वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा: वास्तु का अनुपम उदाहरण है दरगाह शरीफ अजमेर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Dec, 2024 02:06 PM

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Ajmer Sharif Dargah Khwaja Garib Nawaz: पहाड़ों से घिरा नैसर्गिक सौन्दर्य के बीच बसा अजमेर प्राचीन शहर है। यहां धर्म, इतिहास और स्थापत्य तीनों का अद्भुत समन्वय है और अजमेर का मूल आकर्षण है गरीब नवाज़ ख्वाजा साहब की दरगाह। इस्लाम धर्मावलम्बिओं के लिए...

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Ajmer Sharif Dargah Khwaja Garib Nawaz: पहाड़ों से घिरा नैसर्गिक सौन्दर्य के बीच बसा अजमेर प्राचीन शहर है। यहां धर्म, इतिहास और स्थापत्य तीनों का अद्भुत समन्वय है और अजमेर का मूल आकर्षण है गरीब नवाज़ ख्वाजा साहब की दरगाह। इस्लाम धर्मावलम्बिओं के लिए भारत में यह सबसे पवित्र तीर्थस्थान है।

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अकबर के धर्मगुरू किंवदंती पुरूष ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती 1142-1256 मुहम्मद गोरी के साथ 1192 में भारत आये। किंवदंती है फारस के संजार में 1142 में मोईनुद्दीन चिश्ती मक्का होकर मदीना जाने के मार्ग में देववाणी पाकर इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए हिंदुस्तान आये। तभी से वे अजमेर में बस गये और यही उनकी समाधि भी है। उनकी मजार के आसपास दो मस्जिदें बनी है, एक सम्मेलन कक्ष व चांदी से मढ़ा बुलन्द दरवाजा है। हैदराबाद के निजाम ने प्रवेश-द्वार तैयार करवाया। प्रवेश करते ही दाहिनी ओर जो मजिस्द व 23 मीटर ऊंचा बुलन्द दरवाजा है, उसे अबकर ने बनवाया था। जहांगीर ने भी मस्जिद का निर्माण करवाया। शाहजहां ने यहां मध्यम गुम्बद ही नहीं, बल्कि श्वेत मरमरी पत्थरों की जुम्मा मस्जिद भी बनवायी। गुम्बद का शीर्ष भाग सोने की परत से मढ़ा हुआ है। आज भी प्रतिवर्ष रोजा के महीने में 1-6 दिन (मोईनुद्दीन चिश्ती का मृत्यु दिवस) उर्स उत्सव का पालन किया जाता है। दरगाह की और दर्शनीय वस्तु यहां के वे दो पात्र है, जिनमें 120 और 80 मन चावल एक साथ पकता है। उर्स उत्सव के दौरान इनमें बिरयानी पकायी जाती है। इसे तवारूख अर्थात प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।

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दुनिया भर से हर धर्म-जाति, अमीर-गरीब बिना किसी भेद के दरगाह शरीफ आकर अपनी अनन्य श्रद्धा-भक्ति के साथ यहां दर्शन के लिए आते हैं मन्नतें मांगते हैं, जो पूरी भी होती हैं। यहां विश्व के कई राष्ट्रों के प्रमुख व्यक्ति दर्शन करने के लिए आ चुके हैं। साथ ही भारत के भी कई नेता-अभिनेता, जाने-माने उद्योगपति एवं रईस लोग यहां मन्नतें मांगने आते हैं, चादर चढ़ाते हैं।

दरगाह शरीफ के प्रति श्रद्धालुओं की इतनी अटूट श्रद्धा एवं विश्व प्रसिद्ध ख्याति में परिसर एवं इसके आसपास की वास्तुनुकुल भौगोलिक स्थिति की भी महत्वपूर्ण भूमिका है जिसे नकारा नहीं जा सकता है।

