Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Jun, 2024 11:24 AM
मृत्यु का शासन सब पर है, चाहे दो पांव वाले प्राणी हों या चार पावं वाले, ऐसा शास्त्रों का कथन है। मृत्यु की सत्ता को ललकारा नहीं जा सकता। मृत्यु सर्वाधिक शक्तिशाली है। मृत्यु जीवन के लिए अनिवार्य है
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Aatma Aur Punarjanam: मृत्यु का शासन सब पर है, चाहे दो पांव वाले प्राणी हों या चार पावं वाले, ऐसा शास्त्रों का कथन है। मृत्यु की सत्ता को ललकारा नहीं जा सकता। मृत्यु सर्वाधिक शक्तिशाली है। मृत्यु जीवन के लिए अनिवार्य है, इससे कोई भी मुक्त नहीं है।
मृत्यु हो जाने के बाद जो शरीर (मिट्टी, शव) रह जाता है, उसका विधिपूर्वक दाह संस्कार कर दिया जाता है।
संस्कार के बाद जो अस्थियां शेष रह जाती हैं, हम उन्हें ‘फूल’ कहते हैं। यह शब्द मृतात्माओं के प्रति श्रद्धा सूचक शब्द है। वास्तव में मृत्यु एक ऐसा प्रसंग है जिसके बाद हमारा पुनर्जन्म निश्चित होता है। मरने वाले का जन्म निश्चित है।
इस बात की पुष्टि गीता करती है- ‘‘जातस्य हि ध्रुवों मृत्यु: ध्रुवं जन्म मृतस्य च।’’
स्मरण रखें मृत प्राणी की आत्मा अगर अतृप्त हो तो कोई भी अन्य योनि ग्रहण करती है।
अगर शुभ कर्म है तो पितृ रूप में प्रकट होती है और अगर उभयकर्मा है तो पुनः मानव योनि प्राप्त करती है।
मृत्यु के उपरांत प्रत्येक आत्मा अपने-अपने क्रमानुसार कोई न कोई योनि अवश्य प्राप्त करती है।
ऋग्वेद कहता है, ‘‘द्वे सृती अश्रुणवि पितृणामाहं देवानामृत मर्तानां ताभ्यामिद विश्वभेजत् समेति मतंतरा पितर मातरं च।’’
अर्थात मनुष्यों के दो स्वर्गारोहण मार्ग सुने हैं- एक पितरों का, दूसरा देवों का। मृत्यु के बाद पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पांच प्राण, मन और बुद्धि इन 17 अंगों को मिलाकर एक सूक्ष्म शरीर बनता है। यही आत्मा का पुनर्जन्म होता है।