Aja ekadashi vrat katha: इस कथा को पढ़ने से आप भी पा सकते हैं खोया धन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Aug, 2024 01:50 PM

aja ekadashi vrat katha

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा नाम से प्रसिद्ध है तथा इसे अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से जीव के जन्म-जन्मांतरों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, वहीं उनके संताप मिटने से भाग्य भी उदय हो जाता है।

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Aja ekadashi vrat katha: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा नाम से प्रसिद्ध है तथा इसे अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से जीव के जन्म-जन्मांतरों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, वहीं उनके संताप मिटने से भाग्य भी उदय हो जाता है। जिस कामना से कोई यह व्रत करता है, उसकी वह सभी मनोकामनाएं तत्काल ही पूरी हो जाती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है। 

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व्रत कथा- पुराणों के अनुसार एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। अजा एकादशी का व्रत करने वाला अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य का अधिकारी होता है। मरणोंपरांत विष्णुलोक में स्थान प्राप्त करता है।

सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरीशचन्द्र हुए जो बड़े सत्यवादी थे। एक बार उन्होंने अपने वचन की खातिर अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया तथा दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रुप में एक चण्डाल को बेच डाला। 

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अनेक कष्ट सहते हुए भी वह सत्य से विचलित नहीं हुए, तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले। जिन्होंने उन्हें अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत करने के लिए कहा। राजा हरीश्चन्द्र ने अपनी सामर्थ्यानुसार इस व्रत को किया। जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ बल्कि परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में वह प्रभु के परमधाम को प्राप्त हुए। 

अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनके सभी पाप नष्ट हो गए। उन्हें अपना खोया हुआ राजपाट एवं परिवार भी प्राप्त हुआ था। 

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भगवान को एकादशी परम प्रिय है तथा इसका व्रत करने वाले भक्त संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में प्रभु के परम धाम को प्राप्त करते हैं। एकादशी में रात्रि जागरण की अत्यधिक महता है। इस दिन किए गए दान का भी कई गुणा अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। जिस कामना से कोई एकादशी व्रत करता है उसकी सभी कामनाएं बड़ी जल्दी पूरी हो जाती हैं। इस व्रत में रात को जागरण करने का बहुत महत्व है। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। ध्यान रहे द्वादशी के दिन बैंगन न खाएं।

भगवान सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक हैं तथा बिना मांगे ही अपने भक्त की सारी स्थिति को जानकर उसके सभी कष्टों और चिंताओं को मिटा देते हैं। जो भक्त केवल भगवान की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं, उन पर भगवान वैसे ही कृपा करते हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ दे डाला, इसलिए भगवान से उनकी सेवा मांगने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं। 

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