दरगाह शरीफ परिसर तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी की उत्तर व पूर्व दिशा में स्थित है। इस परिसर के अंदर वाले भाग में दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊंचाई है और परिसर के बाहर इन्हीं दिशाओं में तारागढ़ की पहाड़ी है। जहां पर हिल स्टेशनों के तरह रिहायशी मकान बने हुए हैं और परिसर की उत्तर-पूर्व दिशा में क्रमशः नीचाई है। दरगाह शरीफ परिसर के अंदर वाले भाग में दक्षिण-पश्चिम दिशा की यह ऊंचाई और उत्तर-पूर्व दिशा का यह ढलान शिर्डी स्थित सांई मंदिर की तरह ही है और परिसर के बाहर तारागढ़ पहाड़ी की ऊंचाईयां उसी प्रकार है जिस प्रकार तिरूपति बालाजी मंदिर के परिसर से एकदम सटकर पश्चिम दिशा में पहाड़ है और दक्षिण दिशा में काफी ऊंचाई है।

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दरगाह शरीफ परिसर का मुख्यद्वार निजाम गेट उत्तर दिशा में स्थित है जिसके सामने स्थित सड़क के दोनों ओर दुकाने है, जिसे दरगाह बाजार कहते है। परिसर को इस सड़क का मार्ग प्रहार है जो कि परिसर के लिए अत्यंत शुभ होकर प्रसिद्धि बढ़ाने में विशेष रूप से सहायक हो रहा है। परिसर की उत्तर दिशा स्थित निजाम गेट के बाद इसी दिशा में परिसर के अंदर एक के बाद एक दो ओर दरवाजे है एक कलमी दरवाजा और दूसरा बुलंद दरवाजा है। इन दरवाजों से अंदर जाने पर दाएं हाथ अर्थात पश्चिम दिशा में बड़ी देग और बांये हाथ अर्थात पूर्व दिशा में छोटी देग है तथा इन दोनों के बीच सेहन चिराग है तथा इसके आगे बुजू के लिए हौज़ है। परिसर की उत्तर दिशा का यह भाग का परिसर के शेष फर्श की तुलना में लगभग 3-4 फीट नीचाई लिए हुए है। परिसर की उत्तर दिशा की उपरोक्त सभी वास्तुनुकुलताएं दरगाह शरीफ प्रसिद्धि बढ़ाने में विशेष सहायक हो रही है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत अनुसार उत्तर दिशा की नीचाई प्रसिद्धि दिलवाती है। दुनिया में सातों आश्चर्य सहित जितने भी प्रसिद्ध स्थान हैं, उन सभी की उत्तर दिशा में किसी न किसी तरह की नीचाई अवश्य देखने को मिलती है।

परिसर की चारों दिशाओं में द्वार है। सभी दिशाओं के द्वार वास्तुनुकूल स्थान पर स्थापित है। पूर्व दिशा में तीन दरवाजे हैं। जिनमें दो द्वार पूर्व ईशान में और तीसरा द्वार, मुख्य द्वार मध्य पूर्व में स्थित है। दक्षिण दिशा का द्वार दक्षिण आग्नेय में है और पश्चिम दिशा का द्वार पश्चिम वायव्य में है।

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परिसर के अंदर पश्चिम दिशा में अकबरी मस्जिद, यतीम खाना, जामा मस्जिद, शाहजहानी मस्जिद, आहाता चारयार ऊंचाई पर स्थित है और पूर्व दिशा में लंगर खाना, औलिया मस्जिद, बेगमी दालान, मन्नती तराजू, मोरसली का पेड़ और मस्जिद संदल वाली आदि वाले भाग का फर्श पश्चिम दिशा की तुलना में नीचा है। पश्चिम दिशा की ऊंचाई एवं पूर्व दिशा की इसी नीचाई की वास्तुनुकुलता के कारण यहां पर लोग मन्नते मांगते हैं और वह पूरी होती है और पूरी होने पर खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं जैसा कि सभी प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों जैसे - श्रीनाथ जी नाथद्वारा, तिरूपति बालाजी, शिर्डी स्थित सांई मंदिर इत्यादि स्थनों पर देखने को मिलता है।

