Ahilyabai Holkar death anniversary: आज भी मराठा कहते हैं मातोश्री, किसी योद्धा से कम नहीं थीं अहिल्याबाई

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Aug, 2023 09:18 AM

ahilyabai holkar death anniversary

भारत का इतिहास बहुत समृद्ध है। इस देश ने कई लड़ाइयां देखी हैं, कई शासकों का राज देखा है, लेकिन ये देश सिर्फ राजाओं से नहीं, बल्कि रानियों से भी प्रसिद्ध रहा

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Ahilyabai Holkar death anniversary: भारत का इतिहास बहुत समृद्ध है। इस देश ने कई लड़ाइयां देखी हैं, कई शासकों का राज देखा है, लेकिन ये देश सिर्फ राजाओं से नहीं, बल्कि रानियों से भी प्रसिद्ध रहा। अहिल्याबाई होल्कर मध्य प्रदेश के महेश्वर साम्राज्य की कर्ता-धर्ता थीं। उन्हें उनके द्वारा किए सामाजिक और धार्मिक कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने क्रूर मुगल शासक औरंगजेब द्वारा तोड़े मंदिरों का दोबारा निर्माण करवाया और इसके साथ पूरे भारत में श्रीनगर, हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, प्रयाग, वाराणसी, पुरी, रामेश्वरम, सोमनाथ, महाबलेश्वर, पुणे, इंदौर, उडुपी, गोकर्ण आदि में बहुत से मंदिर बनवाए।

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अहिल्याबाई के पति खंडेराव होल्कर की मृत्यु हुई तो उनके ससुर मल्हार राव होल्कर ने उन्हें सति होने से रोक दिया। मल्हार राव ने उन्हें सैन्य शिक्षा दी और उस दौर में उन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनाया। अहिल्याबाई होल्कर उन रानियों में से एक थीं जो सैन्य शक्ति से लेकर राजकीय कार्यों में भी बहुत अच्छी थीं। उन्होंने किसी को मृत्यु दंड नहीं दिया। इतना ही नहीं उन्होंने कैदियों से शपथ लेकर उन्हें छोड़ने का काम भी किया। उन्होंने 7/12 स्कीम चलाई जहां किसानों को खेती करने के लिए राज्य पैसे देगा और फिर उपज बांटी जाएगी। उन्होंने कई राज्य कर भी समाप्त कर दिए थे जिससे मालवा राज्य बहुत ही समृद्ध राज्य बन गया था।  

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अहिल्याबाई का जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी ग्राम में हुआ। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे। राज्य की सत्ता पर बैठने के पूर्व ही उन्होंने अपने पति-पुत्र सहित अपने सभी परिजनों को खो दिया था। सत्ता संभालते ही इन्होंने प्रजा हितार्थ और जनकल्याण के प्रशंसनीय कार्य किए। अपने साम्राज्य को मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाने के लिए हमेशा कोशिश करती रही और युद्ध के समय स्वयं अपनी सेना में शामिल होकर युद्ध करती थीं।

अहिल्याबाई का मानना था कि धन, प्रजा व ईश्वर की दी हुई धरोहर स्वरूप निधि है इसलिए उन्होंने लोगों के रहने और विश्राम के लिए सरकारी  पैसों से मुख्य तीर्थस्थानों गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आसपास बहुत-सी धर्मशालाएं भी बनवाई। शिव की भक्त अहिल्याबाई का सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य पालन और परमार्थ की साधना का बन गया।

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इन्होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर, गया में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया। इन्होंने घाट बंधवाए, कुंओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए, मंदिरों में शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्ति की।

वह अपनी राजधानी महेश्वर ले गई जहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के इर्द-गिर्द बनी राजधानी की पहचान बनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री। उस दौरान महेश्वर साहित्य, नितृकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। 13 अगस्त, 1795 को 70 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

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