Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Nov, 2024 07:37 AM
ग्रेजों के शासनकाल में अजमेर नगर पालिका के एक कमिश्नर थे हरबिलास सारदा। वह आर्य समाज के सदस्य रहे और उन्होंने पांच किताबें लिखीं, जिनमें हिंदू श्रेष्ठता, अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक
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Ajmer Dargah: ग्रेजों के शासनकाल में अजमेर नगर पालिका के एक कमिश्नर थे हरबिलास सारदा। वह आर्य समाज के सदस्य रहे और उन्होंने पांच किताबें लिखीं, जिनमें हिंदू श्रेष्ठता, अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक, महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा तथा रणथंभौर के महाराजा हमीर। सेवानिवृत्त होने के बाद 1911 में अजमेर पर आई किताब में उन्होंने अजमेर शरीफ दरगाह के मंदिर पर बने होने का जिक्र किया।
हरबिलास सारदा की इस किताब को 113 साल बाद हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपनी कानूनी लड़ाई का आधार बनाया है। उन्होंने अजमेर वेस्ट सिविल जज सीनियर डिविजन मनमोहन चंदेल की अदालत में याचिका दायर कर दावा किया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक मंदिर पर बनी है। जज चंदेल ने इस याचिका पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को नोटिस जारी किया है।
विष्णु गुप्ता याचिका में खुद जाकर दरगाह में अपने स्तर पर भी शोध करने की बात कहते हैं। उनका दावा है कि दरगाह की संरचना हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। दरगाह की दीवारों और दरवाजों पर बनी नक्काशी हिंदू मंदिरों की याद दिलाती है। उनके पूर्वज भी बताते रहे हैं कि वहां शिवलिंग होता था।
इसके अलावा वह यह भी दावा करते हैं कि अजमेर के लोगों का कहना है कि यहां हिंदू मंदिर था। वह दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने तथा वहां पूजा-पाठ का अधिकार देने की मांग कर रहे हैं।
सस्ती लोकप्रियता पाने का स्टंट : सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती
अजमेर दरगाह के प्रमुख उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती इस कदम को सस्ती लोकप्रियता पाने का स्टंट बताते हैं। आए दिन लोग किसी न किसी मस्जिद और दरगाह को लेकर याचिका लगाते हैं। यह गलत परिपाटी डाली जा रही है। 1911 की जिस किताब को आधार बनाया गया है, उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। सौ साल पुरानी किताब की बुनियाद पर साढ़े आठ सौ साल पुराने इतिहास को नहीं झुठलाया जा सकता। ऐसी याचिकाओं से कुछलोग समाज में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। समाज को एकजुट होने की जरूरत है।