परिसर की दक्षिण दिशा में आरकाट और मालवा वालों का दालान उत्तर व पूर्व दिशा की तुलना में थोड़ी ऊंचाई पर बने हुए हैं और इन दालानों के पास परिसर के नैऋत्य कोण में एक गहरी बावली है। जो झालरा के नाम से मशहूर है। अजमेर में चाहे पानी की कितनी ही किल्लत क्यों न किंतु इस बावली में हमेशा पानी भरा रहता है।

जैसा कि दरगाह शरीफ दर्शन पर जाने से ज्ञात हुआ कि यह झालरा पहले परिसर की पूरी दक्षिण दिशा में फैलाव लिए हुए था किंतु लगभग 10-12 वर्ष पूर्व इसका बड़ा भाग मिट्टी डालकर भर दिया गया जहां आज मालवा वालों का दालान है।


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वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा के वास्तुदोष का कुप्रभाव विशेषकर स्त्रियों पर पड़ता है। निश्चित ही दक्षिण दिशा के इस दोष का प्रभाव दरगाह शरीफ पर जो महिलाएं दर्शन करने आती थी उन पर पड़ता रहा होगा। किंतु हो सकता है अद्भुत अद्वितीय वास्तु शक्ति वाली इस दरगाह शरीफ में उपरोक्त वास्तुदोष अपना कोई प्रभाव खुले रूप में नजर नहीं आ पाया हो। यह दोष उसी प्रकार है जिस प्रकार मदुरै स्थित मीनाक्षी मंदिर के दक्षिण भाग में गोल्डन लोटस टैंक (पौंड) है। अब यह झालरा केवल नैऋत्य कोण में ही बचा है, जो कि काफी गहरा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भवन या परिसर के नैऋत्य कोण में किसी भी प्रकार की गहराई अनहोनी का कारण बनती है। नैऋत्य कोण में इसी प्रकार की गहराई राम जन्मभूमि अयोध्या में भी है। जो कारसेवकों के लिए अमंगलकारी रही। नैऋत्य कोण के इसी दोष के कारण ही दरगाह शरीफ जैसे इस पवित्र स्थान पर अक्टूबर 2007 में हुए बम ब्लास्ट में दो लोग मारे गए और कई जख्मी हुए।

दरगाह शरीफ अजमेर परिसर फेंगशुई के विशेष सिद्धांत के अनुकूल भी है। फेंगशुई का सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुंड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। दरगाह शरीफ परिसर के बाहर दक्षिण और पश्चिम दिशा में पहाड़ है और परिसर के अंदर भी इन्हीं दिशाओं में ऊंचाई है तथा मज़ार एवं मज़ार के बाद वाला भाग उत्तर एवं पूर्व दिशा में तुलनात्मक रूप में नीचा है। किंतु इस सिद्धांत का पूर्ण लाभ नैऋत्य कोण के झालरा के कारण नहीं मिल पा रहा है।

दरगाह शरीफ की प्रबंधक कमेटी को चाहिए जिस प्रकार झालरा के दक्षिण दिशा वाले बड़े भाग में भराव करके दालान बनाया गया है। उसी प्रकार यदि नैऋत्य कोण में स्थित झालरा में भी भराव करके दक्षिण-पश्चिम दिशा के फर्श के बराबर कर दिया जाए और पहाड़ से आने वाले पानी के लिए उत्तर या पूर्व दिशा में नया झालरा बनाकर पानी को एकत्रित किया जाए तो इस परिवर्तन से परिसर के नैऋत्य कोण का वास्तुदोष पूर्णतः दूर हो जाएगा। इसी के साथ दरगाह शरीफ परिसर फेंगशुई के सिद्धांत के भी पूर्णतः अनुकूल हो जाएगा। यह वास्तुनुकुल परिवर्तन निश्चित रूप से पहले से ही अद्भुत शक्ति वाले दरगाह शरीफ की यश, कीर्ति, वैभव व समृद्धि और अधिक बढ़ाने में सहायक होगा।

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

 

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