इक_ा किया है। अगर आपको वह महत्वपूर्ण लगता है, तो आप कभी उसके परे नहीं देख पाएंगे।

आपका ध्यान स्वाभाविक रूप से उस दिशा में जाता है, जिसे आप महत्वपूर्ण मानते हैं। अगर आपके विचार और आपकी भावनाएं आपके लिए अहम हैं, तो स्वाभाविक रूप से आपका सारा ध्यान वहीं होगा। मगर यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक हकीकत है। इसका अस्तित्व में मौजूद चीजों से कोई लेना-देना नहीं है।

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